सोमवार, 10 अक्टूबर 2016

साधौ,आपन करम बिचारो|

दूर करो परजा के सब दुःख अपने मन का रावण मारो|
सांपिन सत्ता  की केचुल का अपने हाथ उतारो|

आगि लगि चुकी है लंका मा
सबका  पौरुख है संका मा
एफडी आई की ठंडाई
पूरे घर के काम न आयी  
दस मुंडी दस मुकुट धरे हौ इनका तनिक उघारो |

अहंकार का अमिरितु छानेव
हित अनहित की बात न मानेव
दौड़ धूप, मेहनति खुब कीन्हेव  
सही राह अब लौ ना चीन्हेव
अपनी रास्ता के पहाड़ लांघो पथ अपन बहारो|
@ भारतेंदु मिश्र 



  

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