पन्डित शिवराम मिश्र शिक्षक कवि सम्मान -2010
निर्णायको के मूल्यांकन के आधार पर पं.शिवराम मिश्र शिक्षक कवि सम्मान -2010हेतु डाँ.अशोक अज्ञानी का अवधी गीत संग्रह-सबका राम जुहार-प्रकाशन वर्ष-2008 का चयन किया गया है। इस पुस्तक के सन्दर्भ मे प्रो.सूर्य प्रसाद दीक्षित का मानना है - ”प्रस्तुत कृति डाँ अशोक अज्ञानी के सहज भावो का प्रतिफलन है।इसमे अवधी की सोंधी सुंगध है अवध की माटी इनके इन गीतो मे जीवंत हो उठी है।“
डाँ अज्ञानी की अवधी लोक गाथाओ पर आधारित शोधकृतियाँ-1खुनखुनिया2माहे –परसू3.धिरवा पहले ही लोक साहित्य मे अपनी पहचान बना चुकी है। अज्ञानी द्वारा सम्पादित लोकसाहित्य की तिमाही पत्रिका अमृतायन का अपना अलग महत्व है।
इस सम्मान हेतु डाँ.अज्ञानी को बधाई।
रश्मिशील
3/1 टिकैत राय काँलोनी,लखनऊ 226004
फोन 09235858688 rashmisheel.shukla@gmail.com
सोमवार, 28 दिसंबर 2009
बुधवार, 18 नवंबर 2009
report on avadhi language convention
रपट
अवधी भासा संगोस्ठी (16-17 नवम्बर 2009)
साहित्य अकादमी,नई दिल्ली अउरु अवधी अकादमी ,गौरीगंज सुल्तानपुर-उत्तर प्रदेश के सहयोग ते साहित्य अकादमी ,नई दिल्ली के सभागार मा 16-17 नवम्बर 2009 का दुइ दिन कै संगोस्ठी क्यार आयोजन कीन गवा। इतिहास मा पहिली दफा देस कि राजधानी दिल्ली मा अवधी भासा क्यार ऐस मनोरम समारोह सम्पन्न भवा। यहि संगोस्ठी क्यार ब्यौरा ई तना है-
पहिल दिनु(16,नवम्बर-2009)
सबेरे पहर करीब 10 बजे उद्घाटन भवा।सबते पहिले साहित्य अकादमी के सचिव -अग्रहार कृष्णमूर्ति सब अतिथिगणन क्यार स्वागत कीन्हेनि।अवधी अकादमी की तरफ ते भाई जगदीश पीयूष अतिथिंन क्यार परिचय करायेनि।साहित्य अकादमी के उपाध्यक्ष श्री एस.एस.नूर ई बेरिया कहेनि-
‘अवधी भाषा हिन्दी की वल्लरी है।वह कोई गुलाम भाषा नही है।अवधी की अपनी संस्कृति है,उसका विकास होना चाहिये।अवधी 20 करोड लोगो की भाषा है।‘
यहि मौके पर संगोस्ठी केरि अध्यक्षता करति भये साहित्य अकादमी के अध्यक्ष श्री सुनील गंगोपाद्ध्याय अपन बिचार ब्यक्त कीन्हेनि
-‘अवधी भाषा का बडा महत्व है।साहित्य अकादमी अब 22 भाषाओ पर काम कर रही है। अवधी को भी साहित्य अकादमी की भाषा बनाया जाना चाहिए।’
यहि अवसर पर लखनऊ ते पधारे डाँ. सूर्य प्रसाद दीक्षित संगोस्ठी क्यार बीज भासन बडे विस्तार से प्रस्तुत कीन्हेनि। वइ बतायेनि कि -अवधी भारत के अलावा फिजी,मारीशस,नेपाल जैसे देसन मा बोली जाति है ,हुआँ के कबि अवधी मा लगातार लिखि पढि रहे है। खासतौर पर अवधी उत्तर प्रदेस के 40 जिलेने कि भासा है यहि के साथ अवधी बिहार के मुजफ्फरपुर के आसपास,छत्तीसगढ के इलाके मा अउरु मध्य प्रदेस के जबलपुर ,कटनी ,रीवा जैसे इलाके मा बोली जाति है। यह बडी प्राचीन भासा आय ।यहिका प्रयोग दसवीं सदी ते लगातार कीन जाय रहा है।- श्री के.एस.राव यहि मौके पर सबका धन्यवाद दीन्हेनि।
उद्घाटन के बादि पहिले सत्र मा सीतापुर ते आये डाँ.अरुन त्रिवेदी अवधी भासा की प्राचीनता पर बडी महत्वपूर्ण चरचा कीन्हेनि।वइ बतायेनि कैसे कोसली प्राकृत भासा ते अवधी भासा क्यार बिकास भवा।यहि सत्र मा लखनऊ ते आयी डाँ.बिद्या बिन्दु सिंह अउरु जगदीश पीयूष भाग लीन्हेनि। अगले सत्र मा अवधी भासा अउरु साहित्य पर चर्चा कीनि गय। यहि मा अवधेन्दु प्रताप सिंह, भारतेन्दु मिश्र,भूपेन्द्र दीक्षित,कमल नयन पान्डे अपन पर्चा पढेनि। यहि सत्र क्यार संचालन सुशील सिद्धार्थ किहिन।
तिसरा सत्र प्रसिद्ध आलोचक डाँ.विश्वनाथ त्रिपाठी की अध्यक्षता मा सुरू भवा। यहि सत्र मा अवधी का वर्तमान साहित्य पर बिचार कीन गवा। यहि सत्र मा लखनऊ वि.वि.हिन्दी बिभाग की प्रो.कैलास देबी सिंह,ज्ञानवती दीक्षित,सुशील सिद्धार्थ ,आद्या प्रसाद सिंह प्रदीप अपन पर्चा पढेनि। यहि सत्र मा ज्ञानवती दीक्षित,सुशील सिद्धार्थ,कैलास देबी सिंह के परचा बहुत नई जानकारी दे वाले साबित भये।सत्र के अध्यक्ष डाँ. त्रिपाठी कहेनि - ’हमको लगता है कि मै अपने घर मे बैठा हूँ।बहुत प्रसन्नता हो रही है। अवधी का लोक नाट्य बहुत विशाल अउर लोक रंजक रहा है।कुछ नुक्कड नाटक आने चाहिए।उत्तर प्रदेश मे संस्कृति भवन बने। ’
संझा का मेघदूत मुक्ताकाश रंगमंच पर मालिनी अवस्थी के सहयोगिन का अवधी लोक गायन तो बहुतै मार्मिक रहा।मालिनी अवस्थी देबी भजन ते जउनु सुरू कीन्हेनि तो फिरि आठ बजे तक अवधी लोक गीतन क्यार समा बाँधि दीन्हेनि।
दूसर दिनु(17,नवम्बर-2009)
पहिल सत्र भाषाविद डाँ.विमलेश कांति वर्मा की अध्यक्षता मा शुरू भवा। यहि सत्र मा विदेश मे अवधी की स्थिति पर गह्न बिचार कीन गवा। यहि सत्र मा-रवि टेकचन्दानी,हरमिन्दर सिंह वेदी,राकेश पांडे अपन पर्चा पढेनि। यहि सत्र मा राकेश पांडे क्यार पर्चा सबते जादा सराहा गवा। डाँ.वर्मा अपने अध्यक्षीय भाषन मा कहेनि- ‘सूरीनाम,फिजी,त्रीनिदाद आदि देशो मे प्रवासी भारतीय हिन्दी मे ही अपनी बातचीत करते है। उनमे से अधिकांश अवधी और भोजपुरी मूल के ही है। रामचरितमानस आउर उनका लोकमंगल ही सब्को जोडे हुए है। वे लोग अवधी पढना चाहते है हमे अवधी मे आँन लाइन कोर्स शुरू करना चाहिए।‘ यहि सत्र क्यार संचालन जगदीश पीयूष कीन्हेनि।
अगला सत्र डाँ. विद्याबिन्दु सिंह की अध्यक्षता मा सुरू भवा। यहि सत्र मा अवधी के सामने चुनौतिन पर बिचार कीन गवा।यहि स्त्र मा विजय कुमार मल्होत्रा,मधुकर उपाध्याय,भारतेन्दु मिश्र,कमल नयन पांडे,रामबहादुर मिश्र,प्रांजल धर, अपन परचा पढेनि। यहि सत्र मा अवधी पत्रकारिता,अवधी का मीडिया मा प्रयोग ,इण्टरनेट पर अवधी क्यार प्रयोग की बिधि होय जैसे बिसयन पर चर्चा कीनि गइ। यहि सत्र मा राम बहादुर मिश्र बतायेनि कि नेपाल देश ते अवधी भासा मा समाचार प्रसारित होति है। आज समाज के संपादक मधुकर उपाध्याय अवधी मा अपनि बात रक्खेनि।वइ अवधी के शब्दकोश बनावै कि जरूरति बतायेनि। यहि सत्र क्यार संचालन भारतेन्दु मिश्र कीन्हेनि।
अगला सत्र अवधी केरे लोक साहित्य पर केन्द्रित रहा।यहि सत्र केरि अध्यक्षता डाँ. सूर्यप्रसाद दीक्षित कीन्हेनि।ई सत्र मा बिद्याबिन्दु सिंह,पवन अग्रवाल,अरुण त्रिवेदी,जितेन्द्र वत्स,रामेन्द्र पांडे अपन लेख पढेनि।यहि बिसय मा सबते नीक परचा पवन अग्रवाल क्यार रहा। सबते काम क्यार अध्यक्षीय भासन रहै।डाँ.दीक्षित बिस्तार ते अवध केरि लोक परम्परा बखानेनि। बहुति नई जानकारी मिली।यहि बेरिया कुछ नये संकल्प लीन गये ,कुछ नये सुझाव दीन गये। लोक साहित्य के संग्रह –सर्वेक्षण-चयन-प्रकाशन आदि बिसय पर नीति बनाई जाय पर सहमति बनी।एकु ज्ञापन तयार कीन गवा।
अवधी कवि गोस्ठी: पूर्व राज्यसभा सदस्य मसहूर कबि बेकल उत्साही की अध्यक्षता मा अवधी क्बि अपनि कबिता पाठ कीन्हेनि।कबि गोस्ठी क्यार संचालन समकालीन भारतीय साहित्य पत्रिका के संपादक बृजेन्द्र त्रिपाठी कीन्हेनि। कबिन कि बानगी यहि तना है- ’महुआ चुवै सारी रात/जियरा सजन बिनु पिहिकै। कोहबर कै सुधि भइ सतरंगी/नेह पिया कै सुगना पंखी/सालै भाँवर सात।’-सतीश आर्य
हम कबिरा कै बेटा धारदार बोलबे नीक लागै चाहे नाही आर-पार बोलबे हम जायसी,रहीम,तुलसी के गाँव मा जौन बोलबे करेजवा निकारि बोलबे। -वाहिद अली वाहिद
यक समय रहा रहिला बेझरा खायेन औ ठंडा नीर पियेन सब रोग दोख ते दूरि रहेन सो बरस केरि जिन्दगी जियेन अब चाऊमीन ,बर्गर ,पिज्जा का हम फैसन ते खाइति है पाखाना तक ना साफ होय हम काँखिति है चिल्लाइति है।
-रामेश्वर प्रसाद द्विवेदी प्रलयंकर
तू पुरवा कइ रवानी भूलि जात्या ऊ चूनर धानी-धानी भूलि जात्या
देखौत्या चारि दिन गउँवा म रहिके
तो सारी लंतरानी भूलि जात्या।– जमुना प्रसाद उपाध्याय
का का हमरे मन मा ,का सब तुम्है बताई का
का चाहति हौ भाई आपन नाक कटाई का।–भोलानाथ अधीर
बरसै सँवनवा कै बैरी बदरवा
कजरवा धुलि-धुलि जाय मोरे राम धीर्व-धीरे डोलै पवन पुरवैया/पिया परदेसी भये है निर्दइया मारे झकोर बेदरदी पवनवा/अँचरवा खुलि-खुलि जाय मोरे राम।–विकलसाकेती
सोन चिरई के जियरा उदास हो आयी बगियन मा फूलन कि बास हो।–प्रमिला भारती
रुनुक-झुनुक बिछुआ बजै/नपै खेत खलिहान चैत मास चूनर चटक/झलकै गरब गुमान।–सावित्री शर्मा
छोटी अँगुरी की ताँई काटै अँगुरी जो बडी ई तौ कौनौ दैहिक समानता न कही जाय।–मनोज
गँउवाँ –गेरउआँ सहर भये बाबा सहर भये बाबा,जहर भये बाबा।–बिद्या बिन्दु सिंह।
जनम से पहिले मारिउ न हमका,बस इहै अरज हमार हो आये सवनवा तब के बनये गुडुई,के झूले अमवा के डार हो।–डाँ राधा पांडेय
रात सागर बहाय गयी अँखियाँ भोर होतइ झुराय गयी अँखियाँ उत्साही है तुम का जानौ कैसे बेकल बनाय गयी अँखियाम।–बेकल उत्साही यहि अवसर पर जगदीश पीयूष,बृजेन्द्र त्रिपाठी अपनी कविता पढेनि। कुल बात या रही कि सबके मन मा यहि संगोस्ठी ते अवधी भासा क्यार एकु नवा संसार देखायी दे लाग है।
सबका राम राम।
अवधी भासा संगोस्ठी (16-17 नवम्बर 2009)
साहित्य अकादमी,नई दिल्ली अउरु अवधी अकादमी ,गौरीगंज सुल्तानपुर-उत्तर प्रदेश के सहयोग ते साहित्य अकादमी ,नई दिल्ली के सभागार मा 16-17 नवम्बर 2009 का दुइ दिन कै संगोस्ठी क्यार आयोजन कीन गवा। इतिहास मा पहिली दफा देस कि राजधानी दिल्ली मा अवधी भासा क्यार ऐस मनोरम समारोह सम्पन्न भवा। यहि संगोस्ठी क्यार ब्यौरा ई तना है-
पहिल दिनु(16,नवम्बर-2009)
सबेरे पहर करीब 10 बजे उद्घाटन भवा।सबते पहिले साहित्य अकादमी के सचिव -अग्रहार कृष्णमूर्ति सब अतिथिगणन क्यार स्वागत कीन्हेनि।अवधी अकादमी की तरफ ते भाई जगदीश पीयूष अतिथिंन क्यार परिचय करायेनि।साहित्य अकादमी के उपाध्यक्ष श्री एस.एस.नूर ई बेरिया कहेनि-
‘अवधी भाषा हिन्दी की वल्लरी है।वह कोई गुलाम भाषा नही है।अवधी की अपनी संस्कृति है,उसका विकास होना चाहिये।अवधी 20 करोड लोगो की भाषा है।‘
यहि मौके पर संगोस्ठी केरि अध्यक्षता करति भये साहित्य अकादमी के अध्यक्ष श्री सुनील गंगोपाद्ध्याय अपन बिचार ब्यक्त कीन्हेनि
-‘अवधी भाषा का बडा महत्व है।साहित्य अकादमी अब 22 भाषाओ पर काम कर रही है। अवधी को भी साहित्य अकादमी की भाषा बनाया जाना चाहिए।’
यहि अवसर पर लखनऊ ते पधारे डाँ. सूर्य प्रसाद दीक्षित संगोस्ठी क्यार बीज भासन बडे विस्तार से प्रस्तुत कीन्हेनि। वइ बतायेनि कि -अवधी भारत के अलावा फिजी,मारीशस,नेपाल जैसे देसन मा बोली जाति है ,हुआँ के कबि अवधी मा लगातार लिखि पढि रहे है। खासतौर पर अवधी उत्तर प्रदेस के 40 जिलेने कि भासा है यहि के साथ अवधी बिहार के मुजफ्फरपुर के आसपास,छत्तीसगढ के इलाके मा अउरु मध्य प्रदेस के जबलपुर ,कटनी ,रीवा जैसे इलाके मा बोली जाति है। यह बडी प्राचीन भासा आय ।यहिका प्रयोग दसवीं सदी ते लगातार कीन जाय रहा है।- श्री के.एस.राव यहि मौके पर सबका धन्यवाद दीन्हेनि।
उद्घाटन के बादि पहिले सत्र मा सीतापुर ते आये डाँ.अरुन त्रिवेदी अवधी भासा की प्राचीनता पर बडी महत्वपूर्ण चरचा कीन्हेनि।वइ बतायेनि कैसे कोसली प्राकृत भासा ते अवधी भासा क्यार बिकास भवा।यहि सत्र मा लखनऊ ते आयी डाँ.बिद्या बिन्दु सिंह अउरु जगदीश पीयूष भाग लीन्हेनि। अगले सत्र मा अवधी भासा अउरु साहित्य पर चर्चा कीनि गय। यहि मा अवधेन्दु प्रताप सिंह, भारतेन्दु मिश्र,भूपेन्द्र दीक्षित,कमल नयन पान्डे अपन पर्चा पढेनि। यहि सत्र क्यार संचालन सुशील सिद्धार्थ किहिन।
तिसरा सत्र प्रसिद्ध आलोचक डाँ.विश्वनाथ त्रिपाठी की अध्यक्षता मा सुरू भवा। यहि सत्र मा अवधी का वर्तमान साहित्य पर बिचार कीन गवा। यहि सत्र मा लखनऊ वि.वि.हिन्दी बिभाग की प्रो.कैलास देबी सिंह,ज्ञानवती दीक्षित,सुशील सिद्धार्थ ,आद्या प्रसाद सिंह प्रदीप अपन पर्चा पढेनि। यहि सत्र मा ज्ञानवती दीक्षित,सुशील सिद्धार्थ,कैलास देबी सिंह के परचा बहुत नई जानकारी दे वाले साबित भये।सत्र के अध्यक्ष डाँ. त्रिपाठी कहेनि - ’हमको लगता है कि मै अपने घर मे बैठा हूँ।बहुत प्रसन्नता हो रही है। अवधी का लोक नाट्य बहुत विशाल अउर लोक रंजक रहा है।कुछ नुक्कड नाटक आने चाहिए।उत्तर प्रदेश मे संस्कृति भवन बने। ’
संझा का मेघदूत मुक्ताकाश रंगमंच पर मालिनी अवस्थी के सहयोगिन का अवधी लोक गायन तो बहुतै मार्मिक रहा।मालिनी अवस्थी देबी भजन ते जउनु सुरू कीन्हेनि तो फिरि आठ बजे तक अवधी लोक गीतन क्यार समा बाँधि दीन्हेनि।
दूसर दिनु(17,नवम्बर-2009)
पहिल सत्र भाषाविद डाँ.विमलेश कांति वर्मा की अध्यक्षता मा शुरू भवा। यहि सत्र मा विदेश मे अवधी की स्थिति पर गह्न बिचार कीन गवा। यहि सत्र मा-रवि टेकचन्दानी,हरमिन्दर सिंह वेदी,राकेश पांडे अपन पर्चा पढेनि। यहि सत्र मा राकेश पांडे क्यार पर्चा सबते जादा सराहा गवा। डाँ.वर्मा अपने अध्यक्षीय भाषन मा कहेनि- ‘सूरीनाम,फिजी,त्रीनिदाद आदि देशो मे प्रवासी भारतीय हिन्दी मे ही अपनी बातचीत करते है। उनमे से अधिकांश अवधी और भोजपुरी मूल के ही है। रामचरितमानस आउर उनका लोकमंगल ही सब्को जोडे हुए है। वे लोग अवधी पढना चाहते है हमे अवधी मे आँन लाइन कोर्स शुरू करना चाहिए।‘ यहि सत्र क्यार संचालन जगदीश पीयूष कीन्हेनि।
अगला सत्र डाँ. विद्याबिन्दु सिंह की अध्यक्षता मा सुरू भवा। यहि सत्र मा अवधी के सामने चुनौतिन पर बिचार कीन गवा।यहि स्त्र मा विजय कुमार मल्होत्रा,मधुकर उपाध्याय,भारतेन्दु मिश्र,कमल नयन पांडे,रामबहादुर मिश्र,प्रांजल धर, अपन परचा पढेनि। यहि सत्र मा अवधी पत्रकारिता,अवधी का मीडिया मा प्रयोग ,इण्टरनेट पर अवधी क्यार प्रयोग की बिधि होय जैसे बिसयन पर चर्चा कीनि गइ। यहि सत्र मा राम बहादुर मिश्र बतायेनि कि नेपाल देश ते अवधी भासा मा समाचार प्रसारित होति है। आज समाज के संपादक मधुकर उपाध्याय अवधी मा अपनि बात रक्खेनि।वइ अवधी के शब्दकोश बनावै कि जरूरति बतायेनि। यहि सत्र क्यार संचालन भारतेन्दु मिश्र कीन्हेनि।
अगला सत्र अवधी केरे लोक साहित्य पर केन्द्रित रहा।यहि सत्र केरि अध्यक्षता डाँ. सूर्यप्रसाद दीक्षित कीन्हेनि।ई सत्र मा बिद्याबिन्दु सिंह,पवन अग्रवाल,अरुण त्रिवेदी,जितेन्द्र वत्स,रामेन्द्र पांडे अपन लेख पढेनि।यहि बिसय मा सबते नीक परचा पवन अग्रवाल क्यार रहा। सबते काम क्यार अध्यक्षीय भासन रहै।डाँ.दीक्षित बिस्तार ते अवध केरि लोक परम्परा बखानेनि। बहुति नई जानकारी मिली।यहि बेरिया कुछ नये संकल्प लीन गये ,कुछ नये सुझाव दीन गये। लोक साहित्य के संग्रह –सर्वेक्षण-चयन-प्रकाशन आदि बिसय पर नीति बनाई जाय पर सहमति बनी।एकु ज्ञापन तयार कीन गवा।
अवधी कवि गोस्ठी: पूर्व राज्यसभा सदस्य मसहूर कबि बेकल उत्साही की अध्यक्षता मा अवधी क्बि अपनि कबिता पाठ कीन्हेनि।कबि गोस्ठी क्यार संचालन समकालीन भारतीय साहित्य पत्रिका के संपादक बृजेन्द्र त्रिपाठी कीन्हेनि। कबिन कि बानगी यहि तना है- ’महुआ चुवै सारी रात/जियरा सजन बिनु पिहिकै। कोहबर कै सुधि भइ सतरंगी/नेह पिया कै सुगना पंखी/सालै भाँवर सात।’-सतीश आर्य
हम कबिरा कै बेटा धारदार बोलबे नीक लागै चाहे नाही आर-पार बोलबे हम जायसी,रहीम,तुलसी के गाँव मा जौन बोलबे करेजवा निकारि बोलबे। -वाहिद अली वाहिद
यक समय रहा रहिला बेझरा खायेन औ ठंडा नीर पियेन सब रोग दोख ते दूरि रहेन सो बरस केरि जिन्दगी जियेन अब चाऊमीन ,बर्गर ,पिज्जा का हम फैसन ते खाइति है पाखाना तक ना साफ होय हम काँखिति है चिल्लाइति है।
-रामेश्वर प्रसाद द्विवेदी प्रलयंकर
तू पुरवा कइ रवानी भूलि जात्या ऊ चूनर धानी-धानी भूलि जात्या
देखौत्या चारि दिन गउँवा म रहिके
तो सारी लंतरानी भूलि जात्या।– जमुना प्रसाद उपाध्याय
का का हमरे मन मा ,का सब तुम्है बताई का
का चाहति हौ भाई आपन नाक कटाई का।–भोलानाथ अधीर
बरसै सँवनवा कै बैरी बदरवा
कजरवा धुलि-धुलि जाय मोरे राम धीर्व-धीरे डोलै पवन पुरवैया/पिया परदेसी भये है निर्दइया मारे झकोर बेदरदी पवनवा/अँचरवा खुलि-खुलि जाय मोरे राम।–विकलसाकेती
सोन चिरई के जियरा उदास हो आयी बगियन मा फूलन कि बास हो।–प्रमिला भारती
रुनुक-झुनुक बिछुआ बजै/नपै खेत खलिहान चैत मास चूनर चटक/झलकै गरब गुमान।–सावित्री शर्मा
छोटी अँगुरी की ताँई काटै अँगुरी जो बडी ई तौ कौनौ दैहिक समानता न कही जाय।–मनोज
गँउवाँ –गेरउआँ सहर भये बाबा सहर भये बाबा,जहर भये बाबा।–बिद्या बिन्दु सिंह।
जनम से पहिले मारिउ न हमका,बस इहै अरज हमार हो आये सवनवा तब के बनये गुडुई,के झूले अमवा के डार हो।–डाँ राधा पांडेय
रात सागर बहाय गयी अँखियाँ भोर होतइ झुराय गयी अँखियाँ उत्साही है तुम का जानौ कैसे बेकल बनाय गयी अँखियाम।–बेकल उत्साही यहि अवसर पर जगदीश पीयूष,बृजेन्द्र त्रिपाठी अपनी कविता पढेनि। कुल बात या रही कि सबके मन मा यहि संगोस्ठी ते अवधी भासा क्यार एकु नवा संसार देखायी दे लाग है।
सबका राम राम।
गुरुवार, 29 अक्तूबर 2009
कजरी विशेषांक
avadhajyoti
चिरैया के संपादक कइहाँ अवध-ज्योति क्यार तजा अंक सितंबर-2009 मिला । भइया रामबहादुर मिसिर क धन्यवाद। कजरी गीतन क्यार बडा पुरान इतिहास हइ। यहि अंक क्यार अतिथि संपादक डाँ.सियाराम ‘सिन्धु’ बधाई के हकदार ह्इ। अवध मा कजरी
गीतन के बिसय मा यहि अंक मा बिसेस लेख दीन गवा हइ।यहि लाजवाब जानकारी खातिर अवध-ज्योति परिवार का सुभकामना।यहि पत्रिका क्यार पता ई तना हइ----------
संपादक-डाँ.रामबहादुर मिश्र
अवध-ज्योति (त्रैमासिकी)
अवध भारती समिति,
नरौली,बीजापुर,हैदरगढ
बाराबंकी -227301
फोन-09450063632,09455189345
चिरैया के संपादक कइहाँ अवध-ज्योति क्यार तजा अंक सितंबर-2009 मिला । भइया रामबहादुर मिसिर क धन्यवाद। कजरी गीतन क्यार बडा पुरान इतिहास हइ। यहि अंक क्यार अतिथि संपादक डाँ.सियाराम ‘सिन्धु’ बधाई के हकदार ह्इ। अवध मा कजरी
गीतन के बिसय मा यहि अंक मा बिसेस लेख दीन गवा हइ।यहि लाजवाब जानकारी खातिर अवध-ज्योति परिवार का सुभकामना।यहि पत्रिका क्यार पता ई तना हइ----------
संपादक-डाँ.रामबहादुर मिश्र
अवध-ज्योति (त्रैमासिकी)
अवध भारती समिति,
नरौली,बीजापुर,हैदरगढ
बाराबंकी -227301
फोन-09450063632,09455189345
शुक्रवार, 2 अक्तूबर 2009
avadhee loka
अवधी लोक:एक परिचय
*भारतेन्दु मिश्र
अवध का लोक जीवन रीति-रिवाजो,संस्कारों ,ऋतु गीतों आदि के माध्यम से चीन्हा जा सकता है। धान –पान और मान की धरती है अवध की। यह अवध की ही धरती है जहाँ दरबार मे आने पर राजा स्वयं कवि को सम्मानित करने के लिए पान का जोडा पेश करते थे —‘ताम्बूलमासनद्वय च लभते य: कान्यकुब्जेश्वरात।’ यह उक्ति संस्कृत के ‘नैषधीयचरित’ महाकाव्य के रचयिता महाकवि श्रीहर्ष के सन्दर्भ मे प्रचलित है। कन्नौज के राजा विजयदेव के दरबार मे जब महाकवि श्रीहर्ष पधारते थे तब वे उनका स्वागत पान के बीडे से करते थे। अत: मान का पान अवध मे बहुत माने रखता है।
अवधी लखनऊ,कानपुर,उन्नाव,हरदोई,शाहजहानपुर,इटावा,कन्नौज,फर्रुखाबाद, फतेहपुर,रायबरेली, सुल्तानपुर, जौनपुर ,प्रतापगढ, इलाहाबाद,सिद्धार्थनगर,बाराबंकी, सीतापुर लखीमपुरखीरी ,गोण्डा,बलरामपुर,अम्बेडकरनगर, बहराइच,फैजाबाद, कौशाम्बी ,बान्दा, चित्रकूट ,गोरखपुर,कबीरनगर, आदि जनपदो मे रहने वाले कोटि-कोटि कंठों की मातृभाषा है।यह अलग बात है कि अवध का आदमी मूलत: जुझारू किसान है। यहाँ का आदमी शांत और संकोची स्वभाव का है। कृषि संस्कृति और गृह रति ही अवध के लोकाचार मे प्रकट होती है।अक्सर मूर्खता की हद तक संकोच मनुष्य की प्रगति मे बाधक हो जाता है।इस लिए भोजपुरी भाषी क्षेत्र की तुलना मे यहाँ का आदमी जल्दी से संगठित नही हो पाता।आमतौर पर अवध का आदमी प्रतिक्रियावादी भी नही है।
नौटंकी,रामलीला,रासलीला,कीर्तन,आल्हा,सफेडा ,रतजगा,जैसी लोकनाट्य परम्पराओ के साथ ही तुलसी और जायसी की इस धरती मे लोक गीतो की लम्बी परम्परा है। यही धरती है जहाँ अयोध्या है ,चित्रकूट है,जो रामकथा की व्यापकता की साक्षी बनी हुई है। राम का शील संकोच यहाँ की जातीयता मे शामिल है। शबरी और राम के मिलन का एक प्रसंग देखिये--
आजु बसौ सबरी के घर रामा।
बेर मोकइया क भोगु लगावै
अउरु नही सबरी के घर सामा।
कुस कै गोदरी सेज बिछउना
लोटि-पोटि परभू करै बिसरामा। आजु..।
सदियों प्राचीन इस लोकगीत मे भी शबरी के संकोच का निरूपण ही इसे मार्मिक बनाता है कि शबरी के संकोच के बावजूद राम उसके घर आ जाते हैं,और बेर तथा मोकइया जैसे अतिसामान्य समझे जाने वाले फल का भोग करते हैं।एक और संकोच का मार्मिक चित्र देखिये तुलसी कहते है--
जल को गये लक्खन है लरिका परिखौ पिय छाँह घरीक हुइ ठाढे।
पोछि पसेऊ बयारि करौं अरु पाँय पखारिहौ भूभुरि डाढे।
तुलसी रघुबीर प्रिया स्रम जानिकै बैठि बिलम्बलौं कंटक काढे।
जानकी नाह को ने ह लख्यो पुलक्यो तनु बारि बिलोचन बाढे।
सीता यहाँ वनप्रदेश मे यात्रा करते हुए राम के साथ जा रही है। वे थक गयी हैं। राम से अपनी थकान का भेद जाहिर नही करना चाहतीं परंतु बहाने बनाकर उन्हे रोक लेती हैं। राम बिना कुछ कहे सीता की मनोदशा का
अनुमान कर लेते हैं और चुपचाप बैठकर देर तक अपने पैर के काँटे निकालने का उपक्रम करते रहते हैं। अवध मे नर नारी के बीच इस प्रकार का संकोच दाम्पत्य की सहज व्यंजना मे आदर्श माना जाता है। अवध का लोक जीवन ऎसा है कि जहाँ अविवाहित युवक-युवतियाँ ही चोरी-छिपे नही मिलते अपितु पति-पत्नी को भी चोरी छिपे मिलना पडता है।यहाँ तक कि पुरुष अपने पुत्र को भी अपने बडे बुजुर्गों के सामने गोद मे नही उठाता,भले ही शिशु बिलख रहा हो और उसकी माता किसी अन्य गृहकार्य मे व्यस्त हो। यदि कोई ऎसा करता है तो प्राय: अन्य सभी उस व्यक्ति का मजाक बना देते हैं,और उस मेहरा[स्त्रैण्य स्वभाव वाला] कहकर चिढाते है। कई एसे लोक गीत हैं जो हैं तो नारी संवेदना के किंतु वे गाये पुरुषो द्वारा जाते हैं।अधिकतर ऎसे गीतो मे नारी की व्यथा,उसका शील –संकोच,शिकवा शिकायत ,मान –मनउव्वल आदि की अभिव्यक्ति होती है। देखिये एक पुरुष नारी की वेदना को किस प्रकार गाता है-
लरिकइयाँ के यार संघाती,
जोबन पै लगाओ न घाती, पिया कै मोरे थाती।
नाहक जुलमी जोबनवा तू आयेव सांसति हमरे जियरा कै करायेव
अब लिखबै ससुर घर पाती लूटै आवै चोर दिन राती
पिया कै मोरे थाती।...
अवध के लोक गीतों की विभिन्न छवियाँ हैं,जिनमे सबसे अधिक गीत कथात्मक हैं,जो रामकथा की लोकवादी छवियाँ प्रस्तुत करते हैं।ऋतुगीत हैं,बारहमासा हैं,जातीय गीत हैं जिनमे धोबियाराग,कुम्हारगीत,गडरियागीत आदि विभिन्न जातियो के गीत अपने लोकसौन्दर्य की छवियो के साथ आज भी विद्यमान हैं-
मोटी-मोटी रोटिया पोयो री बरेठिनि भोरहे चलिबे घाट,
बरेठिन, भोरहे चलिबे घाट।
तीनि चीज ना भूल्यो बरेठिन हुक्का-चिलम औ आगि,
बरेठिन हुक्का-चिलम औ आगि।
तोरी मोरी जोडिया जमी बरेठिन
भोरहे चलिबे घाट,
बरेठिन,भोरहे चलिबे घाट।
हुक्का फोरि कै फुक्का बनइबे पियेव गदहा कै सींग,
बरेठा पियेव गदहा कै सींग।
इस एक लोक गीत मे ही धोबी दम्पति के बीच की नोक झोंक बहुत मार्मिक बन गयी है।यहाँ संकोच नही है। इन लोक गीतों को पढने से यह भी ज्ञात होता है कि अवध की सवर्ण स्त्रियाँ या कि सवर्ण जातियाँ इस संकोच और लोकाचार से अधिक पीडित रही हैं,न कि असवर्ण जातियाँ। ये असवर्ण जातियाँ भी लोक सौन्दर्य के अधिक निकट रही हैं।सोहर,बनरा,कजरी,सावन,होरी,फाग,गारी,कृषिगीत-निकउनी,बोउनी आदि गाये जाने की लम्बी परम्परा अवध मे रही है। इन लोकगीतों मे जीवन का अनंत श्रम सौन्दर्य भरा पडा है। असल मे लोकरीतियो की हमारी सुन्दर परम्पराये तथाकथित विकासवाद और प्रगतिवाद के नीचे या पीछे दबकर रह गयी हैं। हम अपना घर और गाँव पीछे छोडकर विश्वग्राम की ओर बढ गये हैं। राम का आदर्श रामकथा के संस्कारों के साथ-साथ आज भी किसी न किसी रूप मे शील संकोच की भाँति लोक मे प्रतिफलित होता दिखाई देता है।यही कारण है कि अवध का आम आदमी दिल्ली,मुम्बई,कोलकाता जाकर वहाँ की भाषा तो अपना लेता है किंतु अपनी अवधी मे बतियाने मे उसे शर्म और संकोच का अनुभव होता है। अवध का प्रवासी अपने अवधी लोक का सौन्दर्य वहीं घर मे धर आता है,और अपने अवधी संकोच मे जीवन बिता देता है। विश्वग्राम की व्यापक अवधारणा मे अवध के प्रबुद्धजनों को अपनी लोकचेतना की आग को बचाकर रखना चाहिए।
(मड़ई , के लिए संपादक -कालीचरण जी छात्तीस गढ़ वाले )
*भारतेन्दु मिश्र
अवध का लोक जीवन रीति-रिवाजो,संस्कारों ,ऋतु गीतों आदि के माध्यम से चीन्हा जा सकता है। धान –पान और मान की धरती है अवध की। यह अवध की ही धरती है जहाँ दरबार मे आने पर राजा स्वयं कवि को सम्मानित करने के लिए पान का जोडा पेश करते थे —‘ताम्बूलमासनद्वय च लभते य: कान्यकुब्जेश्वरात।’ यह उक्ति संस्कृत के ‘नैषधीयचरित’ महाकाव्य के रचयिता महाकवि श्रीहर्ष के सन्दर्भ मे प्रचलित है। कन्नौज के राजा विजयदेव के दरबार मे जब महाकवि श्रीहर्ष पधारते थे तब वे उनका स्वागत पान के बीडे से करते थे। अत: मान का पान अवध मे बहुत माने रखता है।
अवधी लखनऊ,कानपुर,उन्नाव,हरदोई,शाहजहानपुर,इटावा,कन्नौज,फर्रुखाबाद, फतेहपुर,रायबरेली, सुल्तानपुर, जौनपुर ,प्रतापगढ, इलाहाबाद,सिद्धार्थनगर,बाराबंकी, सीतापुर लखीमपुरखीरी ,गोण्डा,बलरामपुर,अम्बेडकरनगर, बहराइच,फैजाबाद, कौशाम्बी ,बान्दा, चित्रकूट ,गोरखपुर,कबीरनगर, आदि जनपदो मे रहने वाले कोटि-कोटि कंठों की मातृभाषा है।यह अलग बात है कि अवध का आदमी मूलत: जुझारू किसान है। यहाँ का आदमी शांत और संकोची स्वभाव का है। कृषि संस्कृति और गृह रति ही अवध के लोकाचार मे प्रकट होती है।अक्सर मूर्खता की हद तक संकोच मनुष्य की प्रगति मे बाधक हो जाता है।इस लिए भोजपुरी भाषी क्षेत्र की तुलना मे यहाँ का आदमी जल्दी से संगठित नही हो पाता।आमतौर पर अवध का आदमी प्रतिक्रियावादी भी नही है।
नौटंकी,रामलीला,रासलीला,कीर्तन,आल्हा,सफेडा ,रतजगा,जैसी लोकनाट्य परम्पराओ के साथ ही तुलसी और जायसी की इस धरती मे लोक गीतो की लम्बी परम्परा है। यही धरती है जहाँ अयोध्या है ,चित्रकूट है,जो रामकथा की व्यापकता की साक्षी बनी हुई है। राम का शील संकोच यहाँ की जातीयता मे शामिल है। शबरी और राम के मिलन का एक प्रसंग देखिये--
आजु बसौ सबरी के घर रामा।
बेर मोकइया क भोगु लगावै
अउरु नही सबरी के घर सामा।
कुस कै गोदरी सेज बिछउना
लोटि-पोटि परभू करै बिसरामा। आजु..।
सदियों प्राचीन इस लोकगीत मे भी शबरी के संकोच का निरूपण ही इसे मार्मिक बनाता है कि शबरी के संकोच के बावजूद राम उसके घर आ जाते हैं,और बेर तथा मोकइया जैसे अतिसामान्य समझे जाने वाले फल का भोग करते हैं।एक और संकोच का मार्मिक चित्र देखिये तुलसी कहते है--
जल को गये लक्खन है लरिका परिखौ पिय छाँह घरीक हुइ ठाढे।
पोछि पसेऊ बयारि करौं अरु पाँय पखारिहौ भूभुरि डाढे।
तुलसी रघुबीर प्रिया स्रम जानिकै बैठि बिलम्बलौं कंटक काढे।
जानकी नाह को ने ह लख्यो पुलक्यो तनु बारि बिलोचन बाढे।
सीता यहाँ वनप्रदेश मे यात्रा करते हुए राम के साथ जा रही है। वे थक गयी हैं। राम से अपनी थकान का भेद जाहिर नही करना चाहतीं परंतु बहाने बनाकर उन्हे रोक लेती हैं। राम बिना कुछ कहे सीता की मनोदशा का
अनुमान कर लेते हैं और चुपचाप बैठकर देर तक अपने पैर के काँटे निकालने का उपक्रम करते रहते हैं। अवध मे नर नारी के बीच इस प्रकार का संकोच दाम्पत्य की सहज व्यंजना मे आदर्श माना जाता है। अवध का लोक जीवन ऎसा है कि जहाँ अविवाहित युवक-युवतियाँ ही चोरी-छिपे नही मिलते अपितु पति-पत्नी को भी चोरी छिपे मिलना पडता है।यहाँ तक कि पुरुष अपने पुत्र को भी अपने बडे बुजुर्गों के सामने गोद मे नही उठाता,भले ही शिशु बिलख रहा हो और उसकी माता किसी अन्य गृहकार्य मे व्यस्त हो। यदि कोई ऎसा करता है तो प्राय: अन्य सभी उस व्यक्ति का मजाक बना देते हैं,और उस मेहरा[स्त्रैण्य स्वभाव वाला] कहकर चिढाते है। कई एसे लोक गीत हैं जो हैं तो नारी संवेदना के किंतु वे गाये पुरुषो द्वारा जाते हैं।अधिकतर ऎसे गीतो मे नारी की व्यथा,उसका शील –संकोच,शिकवा शिकायत ,मान –मनउव्वल आदि की अभिव्यक्ति होती है। देखिये एक पुरुष नारी की वेदना को किस प्रकार गाता है-
लरिकइयाँ के यार संघाती,
जोबन पै लगाओ न घाती, पिया कै मोरे थाती।
नाहक जुलमी जोबनवा तू आयेव सांसति हमरे जियरा कै करायेव
अब लिखबै ससुर घर पाती लूटै आवै चोर दिन राती
पिया कै मोरे थाती।...
अवध के लोक गीतों की विभिन्न छवियाँ हैं,जिनमे सबसे अधिक गीत कथात्मक हैं,जो रामकथा की लोकवादी छवियाँ प्रस्तुत करते हैं।ऋतुगीत हैं,बारहमासा हैं,जातीय गीत हैं जिनमे धोबियाराग,कुम्हारगीत,गडरियागीत आदि विभिन्न जातियो के गीत अपने लोकसौन्दर्य की छवियो के साथ आज भी विद्यमान हैं-
मोटी-मोटी रोटिया पोयो री बरेठिनि भोरहे चलिबे घाट,
बरेठिन, भोरहे चलिबे घाट।
तीनि चीज ना भूल्यो बरेठिन हुक्का-चिलम औ आगि,
बरेठिन हुक्का-चिलम औ आगि।
तोरी मोरी जोडिया जमी बरेठिन
भोरहे चलिबे घाट,
बरेठिन,भोरहे चलिबे घाट।
हुक्का फोरि कै फुक्का बनइबे पियेव गदहा कै सींग,
बरेठा पियेव गदहा कै सींग।
इस एक लोक गीत मे ही धोबी दम्पति के बीच की नोक झोंक बहुत मार्मिक बन गयी है।यहाँ संकोच नही है। इन लोक गीतों को पढने से यह भी ज्ञात होता है कि अवध की सवर्ण स्त्रियाँ या कि सवर्ण जातियाँ इस संकोच और लोकाचार से अधिक पीडित रही हैं,न कि असवर्ण जातियाँ। ये असवर्ण जातियाँ भी लोक सौन्दर्य के अधिक निकट रही हैं।सोहर,बनरा,कजरी,सावन,होरी,फाग,गारी,कृषिगीत-निकउनी,बोउनी आदि गाये जाने की लम्बी परम्परा अवध मे रही है। इन लोकगीतों मे जीवन का अनंत श्रम सौन्दर्य भरा पडा है। असल मे लोकरीतियो की हमारी सुन्दर परम्पराये तथाकथित विकासवाद और प्रगतिवाद के नीचे या पीछे दबकर रह गयी हैं। हम अपना घर और गाँव पीछे छोडकर विश्वग्राम की ओर बढ गये हैं। राम का आदर्श रामकथा के संस्कारों के साथ-साथ आज भी किसी न किसी रूप मे शील संकोच की भाँति लोक मे प्रतिफलित होता दिखाई देता है।यही कारण है कि अवध का आम आदमी दिल्ली,मुम्बई,कोलकाता जाकर वहाँ की भाषा तो अपना लेता है किंतु अपनी अवधी मे बतियाने मे उसे शर्म और संकोच का अनुभव होता है। अवध का प्रवासी अपने अवधी लोक का सौन्दर्य वहीं घर मे धर आता है,और अपने अवधी संकोच मे जीवन बिता देता है। विश्वग्राम की व्यापक अवधारणा मे अवध के प्रबुद्धजनों को अपनी लोकचेतना की आग को बचाकर रखना चाहिए।
(मड़ई , के लिए संपादक -कालीचरण जी छात्तीस गढ़ वाले )
सोमवार, 24 अगस्त 2009
नई रोसनी :अवधी उपन्यास
---------- Forwarded message ----------
From: Arvind Kumar
Date: ०३-०८-२००९ २:
भारतेंदु जी
अ भा हिंदी विमर्ष पर आप के उपन्यास का परिचय आ गया है. दो और एक दो जगह भी आएगा.
From: hindi-vimarsh@googlegroups.com [mailto:hindi-vimarsh@googlegroups.com] On Behalf Of Arvind Kumar
Sent: Monday, August 03, 2009 8:23 AM
To: hindi-vimarsh@googlegroups.com
Subject: {हिंदी-विमर्श:1488} Hindi ki Lokbhashaen aur Avadhi ka pehla adhunik upanyas
प्रिय मित्रो
हिंदी की लोकभाषाएँ अपने आप में स्वतंत्र भाषाएँ हैं. यूरोप के कई देश हैं जिन की आबादी हमारे ऐसे भाषा क्षेत्रों से बहुत कम हैं. लेकिन उनके मुक़ाबले, जहाँ तक आधुनिक गद्य का सवाल है, सचमुच पिछड़ी हैं. उदाहरण के लिए ब्रजभाषा या अवधी---ब्रज अभी तक राधा कृष्ण काव्य से और अवधी रामचरित से आगे नहीं बढ़ पा रहीं. इन में कुछ फ़िल्में भी बनीं, पर बात वहीं रुक गई. इन क्षेत्रों में छपने वाले दैनिक मासिक पत्र अपनी स्थानीय भाषाओं को सप्ताह तो क्या महीने में भर में निज भाषा में राजनीति सामाजिक या तकनीकी विषयों पर एक भी पन्ना नहीं देते. तो उपयुक्त माध्यम के अभाव में आधुनिक गद्य का विकास अवरुद्ध हो जाता है.
सच यह है कि इन में गद्य और साथ साथ शब्दावली के विकास से ये भीसमृद्ध होंगी और हिंदी भी. मैं समझता हूँ कि जागरूक लोगों को इस मामले में आगे आना चाहिए और जब भी मौक़ा हो, समाचार पत्रों में स्थानीय भाषाओं के समावेश की आवश्यकता को प्रचारित करना चाहिए.यह मेल भेजने का तत्काल कारण है मेरे मित्र और सुपरिचित भारतेंदु मित्र के अवधी उपन्यास नई रोसनी का प्रकाशन. सुंदर गद्य और सुंदर कथ्य. इस के बारे में जानकारी नीचे चिपका रहा हूँ. हो सके तो स्थान दें—
नईरोसनी” :अवधी उपन्यास
किसी भी भाषा की समृद्धि उसके गद्य के विकास पर
आधारित होती है। अवधी मे गद्य का प्रयोग प्राय: नगण्य ही रहा है। ‘ नई रोसनी’ भारतेन्दु मिश्र द्वारा लिखा संभवत: पहला अवधी उपन्यास है। अवधी मेँ न तो कोई चैनल है और न कोई अखबार । लखनऊ से प्रकाशित होने वाले तमाम दैनिक समाचार है किंतु अवधी मे एक पृष्ठ की भी सामग्री नही मिलती । लखनऊ,कानपुर,फैजाबाद आदि जगहोँ से निकलने वाले अखबारोँ के साप्ताहिक परिशिष्ट मेँ भी कुछ स्थान अवधी के लिए निर्धारित होना चाहिए। 96 पृष्ठोँ मेँ पेपरबैक संस्करण वाले इस उपन्यास का मूल्य केवल रु.60/ है। बहरहाल इस पुस्तक मेँ आधुनिक अवधी गद्य का सुन्दर प्रयोग किया गया है। इसका प्राप्ति स्थान इस प्रकार है:
कश्यप पब्लिकेशन
बी-48/यूजी-4,दिलशाद एक्सटेंशन-2, डी एल एफ,गाजियाबाद -05
kashyappublication@yahoo.com
प्रिय भाई
हिंदी की लोकभाषाएँ अपने आप में स्वतंत्र भाषाएँ हैं. यूरोप के कई देश हैं जिन की आबादी हमारे ऐसे भाषा क्षेत्रों से बहुत कम हैं. लेकिन उनके मुक़ाबले, जहाँ तक आधुनिक गद्य का सवाल है, सचमुच पिछड़ी हैं. उदाहरण के लिए ब्रजभाषा या अवधी---ब्रज अभी तक राधा कृष्ण काव्य से और अवधी रामचरित से आगे नहीं बढ़ पा रहीं. इन में कुछ फ़िल्में भी बनीं, पर बात वहीं रुक गई. इन क्षेत्रों में छपने वाले दैनिक मासिक पत्र अपनी स्थानीय भाषाओं को सप्ताह तो क्या महीने में भर में निज भाषा में राजनीति सामाजिक या तकनीकी विषयों पर एक भी पन्ना नहीं देते. तो उपयुक्त माध्यम के अभाव में आधुनिक गद्य का विकास अवरुद्ध हो जाता है.
सच यह है कि इन में गद्य और साथ साथ शब्दावली के विकास से ये भीसमृद्ध होंगी और हिंदी भी. मैं समझता हूँ कि जागरूक लोगों को इस मामले में आगे आना चाहिए और जब भी मौक़ा हो, समाचार पत्रों में स्थानीय भाषाओं के समावेश की आवश्यकता को प्रचारित करना चाहिए.
यह मेल भेजने का तत्काल कारण है मेरे मित्र और सुपरिचित भारतेंदु मित्र के अवधी उपन्यास नई रोसनी का प्रकाशन. सुंदर गद्य और सुंदर कथ्य. इस के बारे में जानकारी नीचे चिपका रहा हूँ. हो सके तो स्थान दें—
“नई रोसनी” :अवधी उपन्यास
किसी भी भाषा की समृद्धि उसके गद्य के विकास पर
आधारित होती है। अवधी मे गद्य का प्रयोग प्राय: नगण्य ही रहा है। ‘ नई रोसनी’ भारतेन्दु मिश्र द्वारा लिखा संभवत: पहला अवधी उपन्यास है। अवधी मेँ न तो कोई चैनल है और न कोई अखबार । लखनऊ से प्रकाशित होने वाले तमाम दैनिक समाचार है किंतु अवधी मे एक पृष्ठ की भी सामग्री नही मिलती । लखनऊ,कानपुर,फैजाबाद आदि जगहोँ से निकलने वाले अखबारोँ के साप्ताहिक परिशिष्ट मेँ भी कुछ स्थान अवधी के लिए निर्धारित होना चाहिए।
96 पृष्ठोँ मेँ पेपरबैक संस्करण वाले इस उपन्यास का मूल्य केवल रु.60/ है। बहरहाल इस पुस्तक मेँ आधुनिक अवधी गद्य का सुन्दर प्रयोग किया गया है। इसका प्राप्ति स्थान इस प्रकार है:
कश्यप पब्लिकेशन
बी-48/यूजी-4,दिलशाद एक्सटेंशन-2, डी एल एफ,गाजियाबाद -05
kashyappublication@yahoo.com
शुभ कामना सहित
आप का
अरविंद
सी-18 चंद्रनगर (पूर्वी दिल्ली के विवेक विहार और योजना विहार के पास)
गाज़ियाबाद 201011
टेलि - 9312760129 - लैंडलाइन (0120) 4110655
samantarkosh@gmail.com
From: Arvind Kumar
Date: ०३-०८-२००९ २:
भारतेंदु जी
अ भा हिंदी विमर्ष पर आप के उपन्यास का परिचय आ गया है. दो और एक दो जगह भी आएगा.
From: hindi-vimarsh@googlegroups.com [mailto:hindi-vimarsh@googlegroups.com] On Behalf Of Arvind Kumar
Sent: Monday, August 03, 2009 8:23 AM
To: hindi-vimarsh@googlegroups.com
Subject: {हिंदी-विमर्श:1488} Hindi ki Lokbhashaen aur Avadhi ka pehla adhunik upanyas
प्रिय मित्रो
हिंदी की लोकभाषाएँ अपने आप में स्वतंत्र भाषाएँ हैं. यूरोप के कई देश हैं जिन की आबादी हमारे ऐसे भाषा क्षेत्रों से बहुत कम हैं. लेकिन उनके मुक़ाबले, जहाँ तक आधुनिक गद्य का सवाल है, सचमुच पिछड़ी हैं. उदाहरण के लिए ब्रजभाषा या अवधी---ब्रज अभी तक राधा कृष्ण काव्य से और अवधी रामचरित से आगे नहीं बढ़ पा रहीं. इन में कुछ फ़िल्में भी बनीं, पर बात वहीं रुक गई. इन क्षेत्रों में छपने वाले दैनिक मासिक पत्र अपनी स्थानीय भाषाओं को सप्ताह तो क्या महीने में भर में निज भाषा में राजनीति सामाजिक या तकनीकी विषयों पर एक भी पन्ना नहीं देते. तो उपयुक्त माध्यम के अभाव में आधुनिक गद्य का विकास अवरुद्ध हो जाता है.
सच यह है कि इन में गद्य और साथ साथ शब्दावली के विकास से ये भीसमृद्ध होंगी और हिंदी भी. मैं समझता हूँ कि जागरूक लोगों को इस मामले में आगे आना चाहिए और जब भी मौक़ा हो, समाचार पत्रों में स्थानीय भाषाओं के समावेश की आवश्यकता को प्रचारित करना चाहिए.यह मेल भेजने का तत्काल कारण है मेरे मित्र और सुपरिचित भारतेंदु मित्र के अवधी उपन्यास नई रोसनी का प्रकाशन. सुंदर गद्य और सुंदर कथ्य. इस के बारे में जानकारी नीचे चिपका रहा हूँ. हो सके तो स्थान दें—
नईरोसनी” :अवधी उपन्यास
किसी भी भाषा की समृद्धि उसके गद्य के विकास पर
आधारित होती है। अवधी मे गद्य का प्रयोग प्राय: नगण्य ही रहा है। ‘ नई रोसनी’ भारतेन्दु मिश्र द्वारा लिखा संभवत: पहला अवधी उपन्यास है। अवधी मेँ न तो कोई चैनल है और न कोई अखबार । लखनऊ से प्रकाशित होने वाले तमाम दैनिक समाचार है किंतु अवधी मे एक पृष्ठ की भी सामग्री नही मिलती । लखनऊ,कानपुर,फैजाबाद आदि जगहोँ से निकलने वाले अखबारोँ के साप्ताहिक परिशिष्ट मेँ भी कुछ स्थान अवधी के लिए निर्धारित होना चाहिए। 96 पृष्ठोँ मेँ पेपरबैक संस्करण वाले इस उपन्यास का मूल्य केवल रु.60/ है। बहरहाल इस पुस्तक मेँ आधुनिक अवधी गद्य का सुन्दर प्रयोग किया गया है। इसका प्राप्ति स्थान इस प्रकार है:
कश्यप पब्लिकेशन
बी-48/यूजी-4,दिलशाद एक्सटेंशन-2, डी एल एफ,गाजियाबाद -05
kashyappublication@yahoo.com
प्रिय भाई
हिंदी की लोकभाषाएँ अपने आप में स्वतंत्र भाषाएँ हैं. यूरोप के कई देश हैं जिन की आबादी हमारे ऐसे भाषा क्षेत्रों से बहुत कम हैं. लेकिन उनके मुक़ाबले, जहाँ तक आधुनिक गद्य का सवाल है, सचमुच पिछड़ी हैं. उदाहरण के लिए ब्रजभाषा या अवधी---ब्रज अभी तक राधा कृष्ण काव्य से और अवधी रामचरित से आगे नहीं बढ़ पा रहीं. इन में कुछ फ़िल्में भी बनीं, पर बात वहीं रुक गई. इन क्षेत्रों में छपने वाले दैनिक मासिक पत्र अपनी स्थानीय भाषाओं को सप्ताह तो क्या महीने में भर में निज भाषा में राजनीति सामाजिक या तकनीकी विषयों पर एक भी पन्ना नहीं देते. तो उपयुक्त माध्यम के अभाव में आधुनिक गद्य का विकास अवरुद्ध हो जाता है.
सच यह है कि इन में गद्य और साथ साथ शब्दावली के विकास से ये भीसमृद्ध होंगी और हिंदी भी. मैं समझता हूँ कि जागरूक लोगों को इस मामले में आगे आना चाहिए और जब भी मौक़ा हो, समाचार पत्रों में स्थानीय भाषाओं के समावेश की आवश्यकता को प्रचारित करना चाहिए.
यह मेल भेजने का तत्काल कारण है मेरे मित्र और सुपरिचित भारतेंदु मित्र के अवधी उपन्यास नई रोसनी का प्रकाशन. सुंदर गद्य और सुंदर कथ्य. इस के बारे में जानकारी नीचे चिपका रहा हूँ. हो सके तो स्थान दें—
“नई रोसनी” :अवधी उपन्यास
किसी भी भाषा की समृद्धि उसके गद्य के विकास पर
आधारित होती है। अवधी मे गद्य का प्रयोग प्राय: नगण्य ही रहा है। ‘ नई रोसनी’ भारतेन्दु मिश्र द्वारा लिखा संभवत: पहला अवधी उपन्यास है। अवधी मेँ न तो कोई चैनल है और न कोई अखबार । लखनऊ से प्रकाशित होने वाले तमाम दैनिक समाचार है किंतु अवधी मे एक पृष्ठ की भी सामग्री नही मिलती । लखनऊ,कानपुर,फैजाबाद आदि जगहोँ से निकलने वाले अखबारोँ के साप्ताहिक परिशिष्ट मेँ भी कुछ स्थान अवधी के लिए निर्धारित होना चाहिए।
96 पृष्ठोँ मेँ पेपरबैक संस्करण वाले इस उपन्यास का मूल्य केवल रु.60/ है। बहरहाल इस पुस्तक मेँ आधुनिक अवधी गद्य का सुन्दर प्रयोग किया गया है। इसका प्राप्ति स्थान इस प्रकार है:
कश्यप पब्लिकेशन
बी-48/यूजी-4,दिलशाद एक्सटेंशन-2, डी एल एफ,गाजियाबाद -05
kashyappublication@yahoo.com
शुभ कामना सहित
आप का
अरविंद
सी-18 चंद्रनगर (पूर्वी दिल्ली के विवेक विहार और योजना विहार के पास)
गाज़ियाबाद 201011
टेलि - 9312760129 - लैंडलाइन (0120) 4110655
samantarkosh@gmail.com
मंगलवार, 7 जुलाई 2009
दुइ गीत:माई जी
अवधी अकादमी के संचालक
अउरु –बोली बानी क्यार संपादक : जगदीश पीयूष के दुइ गीत
एक
बरैँ अँधरू पड.उनू
चबाँय माई जी।
पइसा आवा सरकारी पुला बनै कै तयारी
होय हेरा फेरी जाने ना
खोदाय माई जी।
आई एमेले कै निधि
खाइ लेइ कौन विधि
गवा अपनौ निमरुआ मोटाय माई जी।
होय अन्न कै खरीद
घाल मेल कै रसीद
मिलि बाँटि-बाँटि खाँय डेकराँय माई जी।
आवे जब जब धन
बनि जाय करधन
गोरी पतली कमरिया पिराय माई जी।
दो
कुर्ता खादी का चौचक ताकैँ गाँधी जी भौचक
होइगे घरे घरे नेतवे दलाल माई जी।
चाटैँ राजनीति कै चाट
रोजै बदलैँ धोबी घाट
धक्का मुक्की होइगा देसवा धमाल माई जी।
चारिव ओरी मारामारी
जेका देखा ठेकेदारी
होइगे मंत्री जी कै पूत मालामाल माई जी।
अफसर होइगे बेइमान
नौकर चाकर भरे गुमान
वोटवा हुइगा हमरी जान- क बवाल माई जी।
करै धीरे धीरे हमका हलाल माई जी॥
(संपर्क: संपादक –बोली बानी,अवधी अकादमी,गौरी गंज,सुलतान पुर उ.प्र.फोन:09415137521)
अवधी अकादमी के संचालक
अउरु –बोली बानी क्यार संपादक : जगदीश पीयूष के दुइ गीत
एक
बरैँ अँधरू पड.उनू
चबाँय माई जी।
पइसा आवा सरकारी पुला बनै कै तयारी
होय हेरा फेरी जाने ना
खोदाय माई जी।
आई एमेले कै निधि
खाइ लेइ कौन विधि
गवा अपनौ निमरुआ मोटाय माई जी।
होय अन्न कै खरीद
घाल मेल कै रसीद
मिलि बाँटि-बाँटि खाँय डेकराँय माई जी।
आवे जब जब धन
बनि जाय करधन
गोरी पतली कमरिया पिराय माई जी।
दो
कुर्ता खादी का चौचक ताकैँ गाँधी जी भौचक
होइगे घरे घरे नेतवे दलाल माई जी।
चाटैँ राजनीति कै चाट
रोजै बदलैँ धोबी घाट
धक्का मुक्की होइगा देसवा धमाल माई जी।
चारिव ओरी मारामारी
जेका देखा ठेकेदारी
होइगे मंत्री जी कै पूत मालामाल माई जी।
अफसर होइगे बेइमान
नौकर चाकर भरे गुमान
वोटवा हुइगा हमरी जान- क बवाल माई जी।
करै धीरे धीरे हमका हलाल माई जी॥
(संपर्क: संपादक –बोली बानी,अवधी अकादमी,गौरी गंज,सुलतान पुर उ.प्र.फोन:09415137521)
गुरुवार, 4 जून 2009
आजु केरि लडकी
ख़ुरपा हंसिया थामिस
घासौ छीलिसि
लकडी बीनिसि
बथुई ख़ोंटि लाई
भाई- बहिनिया की अंगुरी पकरि कै
लंबा रस्ता काटिसि
जली रात-दिनु चूल्हे मा
लकडी की नाई
जगह न पायेसि तबहू वा
ई दुनिया मा
भीड मा रहति है चुपचाप
अकेले मा मुस्काति है
करति है बातैं आसमान ते
पंछी है परवाज है
हवा केरि रवानी है
चुटकी भर पियारु मा
लडकी देवानी है
ख़टकति यहै सबु
अब सबकी आंख़िन मा
कोख़ि मा मारी जाय रही है
दुख़िया।
डां॰ ग्यानवती दीक्षित
169,प्रतिभा निवास
रोटी गोदाम
सीतापुर, उ॰प्र॰
ख़ुरपा हंसिया थामिस
घासौ छीलिसि
लकडी बीनिसि
बथुई ख़ोंटि लाई
भाई- बहिनिया की अंगुरी पकरि कै
लंबा रस्ता काटिसि
जली रात-दिनु चूल्हे मा
लकडी की नाई
जगह न पायेसि तबहू वा
ई दुनिया मा
भीड मा रहति है चुपचाप
अकेले मा मुस्काति है
करति है बातैं आसमान ते
पंछी है परवाज है
हवा केरि रवानी है
चुटकी भर पियारु मा
लडकी देवानी है
ख़टकति यहै सबु
अब सबकी आंख़िन मा
कोख़ि मा मारी जाय रही है
दुख़िया।
डां॰ ग्यानवती दीक्षित
169,प्रतिभा निवास
रोटी गोदाम
सीतापुर, उ॰प्र॰
मंगलवार, 2 जून 2009
शुक्रवार, 29 मई 2009
छपरा कस उठी
जुगु बदलि गवा है।अब कउनेव ट्वाला मा जाति बिरादरी वाले याक साथ बइठै का तयार नाई हैं। जीके तीर पइसा है –वहेकि ठकुरई। उनका छपरा तौ जस पहिले उठति रहा है तस अबहूँ उठी मुला गरीबन क्यार छपरा को छवाई? जो कउनिव तना ते छाय ले तो फिरि ऊका उठावै वाले जन कहाँ ते अइहैं।
गरीबी हटावति हटावति कइयौ सरकारै हटि गयीं। गरीब दुखिया जहाँ खड़े रहैं हुआँ ते अउरु पाछे हटि आये ,मुला गरीबी न अब लौ हटी है न जल्दी हटै वाली है। अमीरी गरीबी के पाटन मा आपसदारी धीरे-धीरे पिसी जाय रही है- तीका कोई इलाजु नाई है।
अब जब नोटन ते रिस्ता जुड़िगा है तो बेइमानी-बदमासी औ मक्कारी करै मा जो साथु दे ,वहै रिस्तेदार है-वहे ते आपसदारी है। छपरा बिनु आपसदारी ना तौ छावा जाय सकी न उठावा जाय सकी औ –जो कहूँ आगि लागि जाय तो बुझावौ न जाय सकी। हमरी लरिकई मइहाँ सब याक दुसरे क्यार छपरा छवावै औ उठवावै जाति रहैं। अबहूँ छपरा उठवावै-क न्यउता आवति है मुला अब टाला –टाली कइकै सब अपन जिउ चोरावति हैं। जीके हाथेम लाठी है तीके सगरे काम बनि रहे हैं। जीके हाथेम नोट हैं वहूके सब काम निपटि रहे हैं। कुछु जने तौ तिकड़म ते आपन काम निकारि रहे हैं, तेहूँ गाँव मा अइसन मनई जादा हैं जिनके काम कउनिव तना नाई हुइ पाय रहे हैं। अइसे टेम मइहाँ उनका छपरा कस उठी?
अब न उइ सैकरन बाँसन वाली बाँसी रहि गयी हैं, न छपरा खतिर बाँसै जोहाति हैं। फूसु धीरे-धीरे फुर्रु हुइ गवा है।हाँ ऊँखन कै पाती औ झाँखर मिलि जाति हैं। बड़क्के किसान तौ पक्की हवेली बनवाय रहे हैं छोटकये कच्ची देवालन पर लेसाई लौ नाइ कइ पाय रहे हैं। मँजूरी -धतूरी ते जो संझा तके लोनु रोटी मिलि जाय तौ जानौ बड़ी भागि है। कंगाली के साथ मँहगायी मुर्गा बनाये है। लकड़ी कटि-कटि राती-राता सहरन मा जाय रही है। फारेस्ट वाले खाय पी कै सोय रहे हैं। हमका तुमका तौ थुनिहा औ चियारिव नाई मिलै वाली हैं। बाता मइहाँ पगही बाँधे छपरा कै दिन रुकी, अरे रुकी कि ठाढै न होई।
अइसी वइसी बइठै ते , बीड़ी फूँकै ते या सुर्ती मलै ते कुछु काम बनै वाला नाई है। लरिकईं –म जब छपरा उठवावै जाइति रहै तौ बड़ा जोसु रहै, गाँव केरी ऊँची नीची सब जातिन क्यार अदमी आवति रहै।“अउरु लगा दे हैंसा, जोर लगा दे हैंसा..। पुरबह वार खँइचो रे, दखिनह वार थ्वारा रेलि देव”- ई तना के जुमला यादि आवति हैं। तब मालुम होति रहै कि गाँव ट्वाला सब अपनै देसु है।
तब जहाँ चहौ तहाँ चट्ट –पट्ट छपरा धरि दीन जाति रहै। अब न तौ रमजानी अपने ट्वाला ते अइहैं, न सुच्चा सिंह न रामपालै केरि उम्मेद है। अइसे बुरे बखत मइहाँ कहाँ मूड़ु दइ मारी।
छपरा जीमा कइयौ सिकहर लटके होति रहैं, कहूँ-कहूँ छोटकई चिरैया आपन घुरुघुच्चु बनउती रहैं, जिनके ऊपर कबहूँ लउकी-कदुआ केरि फसल मिलति रहैः जी पर बिलइया टहलती रहैं – जीके तरे जिन्दगी मउत ,दीन-दुनिया केरि सब बतकही होति रहै – जीके तरे घरी भरि बइठि कै राहगीरौ जुड़ाति रहै- सँहिताति रहै, जहाँ दुपहरिया मा कबौ किस्सा किहानी,कबौ सुरबग्घी, औ कबहूँ कोटपीस ख्याला जाति रहै-अब उइ दिन कहाँ? अब जब पियारु दुलारु- मोहब्बति औ भइयाचारु नाई रहिगा है तो छपरा छावा जाय चहै न छावा जाय। उठवावा जाय चहै न उठवावा जाय हमरी बलाय ते।
( -“कस परजवटि बिसारी” से)
गरीबी हटावति हटावति कइयौ सरकारै हटि गयीं। गरीब दुखिया जहाँ खड़े रहैं हुआँ ते अउरु पाछे हटि आये ,मुला गरीबी न अब लौ हटी है न जल्दी हटै वाली है। अमीरी गरीबी के पाटन मा आपसदारी धीरे-धीरे पिसी जाय रही है- तीका कोई इलाजु नाई है।
अब जब नोटन ते रिस्ता जुड़िगा है तो बेइमानी-बदमासी औ मक्कारी करै मा जो साथु दे ,वहै रिस्तेदार है-वहे ते आपसदारी है। छपरा बिनु आपसदारी ना तौ छावा जाय सकी न उठावा जाय सकी औ –जो कहूँ आगि लागि जाय तो बुझावौ न जाय सकी। हमरी लरिकई मइहाँ सब याक दुसरे क्यार छपरा छवावै औ उठवावै जाति रहैं। अबहूँ छपरा उठवावै-क न्यउता आवति है मुला अब टाला –टाली कइकै सब अपन जिउ चोरावति हैं। जीके हाथेम लाठी है तीके सगरे काम बनि रहे हैं। जीके हाथेम नोट हैं वहूके सब काम निपटि रहे हैं। कुछु जने तौ तिकड़म ते आपन काम निकारि रहे हैं, तेहूँ गाँव मा अइसन मनई जादा हैं जिनके काम कउनिव तना नाई हुइ पाय रहे हैं। अइसे टेम मइहाँ उनका छपरा कस उठी?
अब न उइ सैकरन बाँसन वाली बाँसी रहि गयी हैं, न छपरा खतिर बाँसै जोहाति हैं। फूसु धीरे-धीरे फुर्रु हुइ गवा है।हाँ ऊँखन कै पाती औ झाँखर मिलि जाति हैं। बड़क्के किसान तौ पक्की हवेली बनवाय रहे हैं छोटकये कच्ची देवालन पर लेसाई लौ नाइ कइ पाय रहे हैं। मँजूरी -धतूरी ते जो संझा तके लोनु रोटी मिलि जाय तौ जानौ बड़ी भागि है। कंगाली के साथ मँहगायी मुर्गा बनाये है। लकड़ी कटि-कटि राती-राता सहरन मा जाय रही है। फारेस्ट वाले खाय पी कै सोय रहे हैं। हमका तुमका तौ थुनिहा औ चियारिव नाई मिलै वाली हैं। बाता मइहाँ पगही बाँधे छपरा कै दिन रुकी, अरे रुकी कि ठाढै न होई।
अइसी वइसी बइठै ते , बीड़ी फूँकै ते या सुर्ती मलै ते कुछु काम बनै वाला नाई है। लरिकईं –म जब छपरा उठवावै जाइति रहै तौ बड़ा जोसु रहै, गाँव केरी ऊँची नीची सब जातिन क्यार अदमी आवति रहै।“अउरु लगा दे हैंसा, जोर लगा दे हैंसा..। पुरबह वार खँइचो रे, दखिनह वार थ्वारा रेलि देव”- ई तना के जुमला यादि आवति हैं। तब मालुम होति रहै कि गाँव ट्वाला सब अपनै देसु है।
तब जहाँ चहौ तहाँ चट्ट –पट्ट छपरा धरि दीन जाति रहै। अब न तौ रमजानी अपने ट्वाला ते अइहैं, न सुच्चा सिंह न रामपालै केरि उम्मेद है। अइसे बुरे बखत मइहाँ कहाँ मूड़ु दइ मारी।
छपरा जीमा कइयौ सिकहर लटके होति रहैं, कहूँ-कहूँ छोटकई चिरैया आपन घुरुघुच्चु बनउती रहैं, जिनके ऊपर कबहूँ लउकी-कदुआ केरि फसल मिलति रहैः जी पर बिलइया टहलती रहैं – जीके तरे जिन्दगी मउत ,दीन-दुनिया केरि सब बतकही होति रहै – जीके तरे घरी भरि बइठि कै राहगीरौ जुड़ाति रहै- सँहिताति रहै, जहाँ दुपहरिया मा कबौ किस्सा किहानी,कबौ सुरबग्घी, औ कबहूँ कोटपीस ख्याला जाति रहै-अब उइ दिन कहाँ? अब जब पियारु दुलारु- मोहब्बति औ भइयाचारु नाई रहिगा है तो छपरा छावा जाय चहै न छावा जाय। उठवावा जाय चहै न उठवावा जाय हमरी बलाय ते।
( -“कस परजवटि बिसारी” से)
सोमवार, 27 अप्रैल 2009
hamar awadhi
हमारी अवधी
पुरिखन का सुख सार हमारी अवधी मा
है परिवार हमार हमारी अवधी मा
दादी केर दुलार हमारी अवधी मा
अम्मा का है प्यार हमारी अवधी मा
अवधी मइहाँ मुल्लादाउद चंदायन लिखि गाइन
पद्मावत लिखि मलिक मोहम्मद हैं अवधी अपनाइन
अवधी मा रचि मानस तुलसी जग मा नाम कमाइन
कुतुबन मंझन शेख नबी अवधी का दिया जलाइन
पढैं-‘पढीस’ –‘पँवार’ हमारी अवधी मा
‘बंशी’ कै गुंजार हमारी अवधी मा
है ‘उन्मत्त’ बहार हमारी अवधी मा
‘रमई” कै बौछार हमारी अवधी मा
डाँ अशोक अज्ञानी
प्रवक्ता हिन्दी
राज.हुसेनाबाद इण्टृर कालेज ,चौक, लखनऊ
फोन:09415956733
पुरिखन का सुख सार हमारी अवधी मा
है परिवार हमार हमारी अवधी मा
दादी केर दुलार हमारी अवधी मा
अम्मा का है प्यार हमारी अवधी मा
अवधी मइहाँ मुल्लादाउद चंदायन लिखि गाइन
पद्मावत लिखि मलिक मोहम्मद हैं अवधी अपनाइन
अवधी मा रचि मानस तुलसी जग मा नाम कमाइन
कुतुबन मंझन शेख नबी अवधी का दिया जलाइन
पढैं-‘पढीस’ –‘पँवार’ हमारी अवधी मा
‘बंशी’ कै गुंजार हमारी अवधी मा
है ‘उन्मत्त’ बहार हमारी अवधी मा
‘रमई” कै बौछार हमारी अवधी मा
डाँ अशोक अज्ञानी
प्रवक्ता हिन्दी
राज.हुसेनाबाद इण्टृर कालेज ,चौक, लखनऊ
फोन:09415956733
सोमवार, 20 अप्रैल 2009
अवधी महोत्सव संपन्न
प्रथम सत्र
लखनऊ,29अप्रैल 2009,उत्तरप्रदेश हिन्दी संस्थान के निराला सभागार में अवध भारती समिति हैदरगढ, बाराबंकी द्वारा आयोजित अवधी महोत्सव-2009 प्रो. सूर्यप्रसाद दीक्षित जी की अध्यक्षता में संपन्न हुआ। अपने अध्यक्षीय भाषण में समकालीन अवधी साहित्य के सरोकार विषय पर बोलते हुए प्रो.दीक्षित ने कहा-“अवधी का इतिहास बहुत पुराना है,और इसका साहित्य विश्वस्तरीय है,शब्दभंडार बहुत व्यापक है। यह भाषा प्राचीन काल से ही केन्द्रीय भाषा रही है। इसने कभी भी अपनी पृथक मान्यता की माँग नही की। इसकी जनप्रियता निरंतर असंदिग्ध रही है। आज विभिन्न विधाओं में अवधी साहित्य रचा जा रहा है।” अवधी महोत्सव 2009 का उद्घाटन हिन्दी संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष डॉ.शंभुनाथ ने किया। उन्होने अपने उद्घाटन भाषण में अवधी साहित्य की विशेषताओं का उल्लेख किया।
अवधी महोत्सव 2009 के आयोजक,अवध भारती समिति के महामंत्री डॉ.रामबहादुर मिश्र ने अपने संबोधन में कहा –“जिस भावना के साथ आज से बीस वर्ष पूर्व अवध भारती का बीज बोया गया था उसे फलता-फूलता देख जो प्रसन्नता हो रही है- वह शब्दातीत है।समय ने एक नया आवाहन किया है,हम सब अवधी अनुरागी एक संगठित शक्ति के रूप में कटिबद्ध हो चुके हैं।”
विचार गोष्ठी के संचालक डॉ.सुशील सिद्धार्थ ने विषय प्रवर्तन किया “भूमंडलीकरण के दौर में स्थानीयता का महत्त्व बढ गया है।अवधी को अपनी ऐतिहासिक भूमिका निभाने के लिए तैयार रहना चाहिए।”
बोली बानी के संपादक जगदीश पीयूष ने कहा-“हिन्दी का महत्त्वपूर्ण साहित्य अवधी में ही है,चाहे वह संत साहित्य हो ,भक्ति साहित्य हो या फिर वह सूफी साहित्य हो। फैजाबाद के डॉ.राजनरायन तिवारी ने कहा-अवधी श्रेष्ठजनों की भाषा है,उसने सदैव शाश्वत मूल्यों और प्रगतिवादी विचारधारा को प्रश्रय दिया”। इस अवसर पर डॉ.अशोक अज्ञानी,डॉ.त्रिलोकीनाथ सिंह,डॉ.अनामिका श्रीवास्तव,डॉ.सुरेशप्रकाश शुक्ल,डॉ.उषा सिन्हा,जगन्नाथ त्रिपाठी,डॉ.श्यामसुन्दर दीक्षित,डॉ.गौरीशंकर पाण्डेय,डॉ.ज्ञानवती दीक्षित ने भी अपने विचार व्यक्त किये।
लोकार्पण:
इस अवसर पर डॉ.रामबहादुर मिश्र द्वारा संपादित नखत-3 ,अवध ज्योति,सूर्य प्रसाद शर्मा निशिहर की कृति:म्वार नाव आजाद तथा राना बेनी माधव, रश्मिशील की कृति कोखजाये,रामनिवास पंथी की कृति महोबा की ऐतिहासिक लोक कथायें,डॉ.अशोक अज्ञानी की कृति रामजुहारि, एवं अमृतायन(त्रैमासिकी),कुसुम की काव्य कृति कुसुमांजलि, शिवनारायणन मिश्र की कृति मोटर खड़ी जाम गलियारा डॉ. गौरीशंकर पाण्डेय की कृति चीख और चहक का लोकार्पण किया गया।
द्वितीय सत्र:
दूसरे सत्र में हिन्दी संस्थान के निदेशक डॉ.सुधाकर अदीब की अध्यक्षता में अवधी कविसम्मेलन हुआ जिसमें-डॉ.अशोक अज्ञानी,डॉ.सुरेशप्रकाश शुक्ल,रामकशोर तिवारी,जगदीश पीयूष,सुशील सिद्धार्थ,अजय प्रधान,भूपेन्द्र दीक्षित,रजनी निशा,इन्द्रबहादुर सिंह,रश्मिशील,अम्बरीश अम्बर,रामेश्वर द्विवेदी,लोकतंत्र शुक्ल सहित अनेक कवियों ने काव्य पाठ किया। संस्था के अध्यक्ष ओम प्रकाश जयंत ने सबके प्रति आभार व्यक्त किया।
नखत योजना:--
समकालीन अवधी कवियों की रचनात्मक चेतना का मह्त्त्वपूर्ण दस्तावेज़
संपादक: डॉ. रामबहादुर मिश्र ,प्रकाशक:अवध भारती समिति हैदरगढ़ बाराबंकी ,उ.प्र. फोन:09450063632
नखत -1 के कवि
1.आनंद प्रकाश अवस्थी
2.बृजेन्द्र मिश्र
3.गुदडी के लाल
4.ओमप्रकाश जयंत
5.डॉ.गौरीशंकर पाण्डेय
‘अरविन्द’
6.शेषपाल सिंह शेष
7.लक्ष्मी प्रसाद प्रकाश
8.जगदीश सिंह नीरद
9.श्यामनारायण अग्रवाल
‘विटप’
10.राम कृष्ण संतोष
11.डॉ.रामबहादुर मिश्र
‘अवधेन्दु’
नखत-2 के कवि
1-डॉ.महेश प्रतापनारायण
अवस्थी
2.सत्यधर शुक्ल
3.आद्याप्रसाद सिंह’प्रदीप
4.डॉ.भारतेन्दु मिश्र
5.योगेन्द्र बहादुर सिंह
‘आलोक सीतापुरी’
6.डॉ.राघव बिहारी सिंह
7.सच्चिदानन्द तिवारी ‘शलभ’
8.शिवप्रसाद गुप्त ‘पागल’
9.डॉ.श्यामसुन्दर मिश्र ‘मधुप’
नखत-3 के कवि
1.जगदीश “पीयूष’
2.डॉसुशील सिद्धार्थ
3.भूपेन्द्र दीक्षित
4.आचार्य सूर्यप्रसाद शर्मा ‘निशिहर’
5.इन्द्रबहादुर सिंह ‘इन्द्रेश’
6.अजय सिंह वर्मा’अजय’
7.रजनी श्रीवास्तव ‘निशा’
8.डॉ.अशोक अज्ञानी
प्रथम सत्र
लखनऊ,29अप्रैल 2009,उत्तरप्रदेश हिन्दी संस्थान के निराला सभागार में अवध भारती समिति हैदरगढ, बाराबंकी द्वारा आयोजित अवधी महोत्सव-2009 प्रो. सूर्यप्रसाद दीक्षित जी की अध्यक्षता में संपन्न हुआ। अपने अध्यक्षीय भाषण में समकालीन अवधी साहित्य के सरोकार विषय पर बोलते हुए प्रो.दीक्षित ने कहा-“अवधी का इतिहास बहुत पुराना है,और इसका साहित्य विश्वस्तरीय है,शब्दभंडार बहुत व्यापक है। यह भाषा प्राचीन काल से ही केन्द्रीय भाषा रही है। इसने कभी भी अपनी पृथक मान्यता की माँग नही की। इसकी जनप्रियता निरंतर असंदिग्ध रही है। आज विभिन्न विधाओं में अवधी साहित्य रचा जा रहा है।” अवधी महोत्सव 2009 का उद्घाटन हिन्दी संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष डॉ.शंभुनाथ ने किया। उन्होने अपने उद्घाटन भाषण में अवधी साहित्य की विशेषताओं का उल्लेख किया।
अवधी महोत्सव 2009 के आयोजक,अवध भारती समिति के महामंत्री डॉ.रामबहादुर मिश्र ने अपने संबोधन में कहा –“जिस भावना के साथ आज से बीस वर्ष पूर्व अवध भारती का बीज बोया गया था उसे फलता-फूलता देख जो प्रसन्नता हो रही है- वह शब्दातीत है।समय ने एक नया आवाहन किया है,हम सब अवधी अनुरागी एक संगठित शक्ति के रूप में कटिबद्ध हो चुके हैं।”
विचार गोष्ठी के संचालक डॉ.सुशील सिद्धार्थ ने विषय प्रवर्तन किया “भूमंडलीकरण के दौर में स्थानीयता का महत्त्व बढ गया है।अवधी को अपनी ऐतिहासिक भूमिका निभाने के लिए तैयार रहना चाहिए।”
बोली बानी के संपादक जगदीश पीयूष ने कहा-“हिन्दी का महत्त्वपूर्ण साहित्य अवधी में ही है,चाहे वह संत साहित्य हो ,भक्ति साहित्य हो या फिर वह सूफी साहित्य हो। फैजाबाद के डॉ.राजनरायन तिवारी ने कहा-अवधी श्रेष्ठजनों की भाषा है,उसने सदैव शाश्वत मूल्यों और प्रगतिवादी विचारधारा को प्रश्रय दिया”। इस अवसर पर डॉ.अशोक अज्ञानी,डॉ.त्रिलोकीनाथ सिंह,डॉ.अनामिका श्रीवास्तव,डॉ.सुरेशप्रकाश शुक्ल,डॉ.उषा सिन्हा,जगन्नाथ त्रिपाठी,डॉ.श्यामसुन्दर दीक्षित,डॉ.गौरीशंकर पाण्डेय,डॉ.ज्ञानवती दीक्षित ने भी अपने विचार व्यक्त किये।
लोकार्पण:
इस अवसर पर डॉ.रामबहादुर मिश्र द्वारा संपादित नखत-3 ,अवध ज्योति,सूर्य प्रसाद शर्मा निशिहर की कृति:म्वार नाव आजाद तथा राना बेनी माधव, रश्मिशील की कृति कोखजाये,रामनिवास पंथी की कृति महोबा की ऐतिहासिक लोक कथायें,डॉ.अशोक अज्ञानी की कृति रामजुहारि, एवं अमृतायन(त्रैमासिकी),कुसुम की काव्य कृति कुसुमांजलि, शिवनारायणन मिश्र की कृति मोटर खड़ी जाम गलियारा डॉ. गौरीशंकर पाण्डेय की कृति चीख और चहक का लोकार्पण किया गया।
द्वितीय सत्र:
दूसरे सत्र में हिन्दी संस्थान के निदेशक डॉ.सुधाकर अदीब की अध्यक्षता में अवधी कविसम्मेलन हुआ जिसमें-डॉ.अशोक अज्ञानी,डॉ.सुरेशप्रकाश शुक्ल,रामकशोर तिवारी,जगदीश पीयूष,सुशील सिद्धार्थ,अजय प्रधान,भूपेन्द्र दीक्षित,रजनी निशा,इन्द्रबहादुर सिंह,रश्मिशील,अम्बरीश अम्बर,रामेश्वर द्विवेदी,लोकतंत्र शुक्ल सहित अनेक कवियों ने काव्य पाठ किया। संस्था के अध्यक्ष ओम प्रकाश जयंत ने सबके प्रति आभार व्यक्त किया।
नखत योजना:--
समकालीन अवधी कवियों की रचनात्मक चेतना का मह्त्त्वपूर्ण दस्तावेज़
संपादक: डॉ. रामबहादुर मिश्र ,प्रकाशक:अवध भारती समिति हैदरगढ़ बाराबंकी ,उ.प्र. फोन:09450063632
नखत -1 के कवि
1.आनंद प्रकाश अवस्थी
2.बृजेन्द्र मिश्र
3.गुदडी के लाल
4.ओमप्रकाश जयंत
5.डॉ.गौरीशंकर पाण्डेय
‘अरविन्द’
6.शेषपाल सिंह शेष
7.लक्ष्मी प्रसाद प्रकाश
8.जगदीश सिंह नीरद
9.श्यामनारायण अग्रवाल
‘विटप’
10.राम कृष्ण संतोष
11.डॉ.रामबहादुर मिश्र
‘अवधेन्दु’
नखत-2 के कवि
1-डॉ.महेश प्रतापनारायण
अवस्थी
2.सत्यधर शुक्ल
3.आद्याप्रसाद सिंह’प्रदीप
4.डॉ.भारतेन्दु मिश्र
5.योगेन्द्र बहादुर सिंह
‘आलोक सीतापुरी’
6.डॉ.राघव बिहारी सिंह
7.सच्चिदानन्द तिवारी ‘शलभ’
8.शिवप्रसाद गुप्त ‘पागल’
9.डॉ.श्यामसुन्दर मिश्र ‘मधुप’
नखत-3 के कवि
1.जगदीश “पीयूष’
2.डॉसुशील सिद्धार्थ
3.भूपेन्द्र दीक्षित
4.आचार्य सूर्यप्रसाद शर्मा ‘निशिहर’
5.इन्द्रबहादुर सिंह ‘इन्द्रेश’
6.अजय सिंह वर्मा’अजय’
7.रजनी श्रीवास्तव ‘निशा’
8.डॉ.अशोक अज्ञानी
रविवार, 19 अप्रैल 2009
आधुनिक अवधी कबि “पढीस”क्यार दुइ गीत
1. कठपुतरी
ठुनुकि ठुनुकि ठिठुकी कठपुतरी
रंगे काठ के जामा भीतर
अनफुरु पिंजरा पंछी ब्वाला
नाचि नाचि अंगुरिन पर थकि थकि
ठाढ़ि ठगी अस जस कठपुतरी।
छिनु बोली छिनु रोयी गायी
धायी धक्कन उछरि-पछरि फिरि
उयि ठलुआ की ठलुहायिनि ते
परी चकल्लस मा कठपुतरी।
(चकल्लस साप्ताहिक के 19वें अंक,23 जून 1938 में पहली बार प्रकाशित)
2.पपीहा बोलि जा रे
पपीहा बोलि जा रे
हाली डोलि जा रे।
बादर बदरी रूप बनावइं
मारइं बूंदन बानु
तिहि पर तुइ पिउ पिउ ग्वहरावइ
हाकंन हूकन मानु
पपीहा बोलि जा रे।
तपि तपि रहिउं तपंता साथी
लूकन लूक न लागि
जानि रहे उइ कहूं कंधैया
लागि बिरह की आगि
पपीहा बोलि जा रे।
छिनु छिनु पर छवि हायि न भूलयि
हूलयि हिया हमार
साजन आवयिं तब तुइ आये
आजु बोलु उयि पार
पपीहा बोलि जा रे।
(माधुरी, फरवरी 1943 में पहली बार प्रकाशित)
.. बलभद्र प्रसाद दीक्षित “पढीस”
ठुनुकि ठुनुकि ठिठुकी कठपुतरी
रंगे काठ के जामा भीतर
अनफुरु पिंजरा पंछी ब्वाला
नाचि नाचि अंगुरिन पर थकि थकि
ठाढ़ि ठगी अस जस कठपुतरी।
छिनु बोली छिनु रोयी गायी
धायी धक्कन उछरि-पछरि फिरि
उयि ठलुआ की ठलुहायिनि ते
परी चकल्लस मा कठपुतरी।
(चकल्लस साप्ताहिक के 19वें अंक,23 जून 1938 में पहली बार प्रकाशित)
2.पपीहा बोलि जा रे
पपीहा बोलि जा रे
हाली डोलि जा रे।
बादर बदरी रूप बनावइं
मारइं बूंदन बानु
तिहि पर तुइ पिउ पिउ ग्वहरावइ
हाकंन हूकन मानु
पपीहा बोलि जा रे।
तपि तपि रहिउं तपंता साथी
लूकन लूक न लागि
जानि रहे उइ कहूं कंधैया
लागि बिरह की आगि
पपीहा बोलि जा रे।
छिनु छिनु पर छवि हायि न भूलयि
हूलयि हिया हमार
साजन आवयिं तब तुइ आये
आजु बोलु उयि पार
पपीहा बोलि जा रे।
(माधुरी, फरवरी 1943 में पहली बार प्रकाशित)
.. बलभद्र प्रसाद दीक्षित “पढीस”
सोमवार, 30 मार्च 2009
सदस्यता लें
संदेश (Atom)