बुधवार, 15 दिसंबर 2010

बुढवा बकलोली करैं


31
ताजे गुड की गन्ध ते/महकि उठा हर ठाँव
गाँव केरि बजार
बुढवा बकलोली करैं/उमडै पूरा गाँव।
32
अब न धरै सिरका कोऊ/मिरचा क्यार अचार।
बुआ गयीं तौ हुइ गवा /सारा घर लाचार।
33
उनके हाथे मा रहै/चटनी का सब स्वाद।
कहाँ सिलौटी सहर मा/सब हुइगा बेस्वाद।
34
जातिन मा ट्वाला बँटा/छिया बिया भा गाँव।
अबकी कुछ अइसा भवा/मुखिया क्यार चुनाव।
35
दारू की नदिया बही/आये खूब लठैत।
चढी कढैया राति दिन/भासन दिहिन बकैत।
36
कौनौ माया की कहै/कौनौ गावै राम।
कौनौ लीन्हे साइकिल/दौरै सुबहो साम।
37
नापदान सबके भरे/नाला बना न एक।
रोज लडाई होति है/आँधर भवा बिबेक।
38
गाँवन मा बम्बा लगे/कुँइया गयी सुखाय।
करकट ते गडही पटी/यहै तरक्की आय।
39
बरगद के नीचे कहूँ/उगी न कब्बौ घास।
बडे बडेन की छाँव मा/ छोटके रहे उदास।
40
हुक्का गवा जुडाय अब/बुझिगे सबै अलाव।
आगि भरी है जलन की/झुलसै पूरा गाँव।
41
पैसा की महिमा बढी/जाति न पूँछै कोय।
काम बनै ,नेता मिलै/पैसा ते सब होय।
42
जीकी कोठरी बहि गवै/पक्का रहै इमान।
अब सब मिलिकै कहि रहे/यहै रहै बैमान।
43
खेत बँटे, खेतिहर घटे/सहरन गये हजूर।
बुढवन के साथी बचे/कुतवा-सुआ-मँजूर।
44
बिजुली आयी गाँव मा/मिटा नही अँधियारु
कबहूँ-कबहूँ होति है/राति राति उजियारु।
45
जोन्हरी चिरिया चुनि गयीं/पानी गवा बिलाय।
आँसौ सूखा मा मरे/सुआ- कुतउनू -गाय।
46
पानी बरसा सात दिन/नदी बना गलियार।
मरा लरिकवा,छति गिरी/मुखिया हैं बीमार।
47
नेता दौरे सब तरफ/मिली न हरियर दूब।
बहस छपी अखबार मा/बकलोली भै खूब।
48
सडक बनी- थाना बना/हरहा गये हेराय।
गाँव गाँव पत्थर लगे/ यहौ तरक्की आय।

1 टिप्पणी:

Unknown ने कहा…

चिरैया अवधी नेट पत्रिका मा प्रकाशित अवधी भाषा केर दोहा पढेका मिला।गाँव क्यार वातावरण जानौ आँखिन के आगे साकार हुइगा ।ई दोहन का पढिके अस लागत है कि हमहू गाँव कि बजार ते हुइकै गुजर रहे हन औ गाँव केरि सोन्धी महक ते मन आनन्दित हुइ उठा। बहुत बधाई।

रश्मिशील