मंगलवार, 27 अप्रैल 2021


(अवधी किहानी )

गुलाबी रूमाल भारतेंदु मिश्र

    आठ नवम्बर कि संझा रही टीवी पर खबर सुनिके बैठके म नोटबंदी कि  खबर पर चर्चा हो लगीरज्जो जादा पढी लिखी न रहै लेकिन,तना समझ गय  कि रात बारह बजे के बाद से हजार और पांच सौ के नोट बाजार म न चलिहैं | प्रधानमंत्री जी बिधि ते हर चैनल पर हाँथ हलाय के नोटबंदी कि घोषणा करत देखाई   देत हैं वहिते मनई हैरान रहैंरज्जो के मन मा एक डर घुसि के बैठ गवा  वाहिका महसूस भा कि कोई वहेक लूटे लेत अहै ,कि मानौ कोऊ वहिका  गला घोटे दे हो औ वह रोइव न पावत रही टीवी पर खबर सुनिके रज्जो बैठके  से भीतर वाले कमरे म चली गयीं  बेहोस करे वाली खबर के बाद आज दुसरी कौनिव खबर म वहिकी कोई दिलचस्पी न बची रहै लेकिन हुसियार रज्जो जिज्जी बैठके से ई तना उठीं कि मानो यह खबर उनके कामे कि  रहै खबर सुनिके नरेंद अपनी दुलहिन ते कहेसि -‘सुनती हो,बारदाने के जो बीस हजार रुपया धरे हवैं वुइ सब बदलेक परिहैं ... याक  नई मुसीबत आ गय..’

‘ हमार तो ठीक अहै लेकिन ... भगवानी दादा...., उनके जो हराम कि कमाई आवत है..उनका का होई ?...जो चार साल म गाडी कोठी सब खरीद लिहिन |’

अरे ,वुइ सब विधायक जी के मनई आंय उनकी चिंता न करो वुइ सब नोट बदल लेहैं .. ..तुम आपन फिकिर करो| ..रज्जो जीजी से पूछ लेव उनके पास ..सायद ..कुछ नोट पड़े हो ?

उनके पास कहां?...पिछले महीना कमल क जब डेंगू भा रहा तब पूछा रहै ...जिज्जी   के पास होता तो तब्बै  निकाल के देतीं ..वुइ कमल  केतना चाहती हवैं |’

तो ठीक आय ,चलो हमका  जादा परेसानी न होई |नीक भवा कुछ तो नकली नोट बंद हुइहै| ..’

रज्जो के कान मानौ बैठके कि देवाल पर चपक गे रहैं |वहिकी बेचैनी बढ़ै लागि रही |वहिका दुःख अस रहा कि जीका कोई समझ न सकत रहैसमस्या असि कि वा परिवार म कोहू ते हिव् न सकत रही तीन साल पहले पति के स्वर्गवासी होके बादि ते  अपने मैके रुकंदीपुर म हमेसा के लिए आ गय रही |धन्निबाद आय हमरे गंवारू  औ कस्बाई  समाज क  जो आजौ  तमाम सदिय  पुरानी रीति रिवाज  ते  जकड़ा है, जहां रिश्तेदारी कि सरम अबै बाकी वैनरेंद बड़ी हिनी रज्जो क अपने  घर मा है खाय का अभयदान दै दिहिन रहै बेवा औ निपूती रज्जो रुकंदीपुर लौट के न अवती तो आखिर उर कहाँ जातीं पति बहुत चाहत रहै रज्जो क लेकिन विधवा होके  बाद देवर  देवरानी मिलिकै एक्कै महीना म रज्जो क बेघर क  दिहिन् रहै परिवार म जायदात के नाम पर खेतिव न रही लै दैके  याक परचून कि  दूकान हती  हिका  अब देवर महे  चलात  है बस वह दुकनिया वुइ  परिवार के पेट भरेक क साधन रही रज्जो पति के इलाज के टेम अपन धराऊ जेवर बेच दिहिस रही आदमी तो नहीं बचा लेकिन इलाज औ किरिया से बचे हजार के दस नोट वहिके तीर जरूर रहैं जिनका वा सबसे छिपा के धरिस रहै |

ससुराल ते आयेके बाद से रज्जो एक बक्सा म अपनी  धराऊ पुरानी साड़िन के बीच म वुइ नोट क  लुकुवाये धरे रहै ,बक म सदा ताला लगाये रहै,वहिकी कुंजी लाकेट कि  ना अपने गले म पहने रहै ताकि वहिके अलावा कोई दूसर बक्सा न खो लेभौजी याक दुइ दफा पूछेसि कि बक्से म ऐस का धरा हैतो रज्जो कहिन्  रहै –‘अरे कोई संपदा तो है नहीं कुछ तुम्हारे जीजा के ख़त हैवुइ ख़ास हमरे खातिर  लिखे गए हैं |दुइ साड़ी हवैं जो वुइ  हमरे लिए बड़े मन से लाये रहैं |उनकी दुइ चार  तस्बीर हवैं  |सुबह नहा  धो के हम उनका ध्यान करित है..बसजेवर सब उनकी बीमारी म बिकाय गा रहै |..’

लेकिन आज रज्जो क नीद न आयीजब सब सो  गए तो धीरे से रज्जो  अपन बक्सा खोलिस रात की मद्धिम रोनी म गुलाबी साडी के पल्लू के नीचे लुकाए धरे  हजार वाले वुइ  नोट  क आहिस्ता से निकारेसि  फिर यहर वहर देखके  उनका दुइ  दफा गिनेसि यहिके बाद फिर हुवें धरै लगी लेकिन मन न माना,बो लाल औ बैंजनी छबि वाले सब नोट नजदीक से निहारइ  फिर चूम   फिर तिसरी दफा  गिनि कै वही पल्लू के नीचे लुकाय के धइ दिहिस या बात वा कोऊ ते बताएस न रही डेंगू होये पर भतीजे कमल के इलाज के टेम जब पैसा कि बहुत जरूरत रही  तब्बौ वा ई नोट न निकारेस रहै , मुला  भतीजे के ठीक  होये  के लिए माता का उपवास औ पूजा करे म वा  पीछे न रही |कौनिव तना टेम पर इलाज हुइगा रहै तो कमल बच गवा |लेकिन रज्जो जिज्जी के नोट  क राज जाहिर न हुइ  पावा अपने दुलारे भाई भौजी और कमल के साथ वा तब जो छल किहिस रहै है सोच के वा आज बहुतै बेचैन ई जात रही | अब ई नोट काँटा तना वहिके करेजे म घुसै लाग रहैं | कौनिव तना उठिके पानी पियेसि ,तनी  बेचैनी कम भइ  फिर वाहिका  यादि  वा ,मरती बेरा पतिदेव समझायेन रहै -‘रज्जो हम रही चाहे न रही ,पैसा दबा के राखेव आखिर म वहै काम आ |’ अब जब पति परमेसुर  चले गए तो उनकी बात का पालन वा नियम से करत रही ...यहिमा धोखा कैस..भवा बहुबिध  दिमाक लगायेसि मुला  आज वहिकी हिम्मत डोल गय रही ऐस कुदिन आ वा सोचिस न रहै कि घर मा धरे धरे नोट कागद हुइ जैहैं | अब तो वहिके सब नोट बेकार हुइ गे रहैं |..

मुसीबत या रहै कि नोट बदले कैसे जांय रात भर मरे मंसवा कि हिदायत याद करती रहीभाई के निस्वार्थ प्रेम और खून के रिस्ता क सोचिके मन ही मन रोवत रही कौनो रा  नजर न आवत  ही अपने भैया औ भौजी कि नजर म गिर जा  कि संका अलग ते  वाहिका खाए जा रही| कमल कि बेमारी म वा ई रुपया भैया क दै देतै तो ठीक होतै ,लेकिन अब का ?..वुइ बेरा क झूठ छिपावै बदि अब का बहाना बनावै..सब साफ़ बता दे तहूँ भैया भौजी औ बेटवा जस भतीजे कमल केर बिसुवास  खो जाई |.. का पता बहिनी कि स धोखेबाजी क नरेंद की बिध समझी समझबो करी कि नहींका कीन जाए यही धरमसंकट म वह डूबी रही कि तबहें वाहिका बकसा  वहै गुलाबी रुमाल  नजर आवा |यू वही धराऊ साड़ी के साथ वहिके  पतिदेव देवाइन रहै रज्जो कि आँखी चमक गयीं |वा सब नोट रूमाल म बांधेसि  औ अपने सीने म ब्लाउज म लुकाय के धइ लिहिस |अब भोरहर हो वाला रहै चटकई तैयार हुइकै वा मंदिर के बहाने बाहर निकर आयी |

दिमाग म खुराफात कि चकरघिन्नी  चलत रही, वा अब सोचिस कि मंदिर म पति परमेसुर के नाव ते  दान क देई ,लेकिन वा फिर दुचित्ती हुइगै कि देउता हमार कौन सुन लिहिन हैफिर विचार आवा कि पंडितवा क दैके नोट बदलाय लीन  जाए..लेकिन वहूका सब किहानी बतावेक परी  कौन हमार सगा आय , बेईमानी क ले  तब ?....लेकिन गाँव म सबका हमरे झूठ का पता चल जा तो सब हमरे नाव् पर थुकिहैं | ..अब  उमिर म लगी कालिख कैसे साफ होई ?...पैसा कोई चोरी क तो आय न ...कालाधन थोरो आय मंदिर म काली मैया कि  मूर के समुहे वा   देर तके  देवी क ध्यान करत रही|आँखी बंद करै तो सब करिया नजर आवै,जिउ घबराय वा झट्ट दे आँखी खोलिस मंदिर क एक चक्कर लगाइस |घंटा बजाइस  ... अबकी फिर ध्यान लगावे बदि आँखी बंद किहिस तो भैया भौजी औ कमल केर चेहरा दीख परा - आगे देखिस कि भौजी के हाथ म खप्पर है,भैया के हाथ म तिरसूल औ कमल के हाथ म तलवार हवै|तीनो वहिके गुलाबी रुमाल  म बंधे रूपया  छीनै बदि  आगे आ  रहे हैं | ..हरबराय के वा फिर आँखी खोलिस  कुछ बर्राय  लागि - कालाधन न आय  ..गलत पैसा  आय ..|

मन्दिर केर पंडित देखिस तो पूछ लिहिस -‘का भवा रज्जो बुआ?’

कुछौ  आय पंडित भैया ,सब ठीक है|

 रज्जो खुद का संभारेसि फिर सोचिस  न होय तो लिके  बैंक की तरफ देखि   | टेसन के तीर कसबे क एक्कै पंजाब नेशनल बैंक है वा अब वहिके नेरे पहुँचि  गय रही हुआँ तो सैकरन कि  भीड़ रही |पुलिस वाले लाठी भांज रहैं मेहेरियन वाली  लाइन के नेरे जा के देखिस हुआँ बड़ी लम्बी लाइन रही |बहे लाइन म लगी याक  लरिकौरी महेरिया गस  खा के गिर परी |वाहिका जोर क लेबरपेन हो लगा रहै |  आसपास ठाढी महेरिया वाहिका संभारेनि मुला  वा हुवनै बच्चे क जन्म दै दिहिस तिनुकै देर म वुइ मेहेरिया  के घर वाले आ गये|रज्जो यू सब देखके अउर  घबरा   | मुला अपन काम नहीं क पायी...रुपया बदलै कि वहिकी चाहत मनहे म धरी रहि  अब वहिका ध्यान आवा कि गाँव  कौनो मनई  देखि ले तब्बो पोल खुल जाई तनी भीड़ न होत तो साइत चुप्पे कोसिस कइ लेतै |

बैंक से वापस घर का आयी, रुमाल ते सब नोट निकारेसि उनका फिर ते गनेसि    माथे लगा के  गुलाबी पल्लू वाली साड़ी कि परत म वही तना लुकाय के धइ दिहिस |हालात ते  हारे के बाद कबो कबो मनई कि हिम्मत बढ़ि जात हैअब रज्जो के पास कौनो  विकल्प न रहा दूसरे दिन रज्जो  हिम्मत किहिन  अपनी भौजी ते सब सच्चाई बता दिहिन |

री जिज्जी !, कमल कि बीमारी म रुपया होत भये तुम...मदत नहीं किहेव यू मलाल तो हमका  जिन्दगी भर रही |..यू तो कहो कि  मातारानी  की किरपा ते सब ठीक हुइगा |’

भौजी..गलती तो बहुत बड़ी है..लेकिन अब हमार इज्जत तुम्हारे हाथ म है|..दूसरेन ते जादा हमका  भैया औ कमल कि चिंता हवै |..उनकी नजर   हमका  न गिराये हाथ जोरित अहै बस यह बिनती मान लेव तुम जो चाहो हमको सजा दै दे |’ अतना कहे के बाद रज्जो अपन मुह पीटै लगी|

अरे रुको जिज्जी !,..अब बस करो| ..हम मान जा तब्बो यू कैसे हो ?.. जिज्जी कितौ इज्जत जा  या फिर पैसा हाथे से जाई..

‘....काहे भौजी?

अरे हम अपन पैसा बतइबा तो तुम्हार भैया नोट बदल के अपने धंधे म लगा लेहैं तुमार बतैबा तो बात खुल जा न बतावा जाय तो  नोट कूड़ा हुइ जैहै|   

तो अब का कीन जा ?..तुमहे बताओ ?’रज्जो कहेनि |

जिज्जी अगर पैसा औ इज्जत दुनहू बचाना होय तो एक रस्ता हवै..अगर जो  तैयार हो तो बताओमुला वहिमा तिनुक खर्चा होई |’

 बताओ भौजी..कौनो रस्ता  बताओ ?..’

अरे अपने गाँव क मंगलुआ,दस के आठ दै रहा हवै|..आठ हजार चही तो बताओ. ?’

ठीक आय भौजी!..,नासपीटे क दुइ हजार दै देव |है ठीक ही ..दुइ हजार का नक्सान हो ..मुला बात छिपी रही ... इज्जत बची रही |...या लेव कुंजी बक्सा खोल लेव |’

भौजी भौचक्की हुइकै रज्जो क मुंहू देखतै हि गईं | फिर कुंजी लैके बकसा कि तरफ  बढ़ी जीका  रहस्य जाने कि वहिकी बड़ी तमन्ना रहै | मन मा तीन साल से बक्सा केर रहस्य बना रहै भौजी बक्सा खोलै बदि लपक के कुंजी पक लिहिन |रज्जो दूर ते हेनि -‘ भौजी,गुलाबी साड़ी के पल्लू म देखो दस नोट मिलिहें.. |’

नोट गिनत भये भौजी बोली -‘ हाँ जिज्जी पूरे दस हैं...या साड़ी बहुत सुंदर है जिज्जी!..लेकिन..’

लेकिन अब हमरे काम कि नहीं रही .. तुम गुलाबी रंग वाले चार नोट मंगलुआ से इ आयेव |..बस ध्यान राखेव या बात हमरे तुमरे बीच रही |..साड़ी तो तुम्हार इनाम आय .. यहौ धइ लेव  एक्कै  दफा पहने रहन ..’

रज्जो अपने गुलाबी रूमाल ते अपनी डबडबाई आंखीं पोंछ लिहिस |

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 संपर्क- 9868031384 

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