(लघु कथा)
मिठुआ सुर
# भारतेंदु मिश्र
प्रोफ़ेसर किरपासंकर दिल्ली
विश्वविद्यालय म पढ़ावति रहै | मेट्रो ते उनका रोजु आना जाना रहै| वाही दिन उनके बगल
कि सीट पर एमफिल. के दुइ चंट बिद्यार्थी बैठ रहैं, उनमा याक चटकि बिटवा रही दूसर वाहिका
दोस्त मुरहंट लरिकवा रहै |दुनहू लपटति –चपटति गपुवाय लाग| प्रोफ़ेसर अपने थैले ते
याक कितबिया निकारि के पढ़ै क नाटक करै लाग|उनकी नजर किताब म रहै मुला कान रिसीवर
बनिगे रहै |वैसी बगल म दुनहू अपनी लीला मा मगन रहैं|प्रोफ़ेसर उनकी तरफ देखे बिना
उनकी सब बातैं सुनत रहे|लरिकवा अपनी दोस्त ते कहेसि - ‘यार,सिनाप्सिस वाली प्रोबलम
साल्व करा दे|’
‘अभी तेरी सिनाप्सिस नहीं
बनी?’
‘ठहर, अभी ले... रिक्वेस्ट डालती
हूँ|’
‘कहाँ..?’
‘अरे वो सनकी प्रोफ़ेसर
शर्मा है ना,जो पिछले महीने रिटायर हुआ है.. ..वो लड़कियों को बहुत अच्छा रिस्पांस
करता है|’
बगल म बैठ किरपासंकर अब और
ध्यान ते उनकी बातैं सुनै लाग |
‘हम फोन किये रहेन,वो
चिरकुट फोन नहीं उठायेसि ...|’लरिकवा कहेसि |
‘चुप,घंटी जा रही है|’
‘हेलो!.सर मैं रुपाली,..सर
मेरा दोस्त ‘कबीर की भाषा’ पर काम कर रहा है|...तो उसे सिनाप्सिस जमा करनी है..सर
! कुछ प्वांट्स वाट्सेप कर दीजिए ना ?..कल सम्मिट करनी है सर| आप जब से रिटायर हुए
है न सर, आप जैसा कोई दूसरा टीचर विभाग में नहीं बचा जो हम विद्यार्थियों की मदत
करे|..प्लीज सर!...|’
‘क्या कहा सनकी ने?’
‘शाम तक हो जाएगा...मिठुआ
बोली के जादू से सब काम हो जाते हैं..|मैं तो ऐसे ही मिठुआ सुर लगाती हूँ और घर
बैठे अपने सब असाइंमेंट सनकी से वाट्सेप करा लेती हूँ| ठरकी बुड्ढों को चारा
फेंकने से ...’
‘.....थोड़ा चारा मेरे लिए
भी...बचा के रखना|’
प्रोफेसर किरपासंकर के कान
खड़े हुइगे ,वुइ अपने फोन पर आये तमाम बिटेवन के ई तना कर रिक्वेस्ट डिलीट करे लाग|
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