मंगलवार, 8 फ़रवरी 2011

आज जनकवि अवधी के निराला पं.बंशीधर शुक्ल की 107 वी जयंती है। प्रस्तुत है शुक्ल जी की एक मार्मिक कविता। देखिये तबसे अब तक किसान की दुनिया में क्या बदला है।

यक किसान की रोटी

यक किसान की रोटी,जेहिमाँ परिगइ तुक्का बोटी

भैया!लागे हैं हजारउँ ठगहार।

हँइ सामराज्य स्वान से देखउ बैठे घींच दबाये हइँ

पूँजीवाद बिलार पेट पर पंजा खूब जमाये हइँ।

गीध बने हइँ दुकन्दार सब डार ते घात लगाये हइँ

मारि झपट्टा मुफतखोर सब चौगिरदा घतियाये हइँ।

सभापती कहइँ हमका देउ, हम तुमका खेतु देवाय देई

पटवारी कहइँ हमका देउ, हम तुम्हरेहे नाव चढाय देई।

पेसकार कहइँ हमका देउ, हम हाकिम का समुझाय देई

हाकिम कहइँ हमइँ देउ, तउ हम सच्चा न्याव चुकाय देई।

कहइँ मोहर्रिर हमका देउ, हम पूरी मिसिल जँचाय देई

चपरासी कहइँ हमका देउ, खूँटा अउ नाँद गडवाय देई।

कहइँ दरोगा हमका देउ, हम सबरी दफा हटाय देई

कहइँ वकील हमका देउ, तउ हम लडिकै तुम्हइ जिताय देई।

पंडा कहइँ हमइँ देउ, तउ देउता ते भेंट कराय देई

कहइँ ज्योतिकी हमका देउ, तउ गिरह सांति करवाय देई।

बैद! कहइँ तुम हमका देउ, तउ सिगरे रोग भगाय देई

डाक्टर कहइँ हमइँ देउ, तउ हम असली सुई लगाय देई।

कहइँ दलाल हमइँ देउ, हम तउ सब बिधि तुम्हँइ बचइबै,

हमरे साढू के साढू जिलेदार।

यक किसान की रोटी,जेहिमाँ परिगइ तुक्का बोटी

भैया!लागे हैं हजारउँ ठगहार।

पं.बंशीधर शुक्ल