रविवार, 10 नवंबर 2024

Pagaliya ki amma/ awadhi kahani/ by bhartendu mishra

पगलिया कि अम्मा (अवधी कहानी) भारतेन्दु मिश्र सी-45 / वाई - 4 ,दिलशाद गार्डन ,दिल्ली -110095 Gmail: b.mishra59@gmail.com Mob. 9868031384    रामलखन ईंटन के भट्ठे पर काम करत रहै ।गाँव ते दिल्ली आये वाहिका बीस बरस भे रहै।,ऊ सुन्दरनगरी माने दिल्ली गाजियाबाद बार्डर कि याक मलिन बस्ती मा अपन ठीहा बनाय लिहिस। ऐसी बस्ती नेतवन का बहुत नीकी लगती हैं ।समस्या औ आभाव कि जमीन पर वादे औ सपनन केरि दुकनदारी फलत फूलत अहै ।हिंया जादातर एक्कै कोठरी वाले मकान रहैं रोसइया औ सौचालय कौनेव मकान मा न रहै। कोई जमाने मा पॉश दिल्ली ते उठायके विस्थापित परिवारन का बार्डर पर घर दीन गे रहैं। फिर आबादी बढ़त गय दलित निर्धन औ विकलhaniांगन के साथै पूर्वी उत्तरप्रदेश औ बिहार के  हजारन कमासुत मंजूरन कारीगरन औ प्ल्म्बरन केरि या बस्ती धीरे धीरे घनियात चली गय ‌।अब हिंया हुनर वाले कारीगरन कि कमी नाई है। , सबका पेट  भरै लायक काम  मिलिही जात अहै ।यही तीर आनंद ग्राम माने कुष्ठ आश्रम हवै।आनंद ग्राम कि दुनिया बहुतै  अजूबी है ।यही तीर उत्तर पूर्वी दिल्ली का जिला मुख्यालय चमकत अहै ।कइयो  दफ्तर होय के नाते बड़के अधिकारी, वकील नेता औ एनजीओ वाले मुलाजिमन कि गहमागहमी हमेसा बनी रहत अहै । रामलखन कि दुलहिन सीमा भोरहरे ते तीन चार घरन मा चौका बासन झाडू करत अहै तीकै नगर निगम के स्कूल मा लरिकवन का मध्याह्न भोजन वितरण के समय मदत करै सकूल पहुँच जात अहै । एक्कै एनजीओ वाली मैडम वहिका बारह  सौ रुपया महिना  देती  हैं। सकूल मा वा एक घंटा काम करत अहै लरिकवन का खाना बंटवायके सफाई केर काम निपटायके अपनी खातिर कुछ खाना लैके लौटत अहै। लेकिन अउरे घरन दूकानन मा सफाई केर काम करैम वहिका रोज करीब पांच घंटा घर ते बाहर रहैक परत अहै ।राम लखन तो पूरै दिन बाहेर रहत अहै ।रामलखन तो दसवीं पास रहै मुला सीमा बस आपन नाव लिखि पावत अहै ।चालिस कि उमिर होत होत रामलखन के तीन लरिका बच्चा हुइ गे रहैं । रचना  के बादि राखी  बिटिया औ सुनील दुसरका लरिका पैदा  भा।ई हाण तोड़ मेहनत के बादिव वहिकी कौनिव तरक्की तो न भय । मुला तरक्की के नाव ते परिवार अउरु बढ़िगा रहै ।अब कोठरी केर केरावा तीन हजार हुइ गा रहै।रामलखन कहूं नीक नौकरी करत होतै तो अउर बात होतै।आखिरकार गरीब मेहनती मनई तकदीरै का रोवत रहि जात अहै ।वहिकी तकदीर मा तो कुछ अउरुइ गलत लिखा रहै। वहिकी तकदीर द्याखौ कि राखी औ सुनील के अलावा वहिकी  बड़कई  बिटेवा रचना  मानसिक दिव्यांग पैदा भै। जब सब घरन के मनई अपने अपने काम पर जात अहैं तो रचना का कोठरिया मा बंद कीन जात अहै ।परोसी या दूसरा कौनो वहिका संभार नहीं सकत।याक दिन कै बात होय तो कोई मदत करिव  दे मुला लगातार को संभारै ईबिध की पागलिया बिटेवा का ।अब परोसिए सीमा केर नवा नाव धर दिहिन रहै- ‘पगलिया  कि अम्मा‘ सीमा पहिले कई दफा परोसिन ते ई बात पर लड़ी झगड़ी मुला धीरे धीरे वा ई बेइज्जती का आपन किस्मत समझ लिहिस ।याक दिन जब  रामलखन ते वा चर्चा कीन्हेसि तो ऊ कहेसि- ‘ईमा का चिढ़ना,जब आपन  रचना  पागल है तो का कीन जाए ? ईका कहूं दूर लैके  चुप्पे छोड़ि आओ ।जियै मरै अपनी किस्मत ते ..।’ ‘अरे, तू बाप आय कि कसाई ? अपनी संतान बंदे  ऐसे को सोचत अहै.?’ सीमा मंसवा क विरोध किहिस । ‘मैं सही कहत अहौं...सबका आजादी मिल जाई..अपने जो दुइ अउर बच्चा हैं उनकी जिन्दगी सवांर ले ..या ठीक न  होई ..कौनेव लायक नही है या ..कौन करी ईते सादी बिहाव? कैसे कटी ईकी जिन्दगी....’ ‘तुम रहै देव, मैं कुछ करिहौं...’ सीमा  हार न मानेसि। बारह साल पहले जब रचना  पैदा भै रहै तो वहिकी सकल आम लरिकन ते कुछ अलग रहै।डॉक्टर  बताइन रहै कि या बच्ची  स्पेशल  है ।तब बिटेवा हाँथ पावन ते बिलकुल ठीक रहै।रामलखन औ सीमा बहुत दिनन तक जनिही न पाए कि उनकी  रचना  स्पेशल काहे हवै ?,पैदा होत समय वा रोयी न रहै ।अब वा बेमतलब रोवै खीझै लागत  अहै ।रचना  कि खोपड़ी औसत ते कुछ बड़ी रहै,हाँथ पांव कमजोर रहैं। बैद हकीम ओझा सबके दरबारन म गये । अस्पतालन  के खुब धक्का खाए के बादिव बीमारी का पता न चला ।जौन मज़ार औ मंदिर मनई बताएसि सीमा सब जगह दौरि दौरिके रचना  का लै गय मुला वहिकी हालत टस से मस न भै ।याक दिन  भिखारी मंगलू बाबा सलाह दिहिन - 'ईका चौराहे वाले हनुमान मंदिर के समुहे लैके बैठा कर। अच्छी कमाई हुइ जाई,मंगल शनीचर दुइ दिन बैठिहौ तो हफ्ते केर खर्चु निकरि आई। ई सब कोढ़ी  हुवनै बैठत है ना । '  सीमा अपनी किस्मत पर  बहुत रोई।अब वा सबके कहै सुनै का विरोध करब छोड़ दिहिस रहै।सबकी सुनै मुला अब कौनिव बात का बुरा न मानत रहै।वा सोचत रहै कि जब ऊपरै वाला वहिके साथ बुरा किहिस है तो दूसरे कौनिव मनई कि बातका का बुरा माना जाय।  याक दिन जब एनजीओ वाली मैडम का सीमा अपनी रचना केर किहानी सुनाएसि  तो मैडम वहिकी मदत कीन्हेनि ।वुइ सीमा के साथ बड़े अस्पताल गयीं ,बड़े अस्पताल मा याक महिना बाद केर तारीख मिली मुला सीमा रचना का उठाए बेतहाशा यहर वहर फिरत रही। अबतक कुछ पता न चल पावा।फिर जब  मानसिक अस्पताल मा बड़े डाक्टर का दिखावा गा तो याक दिन डाक्टर रामलखन औ सीमा का समझायेसि - ‘ तुम्हार बच्चा स्पेशल है ।ईका दिमाग थोड़ा कम रही ।बहुत संभारैक परी..’ ‘हम गरीब मनई साहेब ..कैसे का करबै..?’ ‘हजारन मा एक दुइ बच्चा ऐस  होत अहैं।कुछ टेस्ट कराइबे फिर अउर बातै पता चलिहैं।’ रामलखन अब बिल्कुल निरास हुइगा रहै।सीमौ सोच लिहिस रहै कि अब यहै ऊपरवाले केर मर्जी आय।वहिका दुलार अब दुसरे लरिकन खातिर बढ़िगा रहै।गरीबी के साथ ई मानसिक दसा वाली बिटिया उनके जीवन पर भारी बोझ रहै। सीमा याक दिन फिर एनजीओ वाली मैडम ते रचना  के बारे में पूंछेसि।मैडम रचना केर आई क्यू टेस्ट करवाइन। कइयो दिन, कइयो बैठकन मा वहिका टेस्ट भवा।रपोट आयी तो पता चला कि वहिकी दिमागी हालत ठीक नहीं  है ।आम तौर ते मनई केर आई.क्यू सत्तर  से अस्सी  के बीच म होत अहै। मुला रचना  केर आई.क्यू.कुल सैंतिस रहै। टेस्ट रपोट देखे के बादि अस्पताल  वाली बहन जी बतायेनि - ‘या अपने आप खाना न खाय पायी,सौच न कइ पायी,कुछो बोल बताय न पायी।अगर खोय जाय तो लौटके  घरै न आय पायी ।बहुत सावधानी बरतेव तुम्हार बिटिया स्पेशल है सीमा !’ ‘तो बहन जी! कहौ कि या पगली  है …. ’ ‘.नाहीं...पागल कहब ठीक नहीं है या स्पेशल है,ईकी बुद्धि कम है माने मंदबुद्धि है ।’ ‘तो या बड़ी  हुइके का करी ..? कौनो..काम ..काज..मतलब. ईकी जिन्दगी....’ ‘सीमा, अबहिने से बिटिया के कामे काजे की बातै कइ रही हौ?या अपन निजी काम खुद कइ ले तो बड़ी बात होई….’ ‘बहन जी, भगवान ऐस बच्चा काहे बनावत अहै ..? पिछले साल बड़े डाक्टर का दिखाये रहे ,वहो यहै बताइन रहै कि या ऐसेहे रही ..कबो मन मा आवत अहै कि या मरिन जाय ‘ ‘का कहती हौ सीमा,तुम्हार अपन बिटिया आय, नौ महिना खून ते सींचे हौ, तुम  ऐस बात करती हौ?’ ‘हम बहुत गरीब मनई हन।बहन जी ,ईका बापौ यहै चहत अहै ।राखी औ सुनील के पैदा होयके बाद ते ईका बाप चहत अहै कि या मर जाय। ऐसी बिटिया का को पाली…हम तो मंजूर मनई। ’ रचना बड़ी  होत गय। सीमा वहिका  कोठरी म बंद कइके कामे पर जाय लागि।अब वह  बारह साल कि हुइ गय रहै ।याक दिन मोहल्ला परधान  ते पता चला कि  ऐसे  बच्चन  का दाखिला सरकारी सकूल मा हुइ सकत अहै ।वा एनजीओ वाली मैडम ते पूंछेसि तो मैडम बतायेनि - ‘सीमा ,दाखिला तो हुइ जाई मुला.ईके खातिर देखभाल करै वाली आया कि जरूरत होई...ई सकूल मा आया नहीं है।’ या कुछ पढ़ लिख ले...तो मुमकिन है ईकी आगे केरि जिन्दगी कुछ ठिकाय जाय ।’ ‘तुम  ठीकै सोचती हो सीमा! मुला.यि जादा पढ़ लिख न पायी।...कुछ ईका व्यवहार ठीक हुइ जाय बस जादा उम्मीद न करो ।पता करौ समग्र शिक्षा योजना (एस एस ए )ते ईका का मिल पायी।’ सीमा रचना का लैके दाखिला करावै सकूल गै।अब वहिके तीर सरकारी पम्फलेट रहै वहिमा लिखा रहै - स्पेशल बच्चों के लिए दाखिला अभियान ।वहै कागज लैके वा पास सकूल गय। हुआं याक खुर्राट मास्टर साहब मिले वुइ समझायेनि - ‘सरकार दाखिला अभियान तो चलाय रही है, मुला पढ़ाई तो भूल जाओ,तुम्हार या बिटिया तो सकूल मा बैठिही न पायी। सरकारी सकूलन मा तुम तो देखिही रही हौ केत्ती भीड़ हवै। तुम्हरी बिटिया का बहुत देखभाल केरि जरूरत हवै। सकूल मा अबहीं यहिका पढ़ावै वाला कौनो टीचर नहीं है । कौनो  दूसर लरिका ईका धकेल देई तो या उठिव न पाई । सरकारी सकूल के लरिकवा बहुत बदमास होत अहैं ...येहिका खेलौना बनाय लेहैं ,चोट चपेट लाग जायी तो ..मर मरा जायी  ... लेने के देने पड़ जैहै ।ईका घरहिम  रखो | ’  ‘ साहब ! का या कुछौ न सीख पायी ...’  ‘बुरा न मानेव, तुम ही बताओ या का सीखी ..या तो बेसुध है...समझो पगलिया है…।’ बहुत मिन्नतें करत रही सीमा लेकिन रचना  का दाखिला सकूल म न भवा। वा फिर एनजीओ वाली मैडम ते बात कीन्हेसि।मैडम याक चिट्ठी लिखिकै सीधे मुख्यमंत्री  के पते पर भेज दिहिन ।चिट्ठी  रंगु देखायेसि घूमत भई वा चिट्ठी शिक्षा विभाग के बड़े अधिकारिन के लगे पहुँची।औ महिना  बाद सीमा का फोन बजा - ‘हेलो ! सीमा जी ,रचना  की मम्मी बोलती हौ ..’ ‘जी साहब ! आप ?’ ‘हम शिक्षा विभाग के दफ्तर ते बोलित अहै.. आपनी रचना बिटिया बिटिया  का लै जायेके पास वाले सकूल मा दाखिल कराय लेव।’ ‘साहब! हम गए रहन, मुला दाखिला नहीं भवा... ’ ‘कोई बात नहीं अबकी अउर चली जाव..बात हुइ गय है। प्रिसिपल ते सीधे मिलेव ...दाखिला न करें तो  बताएव ।’ सीमा रचना  का कनिया लैके सकूलै गय तो दाखिला इंचार्ज फिर बकवाहि करै लाग- ‘तुम याक दफे मा नहीं समझिव ...ईका दाखिला न होई। यहिकी हत्या केर पाप सकूल पर  मढ़ा चहती हौ ?’ सीमा फिर हाथ पांव जोरेसि कहेसि मोहिका तुम्हार बड़े साहब फोन कैके बोलवाइन हवै। मोर दुइ बच्चा हिंयै पढ़त अहैं ।..लेकिन मास्टर साहब अबहिउ वहिकी बात न सुनेनि।वा कहेसि मोहिका प्रिंसिपल साहब ते मिलना है तो मास्टर साहब अउर गरम  हुइ गए । दाखिले की भीड़ रही,कुछ मास्टर साहब कि दबंगई ।उनका यही मा  मज़ा  आवति रहै।अबतिक सीमा अड़ी रही मुला मास्टर साहब न  माने।वहिका प्रिंसिपल ते मिलै न दिहिन ।खिसियाय के बोले -- ‘तुम अब हिंया ते निकरो,यू पागलन का सकूल न आय। ,बकवाहि करे जाय रही हौ …..जा हमहे प्रिंसिपल हन ..कहि दीन, न होई दाखिला ।  तुम कहौ तो तोरे दुसरे लरिकन केर नाव काटि देई? ..लै जा सबका।’  ‘ नहीं ..साहब,वुइ तो दुनहू ठीक हैं, उनका काहे निकार देहो ?...’ ‘हाँ तो अब हिंया से भागौ..खखेड़ बहुत हुइगै..’ सीमा निरास हुइके फिर लौटि आयी। वा सब बात एनजीओ वाली  मैडम ते कहेसि। मैडम डायरेक्टर ते बात किहिन। अधिकारी अपन कमी छिपावत भए मैडम ते कहिन- ‘रचना केर दाखिला हुइ चुका ..हमरे पास सूचना आय गय है ।’ ‘वहिकी दाखिला रपोट हमका चही?’ ‘जी मैडम..आप कल चार बजे तक मंगवाय लेव।’ ‘ठीक है,सर लेकिन वहिमा अउर प्रस्ताव रहै कि नंद नगरी मा एक स्पेशल स्कूल बनावा जाए..या बिटेवा तो स्पेशल है ...’ ‘जी मैडम,आपकेर प्रस्ताव सोशल वेलफेयर विभाग का भेज दीन गवा है। शिक्षा विभाग मा स्पेशल स्कूल खोलै  का कौनो प्रावधान नाई है ।...हम तो सबै सकूलन का समावेशी बनाय रहे हन। सब सकूलन मा बिसेस सिक्षकन केर भर्ती हुइ चुकी है।’ ‘लेकिन जो माडरेट कैटेगरी के दिब्यांग हैं उनका का..? उनका सामान अवसर कौन देई ? ..उनका मौलिक अधिकार...’ ‘जी हम तो बस  दाखिला करवाय सकित है।,सकूल मा कौनो कमी होय तो ठीक कराय  सकित अहै।..ईका मिले वाला फंड , पढ़ाई लिखाई केर सामान,मध्यांन्ह भोजन देवाय देबै,बाकी स्पेशल सकूल खोलै कि कोई योजना नहीं है ।..आप चाहो तो अपनी एनजीओ ते सुरुआत करो. समग्र शिक्षा ते कुछ फंडिंग होय सायद ।’ ‘ओके ..थैंक्स ..सर ! ’ डायरेक्टर फोन धरिके अपने पीए ते कहेसि- ‘सुन्दर नगरी  इलाके के उपनिदेशक से बात कराओ …’ ‘यस सर !...जी ..ये शर्मा जी फोन  पर हैं…’ -पीए कहेसि ।’ ‘शर्मा जी ,सुन्दर नगरी म कौन है प्रिंसिपल..?’ ‘जी सर! .. अब्बै बताइत अहै...’  मुख्यमंत्री जी के कार्यालय ते चिट्ठी आयी रहै डायरेक्टर साहब गुस्सा रहैं वो बोलत गये - ‘आप का बतइहो..? जानकारी टेबल पर होबै न करी? अब सुनो … चार बजे तक दिव्यांग  लड़की रचना  केर एडमीशन नंबर चही.. हुआं बिसेस सिक्षक कौन है, वहिका डिटेल भेजो। प्रिंसिपल का शोकॉज देव.चारि बजे मतलब चारिन बजे।’ ‘यस सर !...भेजित अहै।’ शर्मा जी फोन बंद होतै अपन ड्राइवर बोलवायिन, गाड़ी  निकरवाइन ।याक और अधिकारी का साथ लिहिन औ  सकूल खातिर चल पड़े।दुनहू  नौकरी कि कठिनाई ,ज़माना बदलै औ दिव्यांग बच्चन के दाखिला अभियान पर बातलात रहे ।दुनहू सरकार के फैसले पर हसत रहे। ड्राइवर कहेसि - ’अब  गूंगे बहरों, अपंगन औ पागलन का नार्मल सकूल मा दाखिल करावा जाई तो सकूलन  कि हालत का हुइ जाई?’.. दूसर कहेसि -.मतलब सामान्य लरिकन की पढाई लिखाई गय भाड़  मा..। शर्मा जी बोले- ‘सब जने  चुप रहौ...अपन नौकरी बचाओ।’ .एनजीओ वाली चिट्ठी मा रचना  का पता लिखा रहै।वहिका घर सकूल ते नेरे रहै। सकूल के गेट पर पहुंचतै शर्मा जी शिक्षा अधिकारी ते कहिन - ‘ईके  पते पर जायके द्याखौ बच्ची  कौने हाल म है । मिल जाए तो साथै लै आयेव।वहिका दाखिला कराना है ,एडमीशन नंबर अबहिनै हेडक्वाटर  भेजना है..’ ‘यस  सर ! ड्राइवर कहेसि सर,सकूल से एक मास्टर का साथ  लै लेई तो घर ढूढैम आसानी रही? ’ ‘ठीक अहै,कुछौ करो  ,वहिका लै आओ..’ सरकारी टीम रचना  का पता खोजत भये वहिके घरै पहुंचे ..लेकिन कमरे पर ताला लगा रहै ।परोसिन ते मालूम भा कि वहिकी अम्मा काम पर गय है अउर रचना  अकेलि  कमरे म बंद है । कमरे ते कुछ घों घों जैसी आवाज आवत रही।परोसिन की मदत ते सीमा का बुलवावा गवा । सीमा का देखतेहे अधिकारी डांटै लगे- ‘ऐसे बच्चे कि क़ैद कैके रखती हौ..शर्म नहीं आवत , या कौन गुनाह किहिस है ? तुम अम्मा हौ कि जल्लाद?’ ‘साहब ! नमस्ते..गरीब मनई हौं, पेट  के बरे मंजूरी करित अहै.. ईका खुला  नहीं छोड़ सकित ...ईका दिमाग…..’ ‘चलो कोई बात नहीं ईके  कागज़ होय तो लै लेव, सकूल म  दाखिला कराना है।’ सीमा मुस्क्यानि, रचना  के कागज़ औ रचना का कनिया लैके  चल परी। अधिकारी  वहिका गाड़ी मा बैठाय लिहिन। पांच मिनट म सकूल आय गवा ।  उपनिदेशक शर्मा जी बहुत गुस्सा रहैं। पता चला कि दाखिला इंचार्ज मास्टर सीमा का कबो प्रिंसिपल ते मिलै नही दिहिस। मास्टर साहब का तत्काल ट्रांसफर आर्डर प्रस्तावित भवा।प्रिंसिपल साहब का शोकॉज मिला औ तत्काल शिक्षा के मौलिक  अधिकार के अंतर्गत रचना  का कक्षा  छह  मा दाखिला दीन गवा। वहिका एडमीशन नंबर सीधे  ई मेल ते डायरेक्टर साहब क सूचित कीन गवा। सीमा बहुत खुस भै,रचना  प्रिंसिपल साहब के कमरे म रखी कम्प्यूटर टेबल तीर  कुर्सी पर बैठिगै।वा खड़े हुइकै कम्प्यूटर के कीबोर्ड  पर अंगुरी फिरावै लगी। सीमा वहिका रोकै के लिए दौड़ी मुला उपशिक्षा निदेशक सीमा का रोक विहिन ।रचना  हरमुनिया कि तना कम्प्यूटर के कीबोर्ड पर अंगुरी फिरावत रही  ।वहिके चेहरे  पर रुहानी मुस्कान झलकै लगी रहै। उपशिक्षा निदेशक कहेनि -’बहुत खूब.. प्रिंसिपल साहब ! अब या बच्ची हिंयै पढै आयी । सीमा जी आप रोज ईके साथ ही आयेव। आपके दूसर बच्चा हिंयै पढ़त अहैं ईकी देखभाल खातिर उनहुक तयार करो। वाह,वाह, कित्ती पवित्र है यहिकी हँसी ,यहिकी खुसी..। हम जानित अहै , या सामान्य बच्चन की तरह पढ़ लिख न पाई मुला कुछ  घंटा आजाद रहिके अपने हमजोली बच्चन का देखी  तो जीवन केर व्यवहार जरूर सीखी। प्रिंसिपल साहब! अगर ईका कुछ हद तक  आत्मनिर्भर बनावा जा सकै तो ईके के लिए बहुत बड़ी शिक्षा होई। ईके जीवन म तनिको बदलाव लाय सके तो आपके शैक्षणिक  जीवन का सबते बड़ा पुरस्कार होई ।स्पेशल एजूकेटर ते केस स्टडी करवाओ औ तीन महीने के टार्गेट वाली  आई.ई.पी. (व्यक्तिगत शिक्षा योजना) हमका एक सप्ताह म चही । ’ ‘यस सर ! . जरूर।’ रचना तनिक किटकिटाते भए ‘ ऊह ऊह ‘..कैके मुस्काय लगी । वहिकी अम्मा की आँखिन से आंसू बहै लगे।शर्मा जी पूछिन आप काहे रो रही हौ? ...अब तो दाखिला हुइगा? ‘साहब मैं तो खुसी के मारे रोवत हौं।  या रचना  जब दांत किटकिटायके ऊह ऊह करत  अहै तो बहुत खुस होत है, माने अब देवी बहुत खुस हैं ।’  ‘चलिए,आप क बच्चा खुस, आप खुस, तो बहुत बढ़िया बात हवै।कोई दिक्कत होय तो लेव हमार कार्ड रक्खो ..कोई जरूरत होय तो हमका बतायेव।’ उपशिक्षा निदेशक  रचना ते हाँथ मिलाइन।वहिके सिर पर हाँथ फिराइन औ चले गये।  रचना  बंद कोठारी ते निकरके खुले आसमान म अपने हमजोली लरिकन का देखके हंसै लगी । अब्बै वहिकी राह आसान न है रहै।संझा का सीमा रामलखन का सब किस्सा बतायेसि। ..लेकिन रामलखन का जादा खुसी न भय।वो कहेसि- का करिहौ... पगलिया  कि पवित्र हँसी ते का होई? का ईकी हँसी देखके ईकी शादी हुइ जाई?…. जेतने दिन जिंदा रही बोझ बनी रही । ईकी चिंता छोड़ ..दुसरे बच्चन का संभार। या हनुमान मंदिर पर बैठे लायक हुइ जाए तो बताय दिहेव। मंगल बाबा कहत रहैं , दुइ हजार रुपया महीना देहैं।’ सीमा रात भर रचना  का छाती ते लगाए  सिसकत रही । बाप केर ई बिचार वहिका करेजु फारे देत रहैं।लेकिन गरीबी औ बिटिया की दिव्यांगता केर कौनो समाधान न रहै। तेहूं दाखिले के बाद अब वहिका उजास केरि कौनिव किरन झलकै लागि रहै।