साधौ,आपन करम बिचारो|
दूर करो परजा के सब दुःख अपने मन का रावण मारो|
सांपिन सत्ता की केचुल का अपने हाथ उतारो|
आगि लगि चुकी है लंका मा
सबका पौरुख
है संका मा
एफडी आई की ठंडाई
पूरे घर के काम न आयी
दस मुंडी दस मुकुट धरे हौ इनका तनिक उघारो |
अहंकार का अमिरितु छानेव
हित अनहित की बात न मानेव
दौड़ धूप, मेहनति खुब कीन्हेव
सही राह अब लौ ना चीन्हेव
अपनी रास्ता के पहाड़ लांघो पथ अपन बहारो|
@ भारतेंदु मिश्र