शनिवार, 28 जुलाई 2018


वरिष्ठ कथाकार शिवमूर्ति की (अवधी कहानी)-

तिरिया चरित्तर-

शिवमूर्ति

एक किसान का अपनी मेहरारू के चाल चलन पर सक होइगा |जब वहु अपनी मेहरारू ते येहिके बारे 

म बात किहिस तब वा कहिस –

‘तुम्हार कसम ! जो कोऊ दुसरे का सपनेउ मा सोचा होय | ’

किसान कहिस ‘हमका तो बिसुवास नहीं होत |तुम्हार तिरिया चरित्तर हम जानित है|’

मेहरारू कहेसि ‘तिरिया चरित्तर करब तौ तुम्हार होस गम हुइ जाये,गोडन पर फाटि परिहौ,पनाह 

मांगि लेहौ | गोडन पर गिरिकै माफी न मांगौ तो हम चमारिन नहीं | ’ किसनवा खौहाय के कहेसि 

–‘का कहेव,!गोडन पर गिरिकै माफी मांगब औ वहौ तुम्हारे गोडन पर? ’

‘हाँ हाँ ,हमारे गोडन पर गिरिकै गोड पकरिके माफी मंगिहौ |नकुना रगरिहौ |’

‘का बक्कत हौ? ’ मर्दवा बोला |

‘अच्छा अजमाय के देखि लियो ’-मेहरारू बोली|

‘औ जो माफी न माँगा तो ?’

मेहरारू कहेसि –‘जतने दिन माफी न मंगिहौ वतने दिन तुम हमारे चारि लट मारेव |हमार झोंटा 

पकरि के गाँव के बीचोबीच लै चलेव औ सबके आगे पीठी पर चारि लात मारिके लौटेव |’


किसान कहेसि ‘ठीक है|मुला अपनी बात ते पाछे न पछरेव| बात पक्की मानत हौं? ’

‘हाँ हाँ, बिलकुल पक्की | मुला याक सर्त है,यह बात हमरे औ तुम्हरे बीचा म रहय क चही ,तीसर 

कोऊ न जाने पावै |हमरे तुम्हरे से जे कोऊ तिसरे मनई का बात बताये वाहिका जुरमाना देय क परे |’
किसनवा हामी भरि लिहिस |मेहरारू कहेसि –‘चलो आज से सुरू हुइ जाव |’

किसान मेहरारू क झोंटा पकरि के घिर्रावत बीचोबीच गाँव लइगा औ मेहरारू के चुतरे पर चारि पांच 

लात मरेसि |मेहरारू मार खात जाय औ चिल्लात जाय|साथेम अपने पति का गरियावति जाय-‘यहु 

नासिकाटा मारे डारति है |इहिके हत्यारी सवार है,पगलाय गवा है |’

गाँव भर खड़ा तमासा देखत रहा| सब मनई हक्का बक्का | आखिर काहे मारे डारत है अपनी 

मेहरारू का | कुछ जने आगे बढे औ पूछे लाग –‘कौन कसूर कइ डारिस यह बिचारी, जौनु झोंटा पकरे मारे डारत हौ ?’

किसान कहेसि-‘तुम सबसे का मतलब |हमार मेहरारू आय ,मारी चहै गरियाई खाना, कपड़ा -लत्ता 

हमहीं देइति है| जाव भागत जाव हिंया से ,आपनि  आपनि राह द्याखो | ’ सगरा गाँव चुपाय गवा |

अब रोज रोज यहु नाटक गाँव के बीचोबीच होया लाग |किसनवा रोजुय झोंटा पकरि के लैजाय औ बीच गाँव मा वहिके चुतरे पर चारि पांच लात लगावै तब घर का लौटे | होत करत कइयो दिन बीत गए |याक दिन किसान कि मेहरारू याक बड़ी भारी मछरी लइके खेते म गाड़ि आयी ,जौने खेते म किसान का सबेरे हर चलावे क रहा| सबेरे जब किसान हर बैल लइके खेत जोते लाग तौ थोरी देर बाद वाहिका हर हुवां पहुंचा जहां मछरी गाड़ी रही |हर का फार लगतै मछरी उपराय आयी |मछरी देखतै वाहिका बड़ा अचम्भा भवा,मारे खुसी के मेहरारू क गोहरायेसि जउन खेत मा खर पतवार बीनत रही|मेहरारू अपने मर्द कि आवाज सुनिके वहिके लगे आयी तो किसनऊ वाहिका मछरी देखे के कहिन-‘देख रे खेते म कतनी बड़ी मछरी बोयी रही |चल इहिका लैके घर चल,औ जल्दी से करहिया मा चढ़ाय के तयार कर |आज मछरी भात खावा जाए|बहुत दिनन बादि अस मौक़ा मिला है|’

मेहरारू मछरी लइकै घर चली गय |यहर किसान खेत जोत मयाय के घर पहुंचा |बैलन का सानी 

पानी कइके नांदी पर लगाइस औ नहाय धोय के रसोइयाँ म पहुंचि गवा | मेहरारू से कहिस –‘लाव 

जल्दी से मछरी भात ,बड़ी जोर भूख लागि है|’

मेहरारू थरिया मा नमक भात लाय के धइ दिहिस औ रोसइयां के भीतर चली गै| मछरी कि जगह 

नमक देखि के वहु भड़कि उठा बोला-‘मछरी कहाँ गै?

मेहरारू बोली –‘मछरी तो हम खाय लीन|’

किसनवा पूछेसि -‘का सबियों अकेलेन खाय लिहेव ?’

मेहेरुआ बोली-‘हाँ,हमका बड़ी नीकि लाग,खातै चली गएन ,सबिहौं खाय गएन,तुमरी खातिर तनिकौ 

नहीं बची |’

किसान एक तो भुखान रहा दुसरे सबेरेन से वहु मनै मन मछरी मछरी सोचत रहा ,औ हिंया यह 

ससुरी अकेलेन भकोसि लिहिस |किसान क गुस्सा सतएं असमान पर पहुंचि गवा| चौके से उठा औ 

बैलन का पीटे वाला पैना (चाबुक) लइके महेरिया का पीटे लाग| महेरिया चिल्लात औ गोहार 

लगावत घर से भागि |गाँव भरि इकट्ठा हुइ गवा| ‘अबै तक तो चारि लातै मारत रहा आज तो मारे पैनन के कचूमर निकारे डारत है|’ लोग बाग़ पूछै लाग –‘आज काहे मारे डारत है |’

किसान मछरी वाला किस्सा बतावै लाग | यही बीच मेहरारू गाँव वालेन से पूछेसि –‘भैया सब जने 

खेती पाती करत हौ,हर जोतत हौ,कबौ खेते म मछरी पायेव ? फिर ई दाढीजार क कसक मिलिगै| 

रोज चारि पांच लात मारिके नहीं अघान तो आज पैना से मारि के जान लेय पर उतारू है| हम 

कबते कहित है कि ई पगलाय गवा है मुला तुम गाँव भर हमार बिसवास नहीं करतू | कौनो दिन यहु हमका मारि डारे तो पूरे गाँव का हत्यारी पाप लागे|’

यहु सुनते किसनवा औरउ जोर से गुस्साय के महेरिया का पीटे लाग|अब तो गाँव वालेन का पक्का 

बिसुवास हुइ गवा कि यहु पगलाय गवा है|कुछु उपाय कीन जाय| सोच बिचार के गाँव भर उनका 

याक पेड़ मा बाँधि दिहिस औ सब लोग कहिन-‘ई ससुरऊ जब ठीक हुइ जांय तब खोला जाये| 

इनका हियैं खाना पानी दियो |हियैं खांय हियैं हगें|’

अब मेहरारू रोज उनका हुवें खाना पानी दै आवै | बंधे बंधे पांच छ दिन बीती गए तो याक दिन जब मेहरारू खाना पानी लइकै गय तो किसनऊ वहिके गोडन पर फाटि परे औ गोड पकरि के माफी मांगै लाग | मेहेरुआ मुस्कियानि किसनऊ से कहिस –‘हारी मानौ, तिरिया चरित्तर देखि लिहेव|’

किसनऊ कहेनि –‘हाँ तिरिया चरित्तर देखिऊ लीन समझिऊ गएन| ’

मेहेरुआ मुसकाय के कहेसि -‘ठीक है|’

मेहेरुआ उनके बंधन खोल दिहिस औ घर का लै गय| दूनौ जने फिर हंसी खुसी रहै लाग|

(अवध ज्योति पत्रिका से )

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संपर्क: विकास खंड-2,गोमती नगर , लखनऊ 

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