आजु केरि लडकी
ख़ुरपा हंसिया थामिस
घासौ छीलिसि
लकडी बीनिसि
बथुई ख़ोंटि लाई
भाई- बहिनिया की अंगुरी पकरि कै
लंबा रस्ता काटिसि
जली रात-दिनु चूल्हे मा
लकडी की नाई
जगह न पायेसि तबहू वा
ई दुनिया मा
भीड मा रहति है चुपचाप
अकेले मा मुस्काति है
करति है बातैं आसमान ते
पंछी है परवाज है
हवा केरि रवानी है
चुटकी भर पियारु मा
लडकी देवानी है
ख़टकति यहै सबु
अब सबकी आंख़िन मा
कोख़ि मा मारी जाय रही है
दुख़िया।
डां॰ ग्यानवती दीक्षित
169,प्रतिभा निवास
रोटी गोदाम
सीतापुर, उ॰प्र॰
गुरुवार, 4 जून 2009
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