शुक्रवार, 18 मई 2018


(कहानी)
दाखिल खारिज
# भारतेंदु मिश्र  
 मनोहर तीस साल कि नौकरी के बादि रिटायर भे रहैं| आज मनोहर कि आखिन मा सब पुरान अपनी जिन्दगी क्यार किस्सा सनीमा तना यादि आवै लाग रहै| तीस साल पाहिले दिल्ली मा मोरीगेट के सरकारी इस्कूल मा चौकीदार के पद पर बहाली भय रहै |गाँव के तिरवेनी मास्टर के साथै वुइ दिल्ली आये रहैं| रामेसुर सिंह औ मनोहर दुई भाई गाँव के सम्मानित ठाकुर रहैं |रामेसुर बड़े रहैं,तो मनोहर उनकी सब बात आखि मूंद के मानत रहैं|रामेसुर दबंग और मनोहर सीध सुभाव के रहैं|दुनहू भाइन के नाम साठ बिगहा कि खेती रहै मुला खेती सबियों रहै भगवान भरोसे |दादा लाई खेती किसानी ते सबका कौनिव तना गुजारा होति रहै| रामेसुर के तीनि  लरिका भे औ मनोहर के दुई बिटेवा भईं | याक दफा सूखा परा तो भुखमरी कि नौबत आय गय |यही बीच तिरबेनी मास्टर के साथ मनोहर गाँव ते दिल्ली चले आये|पाहिले के मनई गाँव जवार के मनई क्यार ध्यान राखति रहैं |तिरवेनी मास्टर वहे सरकारी इस्कूल मा पढ़ावत रहैं| मनोहर तिरवेनी के साथै रहै लाग औ अपने तिरवेनी कक्कू कि सेवा करै लाग |कबहूँ कबहूँ मनोहर का इस्कूल मा कुछ दिहाड़ी वाला काम तिरवेनी कक्कू कि मदति ते मिलि जाति रहै |धीरे धीरे मनोहर सौ दुई सौ रुपया गाँव म अपने बड़े भैया का मनीआडर्र ते पठवै लाग| मेहेरुआ औ दुनहू बिटेवा गावैं मा रहती रहैं |दुई तीन महीना पर तिरबेनी मास्टर के साथै वहू गाँव जायं तो सब लरिकन खातिर कुछ न कुछ कपड़ा लत्ता लय जायं |जिन्दगी चलै लागि रहै|

 अब मनोहर इस्कूल के प्रिंसिपल कि सेवा करै लाग रहैं |तब वुइ इस्कूल मा चौकीदार कि जगह खाली रहैं |तिरवेनी कि मदति से मनोहर कि कच्चे चौकीदार के पद पर बहाली हुइ गै|तब महीना के रु.300  उनकी तनखाह बनी रहै| जब तिरबेनी मास्टर तिमारपुर मा अपन सरकारी मकान एलाट कराय लीन्हेनि फिर अपन परिवार गाँव ते लय आये तब  तिरबेनी कक्कू मनोहर ते कहिन्-मनोहर भैया अब तुम इस्कूल मा रहौ ,हमका  सरकारी मकान मिलिगा है |’ तनखाह तो थोरी रहै मुला चौकीदारी मा रहैकि सुबिधा मनोहर क मिलि गै| अब पूरा इस्कूल उनका घरु हुइगा रहै |इनकी सेवा ते प्रिंसिपलवा  याक दिन कहेसि रहै -
‘देखो! मनोहर ,रात में इस बिल्डिंग के तुम्ही मालिक हो|किसी को बिलावजह घुसने न देना|कोई परेसानी हो तो मुझे रात में फोन करना और मेरा फोन न मिले तो सीधे 100 नम्बर, माने पुलिस को|इस करोड़ों की सरकारी जायादात के मालिक अब तुम ही हो|’
‘जी साहेब ,समझ गएन |पूरे जी जान से चौकीदारी करबै |’
 मनोहर राति मा टार्च लैकै जब स्कूल म गश्त लगावें तो मन मा बहुत खुस होंय,मानौ यह उनकी बाग़ आय  |गाँव म जब अंबिया लगती रहें तब राति म बाग़ रखवाई खातिर मनोहर बागै जाति रहैं | धीरे धीरे मनोहर क सब बीती जिन्दगी के किस्सा रहि रहि यदि आवै लाग| रिटायर हुइके गांवे जायकि बड़ी ललक रहै|
 फिर यादि आवा – कि नौकरी पर बहाली के बादि  अब मनोहर सात आठ एकड़ जमीन पर बने इस्कूल म चौबिसौ घंटा रहै लाग| इस्कूल औ प्रिंसिपल कि सेवा मा उनका सब टाइम कटै लाग| फिर नौकरी पक्की भइ ,कुछ तनखाह बढ़ी तो अपन जेब खर्च निकारि के सब बड़े भैया  के नाम मनीआर्डर ते गावैं पठवै लाग| बड़े भाई रामेसुर सब खेती किसानी औ इनकी गिरिस्ती संभारे रहैं| साल बादि जब मनोहर गाँव पहुंचे तो रामेसुर कहिन- अब तुम्हरी दुनहू बिटिया सयानी  हुइ गयी है, इनका बिहाव करैक सोचि लेव| सीता अठारह कि भै, औ गीता सत्तरह कि है| बिन महतारी कि बिटेवा कब तक घर मा बैठरिहो ? जब ते तुमार दुलहिन मरी रहै, तब ते तुम गाँव आना कम कइ दिहेव ? ..
हाँ दद्दू ,मुला हमरे तीर तो बियाहे खातिर पैसा है नहीं,जो थोरा पैसा जोरेन रहै सब वहिके इलाज मा खर्च हुइगा | तुमते का छिपा है ?’
बौड़मदास , तो का सयानी बिटेवा घर मा बैठरिहो ?’
नाहीं ,दद्दू अब तुमहे बताओ ..का करी|’
हुक्का गुड़गुड़ावति भये रामेसुर बोले-
पांच साल ते तुम्हारि खेती औ गिरिस्ती संभार रहेन  है| अब का तुमरी बिटेवा हमहे बियाहब ? अपन बंटवारा कइ लेव .. तुम जो दुई तीन हजार रुपया भेजि देति हौ तो का वहिमा तुमरी बिटियन क बिहाव हुई जाई?’
दादा ,हम का बताई ..रास्ता तो तुमहे बतैहौ| ’
तुम सरकारी चौकीदार बने घूमति हौ .हम गंवार मनई हियाँ गाँव वाले पूछै लाग हैं कि सीता गीता क्यार बिहाव कब करिहौ ? ’
तो बताओ का करी ?’
अरे , न होय तो ,पुरबह वाला चारि बिगहा वाला खेतु बेंच लेव| ’
दद्दू ,खेतु घरहे म रहि जाय ..कोई दूसर उपाय बताओ|’
और हम का बताई , न होय तो अपने भतीजे महेसवा का दिल्ली लै जाओ ,यहू का चौकीदारी मा बहाली करवाय देव,तो  तुमरी बिटिया बेहि जैहैं| लरिका मिलतै खन बिहाव हुई जाई|’
ठीक है दद्दू! कोसिस कीन जाई, नई बहाली अबै बंद हैं|’
दुसरे दिन मनोहर दिल्ली लौटि आये|मनोहर अपने भतीजे के लिए सबते चिरौरी कीन्हेनि मुला कहूं बात न बनी|महीना बाद महेसवा घर लौट गवा| चार दिन बादि रामेसुर कि चिट्ठी आयी|वहिमा लिखा रहै-‘ महेस कि नौकरी तो लगी नहीं अब अपने हिस्से कि जमीन हमरे नाम कइ देव औ सीता गीता कि चिंता से आजाद हुइ जाव|’
चौकीदारी म जादा छुट्टी न मिलत रहै| राति मा सीटी, डंडा फटकारे के अलावा दिन मा प्रिंसिपल कि सेवा..लेकिन हियाँ साफ़ सफाई औ मेहनत के मामिले म गाँव ते जादा मस्ती रहै|टाइम पर घंटी बजावैं औ साहेब कि मेज मनोहर बड़े मन ते चमकावति  रहैं | अब तिरबेनी मास्टर रिटायर हुइगे रहैं |वुइ अपने गाँव लौटि गे रहें|दुःख तकलीफ बतलाय वाला हिंया दिल्ली म कौनौ न रहै| आज फिर वाहिका वह बिटियन के बियाहे कि सौदेबाजी यादि आयी|
थोरे दिन मनोहर चुपान रहे ,लेकिन याक दिन सुबेरे गाँव ते फोन आवा रहै  -‘हम लकड़बग्घा बोल रहेन  हैं...’
‘दादा पांयलागी,.. ’ रामेसुर की आवाज पहिचाने म देर न लगी| रमेसुर गाँव जवार म अपन जलवा बनाए रहें| उनके भौकाल के तई गाँव के लरिका उनका लकड़बग्घा कहै लाग रहैं|
‘ठीक है दादा ,तुम जौन कहत हौ ,हमका वहु मंजूर है|..हम अपन सब जमीन तुमरे नाम कर देबै,तुम लरिका देखि लेव|..हमारी सीता गीता क अब तुमहे पार घाट लगैहौ|..हम येही हफ्ता म आइत है| दादा!..अब बिटिया पैदा कीन है,तो वाहिकी सजा हमहे भुगतब|’
‘हाँ तो पहिले हमरे नाम दाखिल खारिज कराओ तब आगे बियाहे कि कौनिव बात होई| तुहार कौन भरोसा ...’
मनोहर अपने हिस्से कि जमीन रमेसुर के नाम करा दीन्हेनि| फिर दुनहू बिटेवन के बियाह रमेसुर अपने हिसाब ते निपटा दीन्हेनि रहै| मनोहर सब खेती बिटेवन के मारे अपनेहे भाई ते हारि चुके रहें| बिटेवा अपने घर की हुइ गयीं | बाप ते उनका जादा संबंध कबहू न बनि पावा,वुइ दुनहू लकड़बग्घा के भौकाल ते जुडी रहैं|
अब मनोहर खुद का कटी कनकैया ताना बेघर महसूस करइ लाग रहै|रिटायरमेंट के बादि गाँव जाय कि वहिकी इच्छा अब मरि गइ रहै|हालांकि स्कूल म सबते यहै कहेनि कि गाँव जाय रहें है लेकिन वुइ नन्द नगरी की मलिन बस्ती म एक कमरा वाला मकान लै के रहै लाग| अब उनका लाखन रुपया रिटायरमेंट पर मिला रहै|बिटिया दामाद उनते संपर्क कीन्हेनि मुला मनोहर अब गाँव कि सब नातेदारी त्याग दीन्हेनि रहै|अब उनका नन्द नगरी म महुआ मिलि गय रहैं| महुआ चार घरन म चौका बासन करति रहै|मनोहर वहिते अपन खाना बनवावे लाग|धीरे धीरे महुआ कब मनोहर के घर ते मन मा समय गयीं कुछ पता न चलि पावा| यवै याक दिन पान कि दूकान पर दुनहू कि मुलाक़ात भइ रहै| दुनहू बीड़ी पियै के सौखीन रहैं| महुआ के आगे पाछे कोऊ न रहै| मनोहर अपने आगे पाछे वालें क त्यागि चुके रहें|बरसन बादि महुआ औ मनोहर जिन्दगी कि खुसी क मतलब समझेनि रहै| अब महुआ मनोहर साथै रहै लाग तो महुआ दुसरे घरन का चौका बासन बंद कइ दीन्हेनि |
अब दुनहू अपनी नई दुनिया म मगन रहें| अब अपन घर दुआर दुलहिन सब मनोहर जुटाय लिहिन तो याक दिन महुआ पूंछेसि- ‘हम दोनो सादी कइ लें ?’
मनोहर कहेनि –‘काहे सादी बियाह कि क्या जरूरत है..? यही तना लिव इन ...म रहबै | तुमका कोई तकलीफ है का?’
‘नाहीं ...हमरे कौन बैठा है पूछे वाला...’
‘तो चलौ फिलिम देखे चली ...ईडीएम म इश्किया लगी है| हमका ऊ ‘आजा रे संवरिया’ वाला गाना बहुत नीक लागति है|’
महुआ मनोहर कि जिन्दगी म जैसे जैसे दाखिल भय,मनोहर कि सब पुरानि जिन्दगी मानौ खारिज हुइगै रहै|अब मनोहर क महुआ के अलावा कुछ यादि न रहै|


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