बुधवार, 18 नवंबर 2009

report on avadhi language convention

रपट


अवधी भासा संगोस्ठी (16-17 नवम्बर 2009)
साहित्य अकादमी,नई दिल्ली अउरु अवधी अकादमी ,गौरीगंज सुल्तानपुर-उत्तर प्रदेश के सहयोग ते साहित्य अकादमी ,नई दिल्ली के सभागार मा 16-17 नवम्बर 2009 का दुइ दिन कै संगोस्ठी क्यार आयोजन कीन गवा। इतिहास मा पहिली दफा देस कि राजधानी दिल्ली मा अवधी भासा क्यार ऐस मनोरम समारोह सम्पन्न भवा। यहि संगोस्ठी क्यार ब्यौरा ई तना है-
पहिल दिनु(16,नवम्बर-2009)
सबेरे पहर करीब 10 बजे उद्घाटन भवा।सबते पहिले साहित्य अकादमी के सचिव -अग्रहार कृष्णमूर्ति सब अतिथिगणन क्यार स्वागत कीन्हेनि।अवधी अकादमी की तरफ ते भाई जगदीश पीयूष अतिथिंन क्यार परिचय करायेनि।साहित्य अकादमी के उपाध्यक्ष श्री एस.एस.नूर ई बेरिया कहेनि-
‘अवधी भाषा हिन्दी की वल्लरी है।वह कोई गुलाम भाषा नही है।अवधी की अपनी संस्कृति है,उसका विकास होना चाहिये।अवधी 20 करोड लोगो की भाषा है।‘
यहि मौके पर संगोस्ठी केरि अध्यक्षता करति भये साहित्य अकादमी के अध्यक्ष श्री सुनील गंगोपाद्ध्याय अपन बिचार ब्यक्त कीन्हेनि
-‘अवधी भाषा का बडा महत्व है।साहित्य अकादमी अब 22 भाषाओ पर काम कर रही है। अवधी को भी साहित्य अकादमी की भाषा बनाया जाना चाहिए।’
यहि अवसर पर लखनऊ ते पधारे डाँ. सूर्य प्रसाद दीक्षित संगोस्ठी क्यार बीज भासन बडे विस्तार से प्रस्तुत कीन्हेनि। वइ बतायेनि कि -अवधी भारत के अलावा फिजी,मारीशस,नेपाल जैसे देसन मा बोली जाति है ,हुआँ के कबि अवधी मा लगातार लिखि पढि रहे है। खासतौर पर अवधी उत्तर प्रदेस के 40 जिलेने कि भासा है यहि के साथ अवधी बिहार के मुजफ्फरपुर के आसपास,छत्तीसगढ के इलाके मा अउरु मध्य प्रदेस के जबलपुर ,कटनी ,रीवा जैसे इलाके मा बोली जाति है। यह बडी प्राचीन भासा आय ।यहिका प्रयोग दसवीं सदी ते लगातार कीन जाय रहा है।- श्री के.एस.राव यहि मौके पर सबका धन्यवाद दीन्हेनि।
उद्घाटन के बादि पहिले सत्र मा सीतापुर ते आये डाँ.अरुन त्रिवेदी अवधी भासा की प्राचीनता पर बडी महत्वपूर्ण चरचा कीन्हेनि।वइ बतायेनि कैसे कोसली प्राकृत भासा ते अवधी भासा क्यार बिकास भवा।यहि सत्र मा लखनऊ ते आयी डाँ.बिद्या बिन्दु सिंह अउरु जगदीश पीयूष भाग लीन्हेनि। अगले सत्र मा अवधी भासा अउरु साहित्य पर चर्चा कीनि गय। यहि मा अवधेन्दु प्रताप सिंह, भारतेन्दु मिश्र,भूपेन्द्र दीक्षित,कमल नयन पान्डे अपन पर्चा पढेनि। यहि सत्र क्यार संचालन सुशील सिद्धार्थ किहिन।
तिसरा सत्र प्रसिद्ध आलोचक डाँ.विश्वनाथ त्रिपाठी की अध्यक्षता मा सुरू भवा। यहि सत्र मा अवधी का वर्तमान साहित्य पर बिचार कीन गवा। यहि सत्र मा लखनऊ वि.वि.हिन्दी बिभाग की प्रो.कैलास देबी सिंह,ज्ञानवती दीक्षित,सुशील सिद्धार्थ ,आद्या प्रसाद सिंह प्रदीप अपन पर्चा पढेनि। यहि सत्र मा ज्ञानवती दीक्षित,सुशील सिद्धार्थ,कैलास देबी सिंह के परचा बहुत नई जानकारी दे वाले साबित भये।सत्र के अध्यक्ष डाँ. त्रिपाठी कहेनि - ’हमको लगता है कि मै अपने घर मे बैठा हूँ।बहुत प्रसन्नता हो रही है। अवधी का लोक नाट्य बहुत विशाल अउर लोक रंजक रहा है।कुछ नुक्कड नाटक आने चाहिए।उत्तर प्रदेश मे संस्कृति भवन बने। ’
संझा का मेघदूत मुक्ताकाश रंगमंच पर मालिनी अवस्थी के सहयोगिन का अवधी लोक गायन तो बहुतै मार्मिक रहा।मालिनी अवस्थी देबी भजन ते जउनु सुरू कीन्हेनि तो फिरि आठ बजे तक अवधी लोक गीतन क्यार समा बाँधि दीन्हेनि।
दूसर दिनु(17,नवम्बर-2009)
पहिल सत्र भाषाविद डाँ.विमलेश कांति वर्मा की अध्यक्षता मा शुरू भवा। यहि सत्र मा विदेश मे अवधी की स्थिति पर गह्न बिचार कीन गवा। यहि सत्र मा-रवि टेकचन्दानी,हरमिन्दर सिंह वेदी,राकेश पांडे अपन पर्चा पढेनि। यहि सत्र मा राकेश पांडे क्यार पर्चा सबते जादा सराहा गवा। डाँ.वर्मा अपने अध्यक्षीय भाषन मा कहेनि- ‘सूरीनाम,फिजी,त्रीनिदाद आदि देशो मे प्रवासी भारतीय हिन्दी मे ही अपनी बातचीत करते है। उनमे से अधिकांश अवधी और भोजपुरी मूल के ही है। रामचरितमानस आउर उनका लोकमंगल ही सब्को जोडे हुए है। वे लोग अवधी पढना चाहते है हमे अवधी मे आँन लाइन कोर्स शुरू करना चाहिए।‘ यहि सत्र क्यार संचालन जगदीश पीयूष कीन्हेनि।
अगला सत्र डाँ. विद्याबिन्दु सिंह की अध्यक्षता मा सुरू भवा। यहि सत्र मा अवधी के सामने चुनौतिन पर बिचार कीन गवा।यहि स्त्र मा विजय कुमार मल्होत्रा,मधुकर उपाध्याय,भारतेन्दु मिश्र,कमल नयन पांडे,रामबहादुर मिश्र,प्रांजल धर, अपन परचा पढेनि। यहि सत्र मा अवधी पत्रकारिता,अवधी का मीडिया मा प्रयोग ,इण्टरनेट पर अवधी क्यार प्रयोग की बिधि होय जैसे बिसयन पर चर्चा कीनि गइ। यहि सत्र मा राम बहादुर मिश्र बतायेनि कि नेपाल देश ते अवधी भासा मा समाचार प्रसारित होति है। आज समाज के संपादक मधुकर उपाध्याय अवधी मा अपनि बात रक्खेनि।वइ अवधी के शब्दकोश बनावै कि जरूरति बतायेनि। यहि सत्र क्यार संचालन भारतेन्दु मिश्र कीन्हेनि।
अगला सत्र अवधी केरे लोक साहित्य पर केन्द्रित रहा।यहि सत्र केरि अध्यक्षता डाँ. सूर्यप्रसाद दीक्षित कीन्हेनि।ई सत्र मा बिद्याबिन्दु सिंह,पवन अग्रवाल,अरुण त्रिवेदी,जितेन्द्र वत्स,रामेन्द्र पांडे अपन लेख पढेनि।यहि बिसय मा सबते नीक परचा पवन अग्रवाल क्यार रहा। सबते काम क्यार अध्यक्षीय भासन रहै।डाँ.दीक्षित बिस्तार ते अवध केरि लोक परम्परा बखानेनि। बहुति नई जानकारी मिली।यहि बेरिया कुछ नये संकल्प लीन गये ,कुछ नये सुझाव दीन गये। लोक साहित्य के संग्रह –सर्वेक्षण-चयन-प्रकाशन आदि बिसय पर नीति बनाई जाय पर सहमति बनी।एकु ज्ञापन तयार कीन गवा।
अवधी कवि गोस्ठी: पूर्व राज्यसभा सदस्य मसहूर कबि बेकल उत्साही की अध्यक्षता मा अवधी क्बि अपनि कबिता पाठ कीन्हेनि।कबि गोस्ठी क्यार संचालन समकालीन भारतीय साहित्य पत्रिका के संपादक बृजेन्द्र त्रिपाठी कीन्हेनि। कबिन कि बानगी यहि तना है- ’महुआ चुवै सारी रात/जियरा सजन बिनु पिहिकै। कोहबर कै सुधि भइ सतरंगी/नेह पिया कै सुगना पंखी/सालै भाँवर सात।’-सतीश आर्य
हम कबिरा कै बेटा धारदार बोलबे नीक लागै चाहे नाही आर-पार बोलबे हम जायसी,रहीम,तुलसी के गाँव मा जौन बोलबे करेजवा निकारि बोलबे। -वाहिद अली वाहिद

यक समय रहा रहिला बेझरा खायेन औ ठंडा नीर पियेन सब रोग दोख ते दूरि रहेन सो बरस केरि जिन्दगी जियेन अब चाऊमीन ,बर्गर ,पिज्जा का हम फैसन ते खाइति है पाखाना तक ना साफ होय हम काँखिति है चिल्लाइति है।
-रामेश्वर प्रसाद द्विवेदी प्रलयंकर

तू पुरवा कइ रवानी भूलि जात्या ऊ चूनर धानी-धानी भूलि जात्या
देखौत्या चारि दिन गउँवा म रहिके
तो सारी लंतरानी भूलि जात्या।– जमुना प्रसाद उपाध्याय
का का हमरे मन मा ,का सब तुम्है बताई का
का चाहति हौ भाई आपन नाक कटाई का।–भोलानाथ अधीर
बरसै सँवनवा कै बैरी बदरवा
कजरवा धुलि-धुलि जाय मोरे राम धीर्व-धीरे डोलै पवन पुरवैया/पिया परदेसी भये है निर्दइया मारे झकोर बेदरदी पवनवा/अँचरवा खुलि-खुलि जाय मोरे राम।–विकलसाकेती

सोन चिरई के जियरा उदास हो आयी बगियन मा फूलन कि बास हो।–प्रमिला भारती
रुनुक-झुनुक बिछुआ बजै/नपै खेत खलिहान चैत मास चूनर चटक/झलकै गरब गुमान।–सावित्री शर्मा
छोटी अँगुरी की ताँई काटै अँगुरी जो बडी ई तौ कौनौ दैहिक समानता न कही जाय।–मनोज
गँउवाँ –गेरउआँ सहर भये बाबा सहर भये बाबा,जहर भये बाबा।–बिद्या बिन्दु सिंह।
जनम से पहिले मारिउ न हमका,बस इहै अरज हमार हो आये सवनवा तब के बनये गुडुई,के झूले अमवा के डार हो।–डाँ राधा पांडेय
रात सागर बहाय गयी अँखियाँ भोर होतइ झुराय गयी अँखियाँ उत्साही है तुम का जानौ कैसे बेकल बनाय गयी अँखियाम।–बेकल उत्साही यहि अवसर पर जगदीश पीयूष,बृजेन्द्र त्रिपाठी अपनी कविता पढेनि। कुल बात या रही कि सबके मन मा यहि संगोस्ठी ते अवधी भासा क्यार एकु नवा संसार देखायी दे लाग है।
सबका राम राम।

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