शनिवार, 27 नवंबर 2010



बेसरमन की बाड


16
घुघुरी लूटैं लरिकवा/गुडिया पीटै जाँय
सावन गावैं मेहेरुआ/झूलि-झूलि अठिलाँय।
17
साँप घटि गये,छँटि गवा- गाँवन का खलझार
नई चाल के आयगे /लोखरी अउर सियार।
18
सबके हाथे मा सजा/है मुहबाइल फोन
बिना सिफारिस मिल रहा /अब मुहमाँगा लोन।
19
परे दुआरे ठूँठ अस/बुढऊ है पगलान
अब सब पौरुख घटि गवा/रहैं बडे बलवान।
20
फूफू की चिट्ठी मिली /बहुत दिनन के बादि
चिट्ठी फोटू बनि गवै /सबकुछ आवा यादि।
21
पुरवैया सनकी कहूँ/उमस भरी चहुँ ओर
बूँद गिरी,नाचै लगे/सबके मन मा मोर।
22
उज्जल कुरता पहिन कै/नेता पहुँचे गाँव।
बरखा के बगुला भये/आवा जहाँ चुनाव।
23
अब म्याडन पर उगि रही/ बेसरमन की बाड
बुआ पियासी,बहुरिया /खोलेसि नही केंवाड।
24
बेरी का काँटा भईं/रिस्तेदारी खाज
खूनु चुवै सब मौज लें/द्याखै गाँव समाज।
25
नान्हि चिरैया ला रही/ तिनुका तिनुका बीनि
गाभिन कइकै हुइ गवा/चिडा एक दुइ तीन।
26
धीरे-धीरे धसकि गै/पुरबह केरि देवाल।
अब पच्छिम की राह है/अमरीका चौपाल।
27
का अवधी का आदमी/ठसक रही ना आन
डेहरी छूटी घर गवा/बोली तौ पहिचान।
28
झाँडे जंगल बिसरि गा/नींबी केरि दतून
सरबत पानी बतकही/अउर तमाखू चून।
29
कुँइया का पानी पिया/ बहुत दिनन के बादि
किस्सा आये सैकडो/यकबक हमका यादि।
30
कोल्हू मा गोई जुतैं/ऊखै पेरी जाँय।
खोई झ्वाकै राति भर/तब ताजा गुड खाँय।
                      *भारतेन्दु मिश्र

शुक्रवार, 12 नवंबर 2010

चली चिरैया सैर पर


दोहे 
1
अब गाँवन ते जुडि गईं/सडकै चारिव वार
लिलगाइन के झुंड का/गाँसै लाग सियार।
2
लखनउवन ते हारि गे/गाँवन क्यार किसान
भीख माँगि रोटी जुरै/सिकुडि गये खरिहान।
3
टट्टर आवा गाँव मा/सबके बैल बिकान
फिर टट्टर की किस्त मा/ बिका खेतु खरिहान।
4
बिरवन की छाँही नही/टूटै जहाँ थकान
अब वुइ बागै कटि गयीं/बनिगे नए मकान।
5
रोज रंगु बदलै लगे/गिरगिट हैं परधान
कुछ चूसैं-कुछ थूकि दें/जैसे मुह का पान।
6
वहै डगर-पीपर वहै/वह कूटी-वहु ठाँव
सब कुछु है मुलु/अब नही है पहिले जस गाँव।
7
गडही सगरी पटि गईं/कुइयाँ गईं बिलाय
चापाकल अउधाँ परा/ पानी लाग बिकाय।
8
करिया अच्छर आदमी/पत्ता अइस सरीर
अँगरेजी मा लिखी गइ/ फत्ते की तकदीर।

9
अब न आगि माँगै कोऊ/अब न होय अगियार
मेल मुरौवति अब नही/कहाँ तीज त्यौहार।
10
खरखट्टी खटिया बिछी/नींबी वाली छाँह
जात-पात की बात पर/नत्था करै सलाह।
11
फसल कटी-बाली बजीं/भरि गइ उनकी जेब
नई बहुरिया आय गइ/पहिरि नई पाजेब।
12
चोंच लडावै मोरनी/उडै मुरैला संग
धरती मानुस बिरछ लौ/नाचैं उनके संग।
13
पढे लिखे हुसियार भे/ठग बाबू बबुआन
मेहनति अबहूँ करति हइ/दुखिया रोज किसान।
14
सौदा लइ-लइ आ रहे/नए बिसाती रोज
गाँवन-गाँवन हुइ रही/अब गहकिन की खोज।
15
पढि लिखि कै हुसियार भे/ जहाँ लरिकवा चंट
अब न बही खाता चलै/हुँआ न पोथी घंट।
*भारतेन्दु मिश्र