(अवधी किहानी )
गुलाबी रूमाल # भारतेंदु मिश्र
वह आठ नवम्बर कि संझा रही | टीवी पर खबर सुनिके बैठके म नोटबंदी कि खबर पर चर्चा होय लगी| रज्जो जादा पढी लिखी न रहै लेकिन,अतना समझ गय कि रात बारह बजे के बाद से हजार और पांच सौ के नोट बाजार म न चलिहैं | प्रधानमंत्री जी बिधि ते हर चैनल पर हाँथ हलाय के नोटबंदी कि घोषणा करत देखाई देत रहैं वहिते मनई हैरान रहैं| रज्जो के मन मा एक डर घुसि के बैठ गवा | वाहिका महसूस भा कि कोई वहेक लूटे लेत अहै ,अकि मानौ कोऊ वहिका गला घोटे देत होय औ वह रोइव न पावत रही | टीवी पर खबर सुनिके रज्जो बैठके से भीतर वाले कमरे म चली गयीं | ई बेहोस करे वाली खबर के बाद आज दुसरी कौनिव खबर म वहिकी कोई दिलचस्पी न बची रहै | लेकिन हुसियार रज्जो जिज्जी बैठके से ई तना उठीं कि मानो यह खबर उनके कामे कि न रहै | खबर सुनिके नरेंदर अपनी दुलहिन ते कहेसि -‘सुनती हो,बारदाने के जो बीस हजार रुपया धरे हवैं वुइ सब बदलेक परिहैं ...यह याक नई मुसीबत आय गय..’
‘ हमार तो ठीक अहै लेकिन ... भगवानी दादा...., उनके जो हराम कि कमाई आवत है..उनका का होई ?...जो चार साल म गाडी –कोठी सब खरीद लिहिन |’
‘अरे ,वुइ सब विधायक जी के मनई आंय | उनकी चिंता न करो वुइ सब नोट बदल लेहैं .. ..तुम आपन फिकिर करो| ..रज्जो जीजी से पूछ लेव उनके पास ..सायद ..कुछ नोट पड़े होय ?’
‘उनके पास कहां?...पिछले महीना कमल क जब डेंगू भा रहा तब पूछा रहै ...जिज्जी के पास होता तो तब्बै निकाल के देतीं ..वुइ कमल क केतना चाहती हवैं |’
‘तो ठीक आय ,चलो हमका जादा परेसानी न होई |नीक भवा कुछ तो नकली नोट बंद हुइहै| ..’
रज्जो के कान मानौ बैठके कि देवाल पर चपक गे रहैं |वहिकी बेचैनी बढ़ै लागि रही |वहिका दुःख अस रहा कि जीका कोई समझ न सकत रहै, समस्या असि कि वा परिवार म कोहू ते कहिव् न सकत रही | तीन साल पहले पति के स्वर्गवासी होयके बादि ते अपने मैके रुकंदीपुर म हमेसा के लिए आय गय रही |धन्निबाद आय हमरे गंवारू औ कस्बाई समाज क जो आजौ तमाम सदियन पुरानी रीति रिवाजन ते जकड़ा है,औ जहां रिश्तेदारी कि सरम अबै बाकी हवै| नरेंदर बड़ी बहिनी रज्जो क अपने घर मा रहै खाय का अभयदान दै दिहिन रहै | बेवा औ निपूती रज्जो रुकंदीपुर लौट के न अवती तो आखिर अउर कहाँ जातीं ? पति बहुत चाहत रहै रज्जो क लेकिन विधवा होयके बाद देवर औ देवरानी मिलिकै एक्कै महीना म रज्जो क बेघर कइ दिहिन् रहै | परिवार म जायदात के नाम पर खेतिव न रही | लै दैके याक परचून कि दूकान हती वहिका अब देवर महेस चलावत रहै | बस वह दुकनिया वुइ परिवार के पेट भरेक क साधन रही | रज्जो पति के इलाज के टेम अपन धराऊ जेवर बेच दिहिस रही | आदमी तो नहीं बचा लेकिन इलाज औ किरिया से बचे हजार के दस नोट वहिके तीर जरूर रहैं | जिनका वा सबसे छिपाय के धरिस रहै |
ससुराल ते आयेके बाद से रज्जो एक बक्सा म अपनी धराऊ पुरानी साड़िन के बीच म वुइ नोटन क लुकुवाये धरे रहै ,बकस म सदा ताला लगाये रहै,वहिकी कुंजी लाकेट कि तना अपने गले म पहने रहै | ताकि वहिके अलावा कोई दूसर बक्सा न खोल ले| भौजी याक दुइ दफा पूछेसि कि बक्से म ऐस का धरा है? तो रज्जो कहिन् रहै –‘अरे कोई संपदा तो है नहीं कुछ तुम्हारे जीजा के ख़त है| वुइ ख़ास हमरे खातिर लिखे गए हैं |दुइ साड़ी हवैं - जो वुइ हमरे लिए बड़े मन से लाये रहैं |उनकी दुइ चार तस्बीर हवैं |सुबह नहाय धोय के हम उनका ध्यान करित अहै..बस| जेवर सब उनकी बीमारी म बिकाय गा रहै |..’
लेकिन आज रज्जो क नीद न आयी| जब सब सोय गए तो धीरे से रज्जो अपन बक्सा खोलिस रात की मद्धिम रोसनी म गुलाबी साडी के पल्लू के नीचे लुकाए धरे हजार वाले वुइ नोटन क आहिस्ता से निकारेसि फिर यहर वहर देखके उनका दुइ दफा गिनेसि | यहिके बाद फिर हुवें धरै लगी लेकिन मन न माना,कबो लाल औ बैंजनी छबि वाले सब नोट नजदीक से निहारइ फिर चूमइ औ फिर तिसरी दफा गिनि कै वही पल्लू के नीचे लुकाय के धइ दिहिस | या बात वा कोऊ ते बताएस न रही | डेंगू होये पर भतीजे कमल के इलाज के टेम जब पैसा कि बहुत जरूरत रही तब्बौ वा ई नोट न निकारेस रहै , मुला भतीजे के ठीक होये के लिए माता का उपवास औ पूजा करे म वा पीछे न रही |कौनिव तना टेम पर इलाज हुइगा रहै तो कमल बच गवा |लेकिन रज्जो जिज्जी के नोटन क राज जाहिर न हुइ पावा | अपने दुलारे भाई –भौजी और कमल के साथ वा तब जो छल किहिस रहै वहै सोच के वा आज बहुतै बेचैन भई जात रही | अब ई नोट काँटा तना वहिके करेजे म घुसै लाग रहैं | कौनिव तना उठिके पानी पियेसि ,तनी बेचैनी कम भइ फिर वाहिका यादि आवा ,मरती बेरा पतिदेव समझायेन रहै -‘रज्जो ! हम रही चाहे न रही ,पैसा दबाय के राखेव आखिर म वहै काम आई |’ अब जब पति परमेसुर चले गए तो उनकी बात का पालन वा नियम से करत रही ...यहिमा धोखा कैस..भवा ? बहुबिध दिमाक लगायेसि मुला आज वहिकी हिम्मत डोल गय रही | ऐस कुदिन आई वा सोचिस न रहै कि घर मा धरे धरे नोट कागद हुइ जैहैं | अब तो वहिके सब नोट बेकार हुइ गे रहैं |..
मुसीबत या रहै कि नोट बदले कैसे जांय ? रात भर मरे मंसवा कि हिदायत याद करती रही| भाई के निस्वार्थ प्रेम और खून के रिस्ता क सोचिके मन ही मन रोवत रही | कौनो राह नजर न आवत रही | अपने भैया औ भौजी कि नजर म गिर जाय कि संका अलग ते वाहिका खाए जात रही| कमल कि बेमारी म वा ई रुपया भैया क दै देतै तो ठीक होतै ,लेकिन अब का ?..वुइ बेरा क झूठ छिपावै बदि अब का बहाना बनावै..सब साफ़ बताय दे तहूँ भैया भौजी औ बेटवा जस भतीजे कमल केर बिसुवास खोय जाई |.. का पता बहिनी कि अस धोखेबाजी क नरेंदर की बिध समझी ? समझबो करी कि नहीं? का कीन जाए यही धरमसंकट म वह डूबी रही कि तबहें वाहिका बकसा म वहै गुलाबी रुमाल नजर आवा |यू वही धराऊ साड़ी के साथ वहिके पतिदेव देवाइन रहै | रज्जो कि आँखी चमक गयीं |वा सब नोट रूमाल म बांधेसि औ अपने सीने म ब्लाउज म लुकाय के धइ लिहिस |अब भोरहर होय वाला रहै | चटकई तैयार हुइकै वा मंदिर के बहाने बाहर निकर आयी |
दिमाग म खुराफात कि चकरघिन्नी चलत रही, वा अब सोचिस कि मंदिर म पति परमेसुर के नाव ते दान कइ देई ,लेकिन वा फिर दुचित्ती हुइगै कि देउता हमार कौन सुन लिहिन रहै- फिर विचार आवा कि पंडितवा क दैके नोट बदलाय लीन जाए..लेकिन वहूका सब किहानी बतावेक परी - ऊ कौन हमार सगा आय , बेईमानी कइ लेई तब ?....लेकिन गाँव म सबका हमरे झूठ का पता चल जाई तो सब हमरे नाव् पर थुकिहैं | ..अब ई उमिर म लगी कालिख कैसे साफ होई ?...पैसा कोई चोरी क तो आय न ...कालाधन थोरो आय | मंदिर म काली मैया कि मूरत के समुहे वा देर तके देवी क ध्यान करत रही|आँखी बंद करै तो सब करिया नजर आवै,जिउ घबराय | वा झट्ट दे आँखी खोलिस | मंदिर क एक चक्कर लगाइस |घंटा बजाइस ... अबकी फिर ध्यान लगावे बदि आँखी बंद किहिस तो भैया भौजी औ कमल केर चेहरा दीख परा - आगे देखिस कि भौजी के हाथ म खप्पर है,भैया के हाथ म तिरसूल औ कमल के हाथ म तलवार हवै|तीनो वहिके गुलाबी रुमाल म बंधे रूपया छीनै बदि आगे आय रहे हैं | ..हरबराय के वा फिर आँखी खोलिस औ कुछ बर्राय लागि - “कालाधन न आय ..गलत पैसा न आय ..|”
मन्दिर केर पंडित देखिस तो पूछ लिहिस -‘का भवा रज्जो बुआ?’
“कुछौ न आय पंडित भैया ,सब ठीक अहै|”
रज्जो खुद का संभारेसि फिर सोचिस न होय तो चलिके बैंक की तरफ देखि आई | टेसन के तीर कसबे क एक्कै पंजाब नेशनल बैंक रहै वा अब वहिके नेरे पहुँचि गय रही | हुआँ तो सैकरन कि भीड़ रही |पुलिस वाले लाठी भांजत रहैं | मेहेरियन वाली लाइन के नेरे जाय के देखिस हुआँ बड़ी लम्बी लाइन रही |तबहे लाइन म लगी याक लरिकौरी महेरिया गस खाय के गिर परी |वाहिका जोर क लेबरपेन होय लगा रहै | आसपास ठाढी महेरिया वाहिका संभारेनि , मुला वा हुवनै बच्चे क जन्म दै दिहिस | तिनुकै देर म वुइ मेहेरिया के घर वाले आय गये|रज्जो यू सब देखके अउर घबराय गइ | मुला अपन काम नहीं कइ पायी...रुपया बदलै कि वहिकी चाहत मनहे म धरी रहि गय | अब वहिका ध्यान आवा कि गाँव क कौनो मनई देखि लेई तब्बो पोल खुल जाई | अतनी भीड़ न होत तो साइत चुप्पे कोसिस कइ लेतै |
बैंक से वापस घर का आयी, रुमाल ते सब नोट निकारेसि उनका फिर ते गनेसि औ माथे लगाय के गुलाबी पल्लू वाली साड़ी कि परत म वही तना लुकाय के धइ दिहिस |हालात ते हारे के बाद कबो कबो मनई कि हिम्मत बढ़ि जात अहै| अब रज्जो के पास कौनो विकल्प न रहा | दूसरे दिन रज्जो हिम्मत किहिन अपनी भौजी ते सब सच्चाई बताय दिहिन |
‘अरी जिज्जी !, कमल कि बीमारी म रुपया होत भये तुम...मदत नहीं किहेव यू मलाल तो हमका जिन्दगी भर रही |..यू तो कहो कि मातारानी की किरपा ते सब ठीक हुइगा |’
‘भौजी..गलती तो बहुत बड़ी है..लेकिन अब हमार इज्जत तुम्हारे हाथ म है|..दूसरेन ते जादा हमका भैया औ कमल कि चिंता हवै |..उनकी नजरन म हमका न गिरायेव हाथ जोरित अहै बस यह बिनती मान लेव | तुम जो चाहो हमको सजा दै देव |’ अतना कहे के बाद रज्जो अपन मुह पीटै लगी|
‘अरे रुको जिज्जी !,..अब बस करो| ..हम मान जाई तब्बो यू कैसे होई ?.. जिज्जी ! कितौ इज्जत जाई या फिर पैसा हाथे से जाई..’
‘....काहे भौजी?
‘अरे हम अपन पैसा बतइबा तो तुम्हार भैया नोट बदल के अपने धंधे म लगाय लेहैं | तुमार बतैबा तो बात खुल जाई | न बतावा जाय तो ई नोट कूड़ा हुइ जैहै|’
‘तो अब का कीन जाय ?..तुमहे बताओ ?’- रज्जो कहेनि |
‘जिज्जी ! अगर पैसा औ इज्जत दुनहू बचाना होय तो एक रस्ता हवै..अगर जो तैयार हो तो बताओ| मुला वहिमा तिनुक खर्चा होई |’
‘ बताओ भौजी! ..कौनो रस्ता बताओ ?..’
‘अरे अपने गाँव क मंगलुआ,दस के आठ दै रहा हवै|..आठ हजार चही तो बताओ. ?’
‘ठीक आय भौजी!..,नासपीटे क दुइ हजार दै देव |यहै ठीक रही ..दुइ हजार का नक्सान होई ..मुला बात छिपी रही ... इज्जत बची रही |...या लेव कुंजी बक्सा खोल लेव |’
भौजी भौचक्की हुइकै रज्जो क मुंहू देखतै रहि गईं | फिर कुंजी लैके बकसा कि तरफ बढ़ी जीका रहस्य जाने कि वहिकी बड़ी तमन्ना रहै | मन मा तीन साल से बक्सा केर रहस्य बना रहै | भौजी बक्सा खोलै बदि लपक के कुंजी पकर लिहिन |रज्जो दूर ते कहेनि -‘ भौजी,गुलाबी साड़ी के पल्लू म देखो दस नोट मिलिहें.. |’
नोट गिनत भये भौजी बोली -‘ हाँ जिज्जी ! पूरे दस हैं...या साड़ी बहुत सुंदर है जिज्जी!..लेकिन..’
‘लेकिन अब हमरे काम कि नहीं रही .. तुम गुलाबी रंग वाले चार नोट मंगलुआ से लइ आयेव |..बस ध्यान राखेव या बात हमरे तुमरे बीच रही |..साड़ी तो तुम्हार इनाम आय .. यहौ धइ लेव | हम एक्कै दफा पहने रहन ..’
रज्जो अपने गुलाबी रूमाल ते अपनी डबडबाई आंखीं पोंछ लिहिस |
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संपर्क- 9868031384
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