1. कठपुतरी
ठुनुकि ठुनुकि ठिठुकी कठपुतरी
रंगे काठ के जामा भीतर
अनफुरु पिंजरा पंछी ब्वाला
नाचि नाचि अंगुरिन पर थकि थकि
ठाढ़ि ठगी अस जस कठपुतरी।
छिनु बोली छिनु रोयी गायी
धायी धक्कन उछरि-पछरि फिरि
उयि ठलुआ की ठलुहायिनि ते
परी चकल्लस मा कठपुतरी।
(चकल्लस साप्ताहिक के 19वें अंक,23 जून 1938 में पहली बार प्रकाशित)
2.पपीहा बोलि जा रे
पपीहा बोलि जा रे
हाली डोलि जा रे।
बादर बदरी रूप बनावइं
मारइं बूंदन बानु
तिहि पर तुइ पिउ पिउ ग्वहरावइ
हाकंन हूकन मानु
पपीहा बोलि जा रे।
तपि तपि रहिउं तपंता साथी
लूकन लूक न लागि
जानि रहे उइ कहूं कंधैया
लागि बिरह की आगि
पपीहा बोलि जा रे।
छिनु छिनु पर छवि हायि न भूलयि
हूलयि हिया हमार
साजन आवयिं तब तुइ आये
आजु बोलु उयि पार
पपीहा बोलि जा रे।
(माधुरी, फरवरी 1943 में पहली बार प्रकाशित)
.. बलभद्र प्रसाद दीक्षित “पढीस”
रविवार, 19 अप्रैल 2009
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6 टिप्पणियां:
चिट्ठाजगत में आपका हार्दिक स्वागत है ,लेखन के लिए शुभ कामनाएं ............
wobnderful
swaagat hai
चिरैया उड़ती रहे ब्लाग जगत मे। .......सुन्दर.
narayan... narayan... narayan
Puranee rachnaayen, usee daurkee prachalit bolibhashame padhke bohot achha laga...!
shubhkamnayon sahit
shama
आप सबका हार्दिक आभार
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