शुक्रवार, 2 दिसंबर 2016

अवधिये जागो

डा.भारतेंदु मिश्र

अवधी जन भाषा होने के साथ ही पारंपरिक सांस्कृतिक और साहित्य के लोक को आलोकित करने वाली  काव्य भाषा भी है| ,उसमे कई सदियों की रचनात्मक चेतना  का आस्वाद और अवध के लोक जीवन का विपुल साहित्य भरा है|वह भोजपुरी की तरह बाजार से दूर रही|अवध का आदमी भी बाजार से बहुत दूर रहा| रमई काका ने बाजार और बाजारवादी धोखे के बारे में बहुत पहले ही अवध के लोगो को आगाह कर  दिया था—
हम गयन याक दिन लखनउवै , कक्कू संजोगु अइस परिगा |
पहिलेहे पहिल हम सहरु दीख , सो कहूँ कहूँ ध्वाखा होइगा
जब गएँ नुमाइस द्याखै हम , जंह कक्कू भारी रहै भीर
दुई तोला चारि रुपइया कै , हम बेसहा सोने कै जंजीर ||
लखि भईं घरैतिन गलगल बहु , मुल चारि दिनन मा रंग बदला |
उन कहा कि पीतरि लै आयौ , हम कहा बड़ा ध्वाखा होइगा || 
इसीलिए उसके पीछे वैसे लोग कभी नहीं रहे जो संगठित होकर अवधी के लिए संघर्ष कर पाते| अवधिये ज्यादातर संकोची घुन्ने और चुपचाप काम करने वाले होते हैं|सरकारे उन्हें वोट बैंक बनाती हैं ठगती हैं लेकिन ये कभी संगठित होकर सरकारों से अपने जातीय स्वाभिमान के लिए नहीं लडे | आगे भी लड़ने की सामर्थ्य नहीं है| असल में हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने वाले अग्रणी हिन्दी के साहित्यकारों वाले  समाज के लोगो में लोक भाषा अवधी की कभी बहुत चिंता भी नहीं की| इसी कारण आठवी अनुसूची में अवधी को शामिल कराना अवधियो का लक्ष्य ही नहीं बना| बहरहाल इस मुद्दे पर विचार तो करना ही चाहिए|अवधी की ही तरह ब्रज और बुन्देली जैसी लोक भाषाओं का  भी हिन्दी पट्टी  में बड़ा महत्त्व है| मेरी समझ से ये आठवी अनुसूची में शामिल होजाने की कवायत सही कदम नहीं है| बिना आठवी अनुसूची में शामिल हुए भी हम सब अवधी का विकास करने का संकल्प कर सकते हैं |
जहा तक अवधी में पढ़ाने लिखाने सिखाने की बात है तो सन २००५ में शिक्षा को लेकर  पुनर्विचार के लिए यशपाल कमेटी की जो रिपोर्ट आयी उसमे भी यह माना गया था कि प्राथमिक स्तर पर बच्चो को अपनी मातृभाषा में ही शिक्षा दी जाए|करोडो अवधी क्षेत्र के लोगो की मातृभाषा अवधी भाषा है | अब प्रश्न यह था कि जिन बच्चो की भाषा अवधी/ब्रज या भोजपुरी है जो आठवी अनुसूची में नहीं आती तो उन्हें प्राथमिक स्तर के बच्चो के लिए शिक्षा का माध्यम कैसे बनाया जाए| इस प्रश्न का उत्तर हमें शिक्षा का अधिकार कानून-२००९ ने दिया| इस क़ानून के हिसाब से विद्यालय के अभिभावकों और अध्यापको को स्थानीय आवश्यकताओं के अनुरूप पाठ्यचर्या में बदलाव करने के अवसर प्रदान कर दिए है| तात्पर्य यह कि यदि किसी गाँव के बच्चे यदि अवधी माध्यम से पांचवी तक पढ़ना चाहे तो ये उनका अधिकार है|इसके लिए आठवी अनुसूची में अवधी को शामिल करने/करवाने  की अनिवार्यता नहीं है|      
दूसरी ओर हमें मिलकर अवधी गद्य के विकास पर ध्यान देने की जरूरत है|
अवधी ब्रज आदि बोलिया भी है और प्राचीन लोक भाषाए भी है|हिन्दी के स्वीकार के कारण इन्हें उपभाषा के रूप में सीमित कर दिया गया| लेकिन जब इन सभी लोकभाषाओ की अकादमिया बन जायेगी तो इन भाषाओं का विकास तय हो सकेगा| बहुत आवश्यक हो तो आठवी अनुसूची की बात के बारे में आगे कभी तय होगा|अभी तो इनके संरक्षण की बात है| एक अध्ययन केंद्र तक बना नहीं, कोई साप्ताहिक अखबार तक नहीं निकला, कोई मासिक पत्रिका तक नहीं निकली| अवध ज्योति के अलावा दूसरी ढंग की पत्रिका तक नहीं निकल रही है लोग  कहते है - भाषा बन गयी| सरकार बस उसे भाषा के रूप में मान्यता दे दे|मेरा प्रश्न ऐसे लोगो से है कि  आठवी अनुसूची में शामिल होने से क्या हो जाएगा ? कुछ लोग जो इन भाषाओं की धंधेबाजी में शामिल होंगे वो कुछ पुरस्कार आदि ले मरेंगे..बस जिन भाषाओं को आठवी अनुसूची में शामिल किया गया है उनकी स्थिति बहुत अच्छे नहीं है|भाषा होने के लिए गद्य के विविध  प्रयोग किये जाने की अनिवार्यता है| गद्य के लिए व्याकरण की अनिवार्यता है| हमने और अलग भाषा के समर्थको ने  कितना काम अवधी के लिए किया है ? तो इस मुद्दे पर गंभीर विमर्श होना चाहिए|  सबको विचार करने की आवश्यकता है| अवधी में समाचार पत्र निकालने पर गंभीर होना चाहिए| संस्कृत में दैनिक अखबार निकल रहा है तो अवधी में क्यों नहीं निकल सकता ?..यह चन्द फेसबुक  के समर्थको से बात नहीं बनेगी|
संपर्क:
सी/४५ /वाई-४,दिलशाद गार्डन ,दिल्ली -११००९५