रविवार, 4 मई 2014



जन्मशती  वर्ष पर पावन स्मरण।

चन्द्रभूषण त्रिवेदी उर्फ रमई काका की दो कविताएं-
काका केरि बहुचर्चित कबिता
1.- ध्वाखा-
हम गयन याक दिन लखनउवै, कक्कू संजोगु अइस परिगा
पहिलेहे पहिल हम सहरु दीख, सो कहूँ - कहूँ ध्वाखा होइगा|

जब गएँ नुमाइस द्याखै हम, जंह कक्कू भारी रहै भीर
दुई तोला चारि रुपइया कै, हम बेसहा सोने कै जंजीर
लखि भईं घरैतिन गलगल बहु, मुल चारि दिनन मा रंग बदला
उन कहा कि पीतरि लै आयौ, हम कहा बड़ा ध्वाखा होइगा|

म्वाछन का कीन्हें सफाचट्ट, मुंह पौडर औ सिर केस बड़े
तहमद पहिरे कम्बल ओढ़े, बाबू जी याकै रहैं खड़े
हम कहा मेम साहेब सलाम, उई बोले चुप बे डैमफूल
'मैं मेम नहीं हूँ साहेब हूँ ', हम कहा फिरिउ ध्वाखा होइगा|

हम गयन अमीनाबादै जब, कुछ कपड़ा लेय बजाजा मा
माटी कै सुघर मेहरिया असि, जहं खड़ी रहै दरवाजा मा
समझा दुकान कै यह मलकिन सो भाव ताव पूछै लागेन
याकै बोले यह मूरति है, हम कहा बड़ा ध्वाखा होइगा ।

धँसि गयन दुकानैं दीख जहाँ, मेहरेऊ याकै रहैं खड़ी
मुंहु पौडर पोते उजर - उजर, औ पहिरे सारी सुघर बड़ी
हम जाना मूरति माटी कै, सो सारी पर जब हाथ धरा
उइ झझकि भकुरि खउख्वाय उठीं, हम कहा फिरिव ध्वाखा होइगा।



2.दानी किसान (काका की किसान चेतना इस कविता में देखने योग्य है--)

धन्नि धन्नि किसान दानी। 
लखि उदार तुम्हार हिरदय/पिघलि कै धावति हिमालय
बहि नदिन मा गुनगुनत है/सूख ख्यातन देत पानी।
धन्नि धन्नि किसान दानी।।
रीझि कै तुम्हरी दया पर/सुरज नावत सोन झर झर/
बनत बलगर खेत जर जर /मिलति सकती सब हेरानी।
धन्नि धन्नि किसान दानी।।
देखि त्यागु तुम्हार खेतिहर/सकल ख्यातन घेरि बादर
करत निज जीवन निछावर/मोह कोहकत दीठि बानी।
धन्नि धन्नि किसान दानी।।
तपनि भुलि- भुलि सौत –सिहरनि/चंडलूक बयारि हउकनि
सहेउ उधरेउ बदन तब ही /अन्न की रासी देखानी।
धन्नि धन्नि किसान दानी।।
लै गये परजा पवन कुछु /प्वात मा हुइगा गवन कुछु
सेस मा बेउहर बखारिन/तुम रहेव भूखे परानी।
धन्नि धन्नि किसान दानी।।
जगु जियत तुम्हरे निहोरे/पगु परत तुम्हरे निहोरे
नष्ट रचना होति बिधि कै/जो न होतेव अन्नदानी।
धन्नि धन्नि किसान दानी।।

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