सोमवार, 14 अक्टूबर 2019


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अवधी काव्य धारा के स्रोत 

# भारतेंदु मिश्र
(यह संयोग ही है कि वरिष्ठ आलोचक डॉ.विश्वनाथ त्रिपाठी की पुस्तक -प्रारम्भिक अवधी,जगदीश पीयूष द्वारा संपादित -जैमिनी पुराण,डॉ.ज्ञानवती द्वारा लिखी -अवधी की आधुनिक प्रबंध धारा,अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी द्वारा संपादित -समकालीन अवधी साहित्य में प्रतिरोध जैसी पुस्तकें एक ही वर्ष अर्थात 2018-2019 के अंतराल में ही प्रकाशित हुई हैं| )
'कुवलयानंद' के साक्ष्य के आधार पर डॉ.विश्वनाथ त्रिपाठी जी ने भी कोसली को ही अवधी की पूर्वजा भाषा स्वीकार किया है| चौदहवीं सदी से पहले भी अवधी का लोक रूप समाज  में व्याप्त हो चुका था|
ब्रज और अवधी असल में प्रारम्भिक हिन्दी के दो भाषा रूप हैं|वैसे तो अन्य लोक भाषाएँ और बोलियाँ भी हिन्दी में जुड़ती गयीं किन्तु प्राचीन हिन्दी में आख्यानधर्मी काव्य केवल अवधी,बुन्देली और ब्रज भाषा में ही पाए जाते हैं| इस प्रकार अवधी की आख्यान धर्मिता ही प्राचीन हिन्दी की परिचय भूमि सिद्ध होती है|आज बात कर रहा हूँ - डॉ.ज्ञानवती जी की हाल में प्रकाशित महत्वपूर्ण पुस्तक “ अवधी की आधुनिक प्रबंध धारा’ के बारे में |
एक तरफ़ आधुनिक अवधी कविता की मुक्तक विधा बलभद्र प्रसाद दीक्षित जी से शुरू होकर आगे बढ़ती हुई आज नए सोपान तय कर रही है| आज अवधी कवियों के सामने प्रगतिशीलता के जो नए आयाम दिखाई देते हैं वे पहले उपस्थित न थे| पिछले वर्ष ही नोटबंदी को लेकर लगभग दो दर्जन कवियों की अवधी कविताओं का संचयन और संपादन भाई अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी ने किया है|जिसका शीर्षक है-‘समकालीन अवधी साहित्य में प्रतिरोध’,इसका शीर्षक अवधी कविता में प्रतिरोध होता तो अधिक समीचीन होता| इसके बावजूद यह पुस्तक इक्कीसवीं सदी की  अवधी रचनाशीलता और प्रतिरोध को उजागर अवश्य करती है|
यहाँ मैं इतना ही कहना चाहता हूँ कि अब अवधी में भी प्रबंध काव्य धारा क्षीण हो चुकी है | तात्पर्य यह कि पढीस,बंशीधर शुक्ल,रमई काका आदि ने कोई महाकाव्य नहीं लिखा| विश्वनाथ पाठक जी ने लिखा भी तो नवीन विषयात्मक प्रसंग चुना- ‘घर कै कथा’ जबकि ‘सर्वमंगला’ एक तरह का भावानुवाद है| डॉ. ज्ञानवती जी की यह पुस्तक इस दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है कि इसमें सैकड़ों प्रबंधकाव्यों और उनके रचनाकारों का उल्लेख और संक्षेप में परिचय भी दिया गया है| आधुनिक काल अर्थात स्वातंत्र्योत्तर काल से अब तक के समय को लक्ष्य मान लिया जाय तो भी अवधी में अनेक प्रबंध काव्य इस अवधि में लिखे गए| परन्तु पुस्तक में संदर्भित सूची को देखने से पता चलता है कि इस नए काल खंड में भी पारंपरिक विषयों को ही कवियों ने कथावस्तु के रूप में चुना है,जबकि उनके सामने अन्य कई विकल्प और प्रगतिशील उपाख्यान भी उपस्थित थे|
इस पुस्तक में मुल्ला दाऊद कृत- चंदायन (1379),कुतुबन कृत –मृगावती (1560)सहित 31 प्रेमाख्यान धर्मी प्रबंधकाव्यों और कवियों का उल्लेख है|इसके साथ ही कृष्ण कथा से जुड़े 13 प्रबंध कवियों का भी उल्लेख है| लेखिका के अनुसार आधुनिक काल (1885 से 2018 तक)में लिखे गए प्रबंध काव्यों की सूची 82 है| इसप्रकार शताधिक प्रबंध काव्यों की सूची लेखिका ने बहुत परिश्रम से प्रस्तुत की है|आधुनिक काल में भी ज्यादातर भक्तिपरक प्रबंधकाव्य ही लिखे गए हैं| ऐसा लगता है कि आधुनिक अवधी के अधिकाँश प्रबंध कवि गोस्वामी तुलसी की सगुण भक्ति परंपरा से स्वयं को मुक्त नही कर पाए| अभी कुछ दिन पहले जगदीश पीयूष जी द्वारा संपादित, गोस्वामी तुलसीदास के समकालीन कवि पुरुषोत्तमदास की कृति- ‘जैमिनी पुराण’ का प्रकाशन वर्ष 2019 में ही हुआ है|दोहा चौपाई छंद में उपनिबद्ध यह कथा भी महाभारतकाल की है| किन्तु अवधी भाषा का वैभव इस पुस्तक में अत्यंत मनोहारी है|
इसके बावजूद डॉ ज्ञानवती जी की पुस्तक में कुछ नवीन विषयात्मक प्रबंध काव्यों का भी उल्लेख मिलता है  जो इस प्रकार है-एस.मार्स्लीन –ईसायण, बनारस के गदाधर सिंह भृगुवंशी- दयानन्दायन, ख्वाजा अहमद प्रतापगढ़ी- नूरजहाँ , प्रेम प्रकाश वर्मा-गान्धीचारित मानस ,लक्ष्मण प्रसाद मित्र –बभ्रुवाहन, विश्वनाथ पाठक-घर कै कथा,गुरुभक्त सिंह मृगेश –पारिजात महाकाव्य, कालिका प्रसाद लामा-बुद्ध विलास, रमईकाका –नेता जी (खंडकाव्य) सत्यधर शुक्ल-ध्रुव चरित ,बसंत का बियाहु, ओंकारनाथ उपाध्याय-हमार गांधी, नसीर जमनिया-प्रेम दर्पण(यूसुफ़ जुलेखा का प्रेमाख्यान),भानुदत्त त्रिपाठी मधुरेश- भारतव्यथा तथा अद्याप्रसाद सिंह प्रदीप- सुलोचना,गुरुदक्षिणा ,सुदामा कै तंदुल’ आदि प्रबंध काव्यों का परिचयात्मक उल्लेख मिलता है|
 अंतत: इन महाकाव्यों के आख्यानों पर कुछ विस्तार से बात करने का अवसर और लोगों को भी  मिलता  रहेगा |कहना चाहिए कि संक्षेप में डॉ ज्ञानवती जी ने अवधी के विकास और इतिहास को समझाने की दिशा में सराहनीय कार्य किया | जहां तक मेरी जानकारी है इस एक वर्ष में अवधी कविता की रचनाशीलता को उजागर करने की दिशा में यदि आकलन किया जाय तो जगदीश पीयूष,डॉ ज्ञानवती और भाई अमरेन्द्र त्रिपाठी का कार्य उल्लेखनीय माना जा सकता है| अवधी गद्य में भी कार्य किया जा रहा है उसकी चर्चा फिर कभी की जायेगी| डॉ ज्ञानवती जी पर उनके गुरुवर डॉ.श्यामसुंदर मिश्र मधुप जी का स्नेह और आशीर्वाद सदैव बना रहा यह उनकी उपलब्धि है|उनके सानिध्य के कारण ही यह कार्य ज्ञानवती जी ने संपन्न किया | अवधी काव्यधारा के प्रवाह को नए स्रोत मिलते रहें तो अवधी भाषा के साथ ही अवधी समाज का भी परिविस्तार होगा| अवध का समाज आभारी है, साधुवाद|

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