गुरुवार, 5 अप्रैल 2018

Amrendra Nath Tripathi  की वाल से-
लोकार्पण, काव्यपाठ और परिचर्चा : कुछ बातें कुछ छवियाँ
कल दिल्ली के Academy of Fine Arts & Literature में अवधी प्रेमियों की उत्साहवर्धक मौजूदगी में पुस्तक ‘समकालीन अवधी साहित्य में प्रतिरोध’ (सं.-अमरेन्द्र अवधिया) का लोकार्पण हुआ। आयोजित संगोष्ठी में पुस्तक पर महत्वपूर्ण चर्चा हुई और कई अवधी कवियों ने प्रतिरोधी स्वर की कविताओं को पढ़ा। आरंभ में साहित्यकार रजनी तिलक और सुशील सिद्धार्थ के असामयिक निधन पर दो मिनट का मौन रखा गया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे ख्यातिलब्ध साहित्यकार असग़र वजाहत Asghar Wajahat ने अपने रोचक संस्मरणों के माध्यम से अवधी भाषा, या फिर भाषा की ही, क्या भूमिका होती है, इस पर प्रकाश डाला। पुस्तक पर अन्य वक्ताओं के मतों की अहमियत स्वीकारते हुए, दुहराव से बचते हुए उन्होंने किस्सों-सी रोचकता द्वारा अपना दिलचस्प व्याख्यान प्रस्तुत किया। उनके संस्मरण अपने निष्कर्ष में भाषा की ताकत का अहसास कराते थे। अवधी के महान कवि तुलसीदास के साहित्य पर उन्होंने अपनी राय स्पष्ट की कि उनका साहित्य प्रतिरोध का साहित्य है। यह प्रतिरोध जनपक्षी है। वैसे ही जैसे ईरान में फिरदौसी का साहित्य प्रतिरोध करता है। इसी प्रसंग में उन्होंने अपने तुलसीदास पर लिखे जा रहे नाटक का जिक्र किया और नाटक के दूरदर्शी संवाद का उल्लेख किया जिसमें अकबर की जगह ‘इतिहास’ में तय होती है और तुलसीदास की जगह ‘वर्तमान’ में।
मुख्य वक्ता के रूप में, जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर चंद्रदेव यादव Chandradev Yadav ने कहा कि संकलन की कविताओं की टोन खांटी अवधी की है। और यदि इसमें इतनी पुख्ता जनचेतना है तो इसे जन के बीच आना ही चाहिए। परिवर्तनकामी चरित्र इस संग्रह की कविताओं में है। हर भाषा का अपना तेवर होता है और ये कविताएँ अवधी में ही संभव थीं। कविताओं में ‘फोर्म’ की विविधता की तारीफ करते हुए उन्होंने कहा कि यहाँ एकतरफ़ पद, बरवै, मुकरियाँ, कवित्त, गजल, कुंडलिया, बिरहा जैसे छंद हैं तो दूसरी तरफ़ आधुनिक प्रकार की कविताएँ भी।
दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफेसर आशुतोष कुमार Ashutosh Kumar ने कहा कि अवधी भाषा की कविता बड़ा गंभीर हस्तक्षेप कर रही है। इतनी कविताओं को एक साथ पढ़ना एक रिवीलेशन है। अवधी सहित्य में प्रतिरोध का स्वर निखरा है। यह संग्रह यह बताता है कि भाषा के अपने बहुत सारे शब्द होते हैं जिनकी अपनी संवेदना है और इन भाषाओं का चलन खत्म होने से हम इन शब्दों को खोते हैं। ये कविताएँ आम लोगों की भाषा में हैं। इनका अनुवाद हो तो इनकी धार ख़त्म हो जाती है। इस संकलन में कमज़ोर कविताएँ बहुत कम हैं।
कार्यक्रम का संचालन कर रहे प्रख्यात आलोचक बजरंग बिहारी तिवारी ने छुटपुट टिप्पणियों में महत्वपूर्ण बातें कहीं। उन्होंने कहा कि लोक अराजनीतिक नहीं होता। लगे भले। रामचरित मानस में मंथरा जहाँ कहती हैं कि ‘कोउ नृप होय हमैं का हानी’, उसके तुरंत बाद एक बड़ा राजनीतिक उलटफेर होता है जिसमें उनकी बड़ी भूमिका है। बजरंग जी ने कहा कि अवधी में बाज़ार का प्रवेश नहीं हुआ है। उन्होंने यह भी कहा कि लोक हिंसक शक्तियों की पहचान अपने ढंग से कर लेता है, ये कविताएँ इस बात को बताती हैं। इस बात को देखने का झरोखा हैं ये कविताएँ।

अर्थशास्त्री अजय रंजन ने कहा कि ‘मनी’ एक सोशल फोर्म है, सोसाइटल डिवाइस है, केवल आदान-प्रदान करने का जरिया नहीं। नोटबंदी के कारण पारिवारिक रिश्तों में, या सामाजिक रोश्तों में, बदलाव करने की कोशिश की गयी है। उसी तरह जैसे नसबंदी या आपात्‌काल के दौरान ऐसी कोशिश की जा चुकी है। पैसे का अपना सामाजिक जीवन होता है। सत्ता इसे पहचान कर लोगों के पेशे में हस्तक्षेप करके उन्हें मजदूर बना देती है। संग्रह की एक कविता का उन्होंने जिक्र किया - ‘तब तो रहय नसबंदी / अबकी हय नोटबंदी’।
जानकी देवी कॊलेज-डीयू की डॊ. सुधा उपाध्याय सुधा उपाध्याय का अवधी में वक्तव्य देने का ढंग बड़ा रोचक रहा। उन्होंने कहा कि अवधी बोली नहीं लोकभाषा है। अवधी में बड़ा रचा-बसा संसार है जो सजग है। विचारों के उन्नयन के लिए राजनीतिक पैठ जरूरी है, जोकि अवधी कविता में मिलती है। इस दृष्टि से उन्होंने तुलसी कृत रामचरितमानस की अहमियत रेखांकित की। उन्होंने इस बात की ओर भी इशारा किया कि कविता आंदोलनधर्मी होनी चाहिए लेकिन वह इश्तहार का उपकरण भर न बने।
स्वामी श्रद्धानंद कॊलेज-डीयू के डॊ. टेकचन्द Tekchand Du ने कहा कि लोक में प्रतिरोध और प्रतिपक्ष ज्यादा दिखाई देता है। उन्होंने कहा कि कुलीन कविता में इतनी शक्ति नहीं होती कि वह इसे दर्ज करे। जहाँ टकराव की बात आती है वहाँ लोक शैली ही काम करती है। यह सब इस संकलन की कविता में देखा जा सकता है। इन कविताओं को आने वाले चुनावों में नारे के रूप में जन-जन तक फैलाया जाय। उन्होंने कहा कि राष्ट्रभाषा को रस देने का काम लोकभाषा ही करती है।
पुस्तक के संपादक डॊ. अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी ने पुस्तक से संबंधित कुछ जिज्ञासाओं का जवाब दिया और कहा कि आगे भी इस तरह के संकलन लाने की योजना रहेगी।
कार्यक्रम में अवधी कविताओं के पाठ का भी एक सत्र रखा गया था जिसमें डॊ. भारतेन्दु मिश्र Bhartendu Mishra , मृदुला शुक्ला Mridula Shukla, ममता सिंह Mamta Singh, अमित आनंद अमित आनंद, बृजेश यादव Brijesh Yadav, अटल तिवारी Atal Tewari, विष्णु वैश्विक विष्णु 'वैश्विक' आदि ने कविताएँ पढ़ीं। लंबे समय से दिल्ली में रह रहे अवधी साहित्यकार भारतेन्दु मिश्र ने कहा कि पिछले बत्तीस वर्षों में मैं पहली बार अवधी को लेकर इतनी सार्थक बातचीत और कार्यक्रम को देख रहा हूँ।
वरिष्ठ कवि मिथिलेश श्रीवास्तव Mithilesh Shrivastava की मौजूदगी से कार्यक्रम और समृद्ध हुआ। श्रोताओं से भरे हुए सभागार को देख कर सभी को खुशी मिल रही थी। लोकभाषा के, अवधी के, प्रेमियों का उत्साह देखने लायक था। कार्यक्रम में पुस्तक के प्रकाशक, परिकल्पना प्रकाशन के, शिवानंद जी Shivanand Tiwari भी उपस्थित थे। अंत में डॊ. नीरज कुमार मिश्र Neeraj Mishra ने सबका धन्यवाद ज्ञापन किया।
[ रपट : देवेश कुमार ]