किसान कवि:आचार्य चतुर्भुज शर्मा
चतुर्भुज शर्मा
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(रामपुर मथुरा -सीतापुर के याक कवि सम्मेलन मा कविता पाठ करति भये किसान कवि चतुर्भुज शर्मा)
(1910-1998)
भारतीय श्रम संस्कृति की विवेचना
करें तो मिलेगा कि हमारे यहाँ जुलाहे ,बढई,नर्तकियाँ और किसान भी कविता करते रहे
हैं।
काव्यं करोमि नहि चारुतरं करोमि
यत्नात्करोमि यदि चारुतरं करोमि।
हे साहसांकमौलिमणिमण्डितपादपीठ
कवयामि वयामि यामि च।
यह एक जुलाहे की कविता है जिसे सुनकर
राजा भोज ने अपने समय में उसे कविताई का समुचित पुरस्कार देकर विदा किया था।
आचार्य चतुर्भुज शर्मा ऐसे किसान कवि हैं जिन्होने जीवनपर्यंत किसानी की कभी अपनी
काविता की एक भी पंक्ति कागज पर नही लिखी। उन्हे सबकुछ कण्ठस्थ था।माने वो तो चलती
फिरती किताब थे।जब (कुमुदेश जयंती 16अक्तूबर सन-1985)मैने उनसे बात की तो पाया कि
चतुर्भुज शर्मा हिन्दी जगत के एक स्वीकृत ज्ञानस्तम्भ हैं जिनका परिचय गाँव के अपढ
से लेकर विश्वविद्यालयो के तमाम शोधछात्रो से भी बराबर बना है। पढीस-वंशीधर
शुक्ल-रमई काका की परवर्ती परम्परा में अवधी कवियो मे चतुर्भुज शर्मा का नाम आता
है। वे अवधी के विकास हेतु प्रत्नशील थे उनदिनो। नादिरा
महाकाव्य,सीताशोधखण्डकाव्य, परशुरामप्रतिज्ञा,ताराबाई, सिंहसियार,ईष्याका
फल,तुलसीदास की जीवनी,महात्मागान्धी की जीवनी,हनुमान शतक,कुत्ता भेडहा केरि लडाई
आदि अनेक रचनाएँ शर्मा जी कंठाग्र थी। ऐसे किसान कवि चतुर्भुज शर्मा सीतापुर के
ग्राम बीहटबीरम के निवासी थे। प्रस्तुत है उससमय हुई बातचीत के प्रमुख अंश-
भा.मि.
आपने नादिरा महाकाव्य की रचना की है
तो उसकी प्रेरणा आपको कहाँ से मिली-
शर्मा जी-
नादिरा खडी बोली मे रचा गया प्रबन्ध
काव्य है। ये हरगीतिका छन्द में है। जहाँ तक प्रेरणा का प्रश्न है तो मैने एक दफे सीतापुर पडाव पर नादिरा फिल्म देखी
उसमें नादिरा के जीवन के बडे कारुणिक दृश्य थे।मुझपर कुछ ऐसा प्रभाव पडा कि बस इस
नायिका को लेकरकुछ लिखने की प्रेरणा जग गयी। उसके बाद कथानक के विस्तार के लिए मै
लाहौर गया -वहाँ से कोई 30 किमी.दूर एक मकबरा है जिसमें नादिरा की मजार है।वहाँ
जहागीर और नादिरा के तैलचित्र भी मैने देखे वहीं से फारसी भाषा मे नादिरा से
सम्बन्धित कुछ साहित्य भी सुलभ हो पाया..तो इस प्रकार मैने नादिरा पर काव्य लिखा।
भा.मि.
आप तो अवधी मे भी बहुत कविताएँ लिख चुके
हैं तो क्या अवधी हिन्दी की विभाषा मात्र है या उसका अपना अलग अस्तित्व भी है..?
शर्मा जी-
भैया अवधी बडी सशक्त भाषा
है।प्रत्येक अनुभूति का प्रत्येक विधा मा अभिव्यक्त करै मा समर्थ है।गोस्वामी
तुलसीदास का साहित्य इस बात का प्रमाण है। आजकल के साहित्यकारो का यथोचित सहयोग
अवधी को नही मिल रहा है।कुछ मूर्ख लोग इसे गवाँरो की भाषा मान कर अवधी से परहेज
करने लगे हैं परंतु मै तो अपना काव्यगुरु तुलसीदास को ही मानता हूँ।खेद है कि
आजकविसम्मेलनी कवि अवधी को केवल हास्य की भाषा बनाने मे जुटे है। जबकि हिन्दी की
विभाषाओ मे जितना व्यापक स्थान /क्षेत्र अवधी का है उतना हिन्दी की अन्य किसी
विभाषा(बृज,बुन्देली,भोजपुरी,बघेली आदि) का नही है। खेदजनक है कि कुछ स्वार्थी
लोगो ने आधुनिक अवधी के प्रतिनिधि कवि वंशीधर शुक्ल को भी एक विश्वविद्यालय के
पाठ्यक्रम से निकाल दिया है। यह अवधी के लिए ही नही वरन हिन्दी भाषा के विकास के
लिए घातक है।
भा.मि.
अवधी मे काव्य की किन विधाओ का
प्रयोग किया जा रहा है.? ..आपकी प्रमुख अवधी कविताए कौन सी हैं ?
शर्मा जी
अवधी मे
गीत-गजल-दोहा-सोरठा-कवित्त-और सवैया के अलावा मुक्तछन्द आदि काव्यविधाओ का प्रयोग
किया जा रहा है। मैने भी इस दिशा मे कुछ प्रयोग किए हैं। मघई काका की चौपाल,कुत्ता
भेडहन केरि लडाई,महात्मागान्धी ,बरखा,किसान कै अरदास,बजरंग बिरुदावली आदि अवधी की
रचनाए हैं।
भा.मि.
कुछ नवयुवको के मनोभावो को लेकर लिखा
हो तो सुनाएँ-
शर्मा जी
भैया लिखा तो बहुत है चार लाइन सुनौ-
हौ बडे पूत बडे घर के,तुमका का परी
हियाँ आफति होई।
रोकौ न राह अबेर भई,ननदी कहूँ ढूढति
आवति होई।
जाइ अबै कहिबा घर माँ,तब जानि परी जब
साँसति होई।
ऐसे कुचालि न भावैं हमै हटौ दूरि
रहौ,कोऊ द्याखति होई।
भा.मि.,
,वाह क्या बात है गाँ की युवती और
युवक के मनोभावो का मनोरम चित्र है यह तो दादा।
भा.मि.
शर्मा जी मुक्तछन्द कविता के बारे मे
आपकी क्या राय है ?
शर्मा जी -
छन्द या छन्दोबद्ध रचना सुनकर
गुनगुनाई जाती है,वह याद हो जाती है।मानस की चौपाइयाँ ,गीता के श्लोक सब प्राचीन
साहित्य छन्दोबद्ध है जो आज भी समाज का कण्ठहार है,और युगों तक रहेगा। नई कविता या
छन्दमुक्त कविता मेरे समझ से परे है। यदि यही दशा रही तो छात्र कविता की आत्मा से
कभी परिचित नही हो पायेंगे। स्वार्थो से प्रेरित साहित्यकारो को क्या कहें..।
भा.मि.
क्या आज के कविसम्मेलनो मे
साहित्यिकता विद्यमान है.?
शर्मा जी-
आजकल कविसम्मेलनो का स्तर बहुत गिर
चुका है,इसलिए मै अक्सर कविसम्मेलनो मे नही जाता। अब तो कविसम्मेलन एक व्यवसाय हो
गया है। अब जो श्रोताओ को हँसाकर मुग्ध करदे वही सफल कवि है। उन कविताओ मे स्तरीय
साहित्य खोजना मूर्खता है।
भा.मि.
आपकी दृष्टि मे कविता के मायने क्या
हैं..?
शर्मा जी-
कविता क्या है यह तो समीक्षक ही
जानें।मै तो जो स्वांत: सुखाय गुनगुनाता हूँ सुनने वाले उसे कविता मान लेते हैं-
कोरो गवाँर पढो नलिखो,कछु साहित की
चतुराई न जानौं।
कूर कुसंग सनी मति है,सतसंगति की गति
भाई न जानौं।
काँट करीलन मे उरझो परो,आमन की अमराई
न जानौं।
गावत हौं रघुनन्दन के गुन,गूढ बिसय
कबिताई न जानौं॥
भा.मि.
वाह वाह शर्मा जी बहुत सुन्दर..। कुछ
और सुनाइए,आपने तो अवधी मे बहुत लिखा है। कुछ प्रकृति वर्णन से सुनाइए..
शर्मा जी
सन्ध्या के समय का एक चित्र
देखिए-जिसे गोधूलि कहा जाता है -
दिनु भरि दौरा धूपी कै अब रथ ते
सुर्ज उतरि आये।
गोरू,हरहा सब जंगल ते अपने घर चरि
चरि आये।
बछरन ते गैया हुंकारि मिलीं ,गैया का
उमगि पियारु परा।
चरवाह बैठि सँहताय लाग,घसियारन बोझु
उतारि धरा।।
...एक और वर्षा सुन्दरी का चित्र
देखिए-
बिजुरी चमकि उजेरु दिखावै,मेघ मृदंग
बजावै
बैठि ताल पर याकै सुर माँ मेढुका
आल्हा गावैं।
धरती फिरते भई सुहागिन पहिरे हरियर
सारी
रंग बिरंगी फूल कलिन की गोटा जरी
किनाई।
बीर बहूटी बडी दूर ते सेंदुर लइके
आयी
नद्दी नाउनि पाँव पखारै,नेगु पाय
हरषाई।
भा.मि.
वाह दादा क्या कहने हैं..पूरा रूपक
हुइगा..औ नद्दी नाउनि का तो जवाब नही..बहुत सुन्दर..। शर्मा जी कालजयी रचनाकार आप
किसे मानते हैं.?
शर्मा जी-
भैया जहाँ तक कालजयी रचनाकार की बात
है तो कालजयी वही रचनाकार होता है जिसकी रचना की विषयवस्तु शाश्वत होती है। ऐसी
रचनाएँ काल की परिधि को पार कर जाती हैं।कबीर-तुलसी-सूर-बिहारी-निराला-प्रसाद-पढीस-बंशीधर
शुक्ल-रमई काका आदि की रचनाएँ शाश्वत हैं।ये अपने समय के कालजयी रचनाकार हैं।
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