शनिवार, 22 मई 2010

तनी बचिकै रह्यो

खण्डन: भारतीय वांगमय में प्रकाशित झूठी खबर
(मई,2010,पृष्ठ-9)

सम्पादक जी,

आपकी पत्रिका को पूरे देश में बडे सम्मान से पढा जाता है। लेकिन सुशील सिद्धार्थ के विषय में जो कुछ आपने छापा है सरासर गलत है।निवेदन है कि कृपया इसे सन्दर्भित व्यक्तियों से तनिक पूँछ लें और फिर हो सके तो इसका खंडन भी अगले अंक में प्रकाशित करें।
अवधी के साहित्यकारों जागो
अवधी के यशस्वी साहित्यकारों जागो और देखो कि कौन तुम्हारी रचनाशीलता को खा रहा है। हमारी अवधी के नए साहित्यकारों में कुछ ऐसे त्यागी और बलिदानी सेवक हैं जो झूठी आत्मप्रतिष्ठा के लिए सारे अवधी समाज को कलंकित करने में लगे हैं । इनदिनों डाँ.सुशील सिद्धार्थ नामक कथित साहित्यकार को 14,मार्च को लखनऊ वि.वि. मे आयोजित अवध भारती के अवधी सम्मेलन में 11000/रुपये के सम्मान की चर्चा आपने अनेक पत्र पत्रिकाओं में पढी होगी। जो धनराशि तत्काल स्वनामधन्य सुशील सिद्धार्थ ने अवधी के विकास हेतु संस्था को लौटा दी। यह झूठी खबर है इसका मै प्रत्यक्षदर्शी हूँ।मैं उस समारोह में दिल्ली से आमंत्रित किया गया था। पूरे समारोह में शामिल भी रहा।उस समारोह में लगभग 50 अवधी सेवकों को प्रशस्ति पत्र और स्मृतिचिन्ह देकर सम्मानित किया गया था।खबर में छपवाया गया है कि प्रो.सूर्यप्रसाद दीक्षित और डाँ. रामबहादुर मिश्र ने सुशील सिद्धार्थ को 11000/ का चेक देकर सम्मानित किया। व्यक्तिगत तौर पर बातचीत करने पर दोनो ने इस बात से इनकार किया है। अत: आप सावधान रहें । ये वही सुशील सिद्धार्थ हैं जिनकी कोई अपनी अवधी की पुस्तक आपने अब तक नही देखी होगी। देखी हो तो प्रकाशक के पते के साथ जानकारी के लिए मुझे भी सूचित करें ताकि अवधी प्रसंग में उसकी समीक्षा हो सके।
यह झूठा समाचार किसलिए प्रचारित किया जारहा है। आओ इसपर विचार करें । इस झूठे समाचार के बल पर अकादमियों दूरदर्शन आदि में अपना महत्व स्थापित करने में सुशील को आसानी होगी क्योंकि रचनाशीलता से अब तक वह किसी को प्रभावित नही कर सके। कार्यक्रमों का संचालन करने से कोई व्यक्ति साहित्यकार कैसे बन सकता है। बहरहाल इस झूठी खबर की सच्चाई के विषय में और भी लोगों से जानकारी आप ले सकतें हैं जो उस समारोह में शामिल थे- प्रो.सूर्य प्रसाद दीक्षित-(09451123525),डाँ.ज्ञानवती दीक्षित-नैमिष(09450379238),डाँ योगेन्द्र प्रताप सिंह(09415914942) ,डाँ.भारतेन्दु मिश्र-दिल्ली(09868031384),मधुकर अस्थाना-(09450447579) रश्मिशील-(092335858688) मयालु नेपाल(079848183767),अमरेन्द्र त्रिपाठी -जे एन यू (09958423157)

3 टिप्‍पणियां:

Amrendra Nath Tripathi ने कहा…

निंदनीय है !
भाषा के नाम पर किसी भी तरह की राजनीति नहीं की जानी चाहिए !
हिन्दी की राजनीति , अवधी में भी दिखने लगी जो पहचान के आरम्भ की
भ्रूणावस्था में ही है ! एक किस्म का भ्रूणहत्या जैसा पापकर्म है यह !
इस लिंक को बज़ पर शेयर कर रहा हूँ !

Himanshu Pandey ने कहा…

अमरेन्द्र भाई की शेयरिंग से पहुँचा !
निन्दनीय है यह !

Anand Kumar ने कहा…

मै क्या कहू अभी तक क्या corruption political parties या इन जैसी चीजो में काम था ? जो अब साहित्य में भी होने लगा?. बस इतना ही धन्यवाद्