शनिवार, 28 अगस्त 2010

पहिल अवधी साहित्य अकादमी पुरस्कार










आचार्य विश्वनाथ पाठक 
     का
    पहिल अवधी 
साहित्य अकादमी पुरस्कार
24जुलाई,सन-1931 मइहाँ गाँव पठखौली जिला फैजाबाद(उ.प्र.) मा जनमे अवधी क्यार कवि आचार्य विश्वनाथ पाठक कइहाँ साल 2009 के बरे साहित्य अकादमी पुरस्कार खातिर चुना गवा है। पाठक जी  अवधी मा सर्वमंगलाघर कै कथा नामक दुइ काव्य रचिन हैं। सर्वमंगला जीमा महाकाव्य आय,जीका परकासन साल 1970 म भवा। सर्वमंगला केरि कथावस्तु दुर्गासप्तशती ते लीन गइ है। जबकि घरकै कथा मा कवि के अपनेहे जीवन केरि सच्चाई बखानी गइ है। पाठक दादा संस्कृत भाखा क्यार सिच्छक रहे ,वुइ गाथासप्तशती औ वज्जालग्ग क्यार खुबसूरत अनुवादौ कीन्हेनि है। सब अवधी के लेखकन औ कबिन की तरफ ते यहु चिरैया अवधी ब्लाग परिवार उनका बधाई देति है। भगवान ते यहै प्राथना है कि पाठक दादा और लम्बी उमिरि पावैं। उनका जौनु और साहित्य नाई छपि पावा है वहौ हाली ते छपै। पाठक दादा कि कबिताई क्यार नमूना द्याखौ--
                आजा
बिन चुल्ला कै घिसी कराही चिमचा मुरचा खावा
एक ठूँ फूट कठौता घर मा यक चलनी यक तावा।
       फाटि रजाई एक ठूँ जेकर बहिरे निकसी रुई
       उहाँ उहाँ भा छेद भुईं मा छानी जहाँ पै चुई।
      यक कोने मा परा पहरुआ दुसरे कोने जाता
      जबरा के तरते दुइ मुसरी जहाँ लगावैं ताँता।
छानी    मा खोसा    दुइ हँसिया लोढा सिल पै राखा
करिखा से लदि उठा भीति माँ छोट दिया का ताखा।
कुलकुरिया करिखानि रौंह से सरि सरिगै सरकण्डा
दुइ कोरव के बीच चिरैया दिहिस झोंझ मा अंडा।
अँगना माँ बिन ओरदावनि के एक ठूँ टूटि बँसेटी
सिकहर पै करिखान धरी  दुइ तरपराय के मेटी।
जब नाती ते चिलम छोरि कै दम्म चढावै आजा
तब धूँवा निकरै नकुना ते   बरै लप्प से गाँजा।  

1 टिप्पणी:

बलराम अग्रवाल ने कहा…

आचार्य पाठक को बधाई और आपको धन्यवाद। आपके द्वारा प्रस्तुत 'आजा' अनुपम आधुनिक लोकगीत की हैसियत रखता है। इसे पढ़ते हुए बाबा नागार्जुन की कविता भी याद आती है लेकिन गेयता उसकी तुलना में इसमें कहीं अधिक है।