# भारतेंदु मिश्र
अब मनोहर इस्कूल के प्रिंसिपल कि सेवा करै लाग
रहैं |तब वुइ इस्कूल मा चौकीदार कि जगह खाली रहैं |तिरवेनी कि मदति से मनोहर कि कच्चे चौकीदार के
पद पर बहाली हुइ गै|तब महीना के रु.300 उनकी तनखाह बनी रहै| जब तिरबेनी मास्टर तिमारपुर
मा अपन सरकारी मकान एलाट कराय लीन्हेनि फिर अपन परिवार गाँव ते लय आये तब तिरबेनी कक्कू मनोहर ते कहिन्-‘मनोहर भैया अब तुम इस्कूल
मा रहौ ,हमका सरकारी मकान मिलिगा है |’ तनखाह तो थोरी रहै मुला
चौकीदारी मा रहैकि सुबिधा मनोहर क मिलि गै| अब पूरा इस्कूल उनका घरु हुइगा रहै |इनकी सेवा ते प्रिंसिपलवा याक दिन कहेसि रहै -
‘देखो! मनोहर ,रात
में इस बिल्डिंग के तुम्ही मालिक हो|किसी को बिलावजह घुसने न देना|कोई परेसानी हो
तो मुझे रात में फोन करना और मेरा फोन न मिले तो सीधे 100 नम्बर, माने पुलिस को|इस
करोड़ों की सरकारी जायादात के मालिक अब तुम ही हो|’
‘जी साहेब ,समझ गएन
|पूरे जी जान से चौकीदारी करबै |’
मनोहर राति मा टार्च लैकै जब स्कूल म गश्त
लगावें तो मन मा बहुत खुस होंय,मानौ यह उनकी बाग़ आय |गाँव म जब अंबिया लगती रहें तब राति म बाग़
रखवाई खातिर मनोहर बागै जाति रहैं | धीरे धीरे मनोहर क सब बीती जिन्दगी के किस्सा रहि
रहि यदि आवै लाग| रिटायर हुइके गांवे जायकि बड़ी ललक रहै|
फिर यादि आवा – कि नौकरी पर बहाली के बादि अब मनोहर सात आठ एकड़ जमीन पर बने इस्कूल म चौबिसौ घंटा रहै
लाग| इस्कूल औ प्रिंसिपल कि सेवा मा उनका सब टाइम कटै लाग| फिर नौकरी पक्की भइ ,कुछ
तनखाह बढ़ी तो अपन जेब खर्च निकारि के सब बड़े भैया
के नाम मनीआर्डर ते गावैं पठवै लाग| बड़े भाई रामेसुर सब खेती किसानी औ इनकी गिरिस्ती
संभारे रहैं| साल बादि जब मनोहर गाँव पहुंचे तो रामेसुर कहिन- ‘अब तुम्हरी दुनहू बिटिया
सयानी हुइ गयी है, इनका बिहाव करैक सोचि लेव| सीता अठारह कि भै, औ गीता सत्तरह कि है| बिन महतारी कि बिटेवा कब
तक घर मा बैठरिहो ? जब ते तुमार दुलहिन मरी रहै, तब ते तुम गाँव आना कम कइ दिहेव
? ..’
‘हाँ दद्दू ,मुला हमरे तीर तो बियाहे खातिर पैसा है नहीं,जो थोरा पैसा जोरेन रहै सब
वहिके इलाज मा खर्च हुइगा | तुमते का छिपा है ?’
‘ बौड़मदास , तो का सयानी बिटेवा घर मा बैठरिहो ?’
‘नाहीं ,दद्दू अब तुमहे बताओ ..का करी|’
हुक्का गुड़गुड़ावति
भये रामेसुर बोले-
‘पांच साल ते तुम्हारि खेती औ गिरिस्ती संभार
रहेन है| अब का तुमरी बिटेवा हमहे बियाहब ? अपन बंटवारा कइ लेव .. तुम
जो दुई तीन हजार रुपया भेजि देति हौ तो का वहिमा तुमरी बिटियन क बिहाव हुई जाई?’
‘दादा ,हम का बताई ..रास्ता तो तुमहे बतैहौ| ’
‘तुम सरकारी चौकीदार बने घूमति हौ .हम गंवार मनई
हियाँ गाँव वाले पूछै लाग हैं कि सीता गीता क्यार बिहाव कब करिहौ ? ’
‘तो बताओ का करी ?’
‘अरे , न होय तो ,पुरबह वाला चारि बिगहा वाला खेतु बेंच लेव| ’
‘दद्दू ,खेतु घरहे म रहि जाय ..कोई दूसर उपाय बताओ|’
‘और हम का बताई , न होय तो अपने भतीजे महेसवा का दिल्ली लै जाओ ,यहू का चौकीदारी मा बहाली
करवाय देव,तो तुमरी बिटिया बेहि जैहैं| लरिका मिलतै खन बिहाव हुई
जाई|’
‘ठीक है दद्दू! कोसिस कीन जाई, नई बहाली अबै बंद
हैं|’
दुसरे दिन मनोहर
दिल्ली लौटि आये|मनोहर अपने भतीजे के लिए सबते चिरौरी कीन्हेनि मुला कहूं बात न बनी|महीना बाद
महेसवा घर लौट गवा| चार दिन बादि रामेसुर कि चिट्ठी आयी|वहिमा लिखा रहै-‘ महेस कि
नौकरी तो लगी नहीं अब अपने हिस्से कि जमीन हमरे नाम कइ देव औ सीता गीता कि चिंता
से आजाद हुइ जाव|’
चौकीदारी म जादा
छुट्टी न मिलत रहै| राति मा सीटी, डंडा फटकारे के अलावा दिन मा प्रिंसिपल कि सेवा..लेकिन
हियाँ साफ़ सफाई औ मेहनत के मामिले म गाँव ते जादा मस्ती रहै|टाइम पर घंटी बजावैं औ साहेब
कि मेज मनोहर बड़े मन ते चमकावति रहैं | अब तिरबेनी मास्टर रिटायर
हुइगे रहैं |वुइ अपने गाँव लौटि गे रहें|दुःख तकलीफ बतलाय वाला हिंया दिल्ली म कौनौ न रहै| आज फिर वाहिका
वह बिटियन के बियाहे कि सौदेबाजी यादि आयी|
थोरे दिन मनोहर
चुपान रहे ,लेकिन याक दिन सुबेरे गाँव ते फोन आवा रहै -‘हम लकड़बग्घा बोल रहेन हैं...’
‘दादा पांयलागी,.. ’
रामेसुर की आवाज पहिचाने म देर न लगी| रमेसुर गाँव जवार म अपन जलवा बनाए रहें|
उनके भौकाल के तई गाँव के लरिका उनका लकड़बग्घा कहै लाग रहैं|
‘ठीक है दादा ,तुम
जौन कहत हौ ,हमका वहु मंजूर है|..हम अपन सब जमीन तुमरे नाम कर देबै,तुम लरिका देखि
लेव|..हमारी सीता गीता क अब तुमहे पार घाट लगैहौ|..हम येही हफ्ता म आइत है|
दादा!..अब बिटिया पैदा कीन है,तो वाहिकी सजा हमहे भुगतब|’
‘हाँ तो पहिले हमरे
नाम दाखिल खारिज कराओ तब आगे बियाहे कि कौनिव बात होई| तुहार कौन भरोसा ...’
मनोहर अपने हिस्से
कि जमीन रमेसुर के नाम करा दीन्हेनि| फिर दुनहू बिटेवन के बियाह रमेसुर अपने हिसाब
ते निपटा दीन्हेनि रहै| मनोहर सब खेती बिटेवन के मारे अपनेहे भाई ते हारि चुके
रहें| बिटेवा अपने घर की हुइ गयीं | बाप ते उनका जादा संबंध कबहू न बनि पावा,वुइ
दुनहू लकड़बग्घा के भौकाल ते जुडी रहैं|
अब मनोहर खुद का कटी
कनकैया ताना बेघर महसूस करइ लाग रहै|रिटायरमेंट के बादि गाँव जाय कि वहिकी इच्छा अब
मरि गइ रहै|हालांकि स्कूल म सबते यहै कहेनि कि गाँव जाय रहें है लेकिन वुइ नन्द नगरी
की मलिन बस्ती म एक कमरा वाला मकान लै के रहै लाग| अब उनका लाखन रुपया रिटायरमेंट
पर मिला रहै|बिटिया दामाद उनते संपर्क कीन्हेनि मुला मनोहर अब गाँव कि सब नातेदारी
त्याग दीन्हेनि रहै|अब उनका नन्द नगरी म महुआ मिलि गय रहैं| महुआ चार घरन म चौका
बासन करति रहै|मनोहर वहिते अपन खाना बनवावे लाग|धीरे धीरे महुआ कब मनोहर के घर ते
मन मा समय गयीं कुछ पता न चलि पावा| यवै याक दिन पान कि दूकान पर दुनहू कि मुलाक़ात
भइ रहै| दुनहू बीड़ी पियै के सौखीन रहैं| महुआ के आगे पाछे कोऊ न रहै| मनोहर अपने
आगे पाछे वालें क त्यागि चुके रहें|बरसन बादि महुआ औ मनोहर जिन्दगी कि खुसी क मतलब
समझेनि रहै| अब महुआ मनोहर साथै रहै लाग तो महुआ दुसरे घरन का चौका बासन बंद कइ
दीन्हेनि |
अब दुनहू अपनी नई
दुनिया म मगन रहें| अब अपन घर दुआर दुलहिन सब मनोहर जुटाय लिहिन तो याक दिन महुआ
पूंछेसि- ‘हम दोनो सादी कइ लें ?’
मनोहर कहेनि –‘काहे
सादी बियाह कि क्या जरूरत है..? यही तना लिव इन ...म रहबै | तुमका कोई तकलीफ है
का?’
‘नाहीं ...हमरे कौन
बैठा है पूछे वाला...’
‘तो चलौ फिलिम देखे
चली ...ईडीएम म इश्किया लगी है| हमका ऊ ‘आजा रे संवरिया’ वाला गाना बहुत नीक लागति
है|’
महुआ मनोहर कि
जिन्दगी म जैसे जैसे दाखिल भय,मनोहर कि सब पुरानि जिन्दगी मानौ खारिज हुइगै रहै|अब
मनोहर क महुआ के अलावा कुछ यादि न रहै|
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