आज जनकवि अवधी के निराला पं.बंशीधर शुक्ल की 107 वी जयंती है। प्रस्तुत है शुक्ल जी की एक मार्मिक कविता। देखिये तबसे अब तक किसान की दुनिया में क्या बदला है।
यक किसान की रोटी
यक किसान की रोटी,जेहिमाँ परिगइ तुक्का बोटी
भैया!लागे हैं हजारउँ ठगहार।
हँइ सामराज्य स्वान से देखउ बैठे घींच दबाये हइँ
पूँजीवाद बिलार पेट पर पंजा खूब जमाये हइँ।
गीध बने हइँ दुकन्दार सब डार ते घात लगाये हइँ
मारि झपट्टा मुफतखोर सब चौगिरदा घतियाये हइँ।
सभापती कहइँ हमका देउ, हम तुमका खेतु देवाय देई
पटवारी कहइँ हमका देउ, हम तुम्हरेहे नाव चढाय देई।
पेसकार कहइँ हमका देउ, हम हाकिम का समुझाय देई
हाकिम कहइँ हमइँ देउ, तउ हम सच्चा न्याव चुकाय देई।
कहइँ मोहर्रिर हमका देउ, हम पूरी मिसिल जँचाय देई
चपरासी कहइँ हमका देउ, खूँटा अउ नाँद गडवाय देई।
कहइँ दरोगा हमका देउ, हम सबरी दफा हटाय देई
कहइँ वकील हमका देउ, तउ हम लडिकै तुम्हइ जिताय देई।
पंडा कहइँ हमइँ देउ, तउ देउता ते भेंट कराय देई
कहइँ ज्योतिकी हमका देउ, तउ गिरह सांति करवाय देई।
बैद! कहइँ तुम हमका देउ, तउ सिगरे रोग भगाय देई
डाक्टर कहइँ हमइँ देउ, तउ हम असली सुई लगाय देई।
कहइँ दलाल हमइँ देउ, हम तउ सब बिधि तुम्हँइ बचइबै,
हमरे साढू के साढू जिलेदार।
यक किसान की रोटी,जेहिमाँ परिगइ तुक्का बोटी
भैया!लागे हैं हजारउँ ठगहार।
पं.बंशीधर शुक्ल
7 टिप्पणियां:
'यक किसान की रोटी' सही अर्थों में जन-कविता है। पं॰ बंशीधर शुक्ल जैसे तीक्ष्ण जनकवि की रचना से परिचित कराने के लिए आभार।
भारतेंदु जी
नमस्कार !
'' आदरणीय मिश्र जी को जन्म दिवस पे श्रदा सुमन अर्पित है .श्री मिश्र जी कि काव्य रचना से परिचय करवाने पे आभार !
साधुवाद !
एक किसान की रोटी पर इतने लोगों ने आँखें गड़ा रखी हैं , भला कौन होगा जो बचा होगा ! आज भी उतनी ही प्रासंगिक ! १०७ वीं जयन्ती पर इससे बेहतर क्या हो सकता है ! सादर !
kavita pade to
apane mate yad aa gai
ब्लाग पर अवधी की रचनाएँ प्रकाशित करके आप लोक साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं। अवधी के कुछ चैता लोकगीत दे सकें तो बहुत उपयोगी होंगे।
पंडित जी वास्तविक स्वतंत्रता सेनानी थे । समाज में किसी महान कवि को इस तरह भुलाया जाना वास्तव में दुर्भाग्यपूर्ण है। वे हमारे जिले के सदैव ज्ञान दीपक रहेंगे ।
आपकी टिप्पणी के लिए आभार।
एक टिप्पणी भेजें