शनिवार, 17 सितंबर 2016

पगलौनू आल्हा गावति  हैं



पहिले लछमिनिया पैदा भइ
तउ  हुइगा उनका मुख मलीन
दउआ के लरिका भये  तीन
सकटू –गिरिजा औ गयादीन|


सब बड़ी जतन  ते पाले  गे
अच्छे  वाले बिद्यालय गे
हुसियार रही लछमिनिया मुलु
वा चौका चूल्हे मा खपि गै|

लरिका बिद्यालय मा पढिकै
अंगरेजी बिद्या सीखि  लिहिन
दउआ की कौनौ सुनेसि  नहीं
सब अपने आप बिहाव किहिन|

सब खेती पाती बेंचि खोंचि
वुइ राई रत्ती बांटि लिहिन
आपसै मा लडिकै दीमक जस
अपनी देहरी का चाटि लिहिन |

जब ते भौजी परलोक गयीं
दउआ पीपर जस हरहरांय
जिउ कहूं न लागै ट्वाला मा
मन मा झरसै तन मा बुतांय |

सब लरिका आपन हिस्सा लै
दिल्ली कलकत्ता भाजि  गये 
लछमिनिया बिटिया याक रही
बसि  वहै सहारा बनि गइ  है|   


रहिगे अकेल वुइ  खडहर  मा
घरु पुरखिन बिना रहै सूना
खटिया पकरे पगलान बैठ
अब हुइगा उनका दुःख दूना |

सस्ते मा लछमी का बिहाव
दउआ निपटायेनि रहै मुला
पौरुखु घटिगा थकि रही सांस
अब तौ रहिगा बसि चली चला |

बिटिया के मन मा टीस नहीं
वा सेवा भाव जनावति  है
खांसी बोखार का पता चलै
तौ दौरि धूपि घर आवति है|

लरिका कौनौ सुधि लेत नहीं
पगलौनू आल्हा गावति  हैं
लछमी की सेवा ते दउआ की
आंखि रोज भरि आवति है|
10/9/2016 @भारतेंदु मिश्र   

  

कोई टिप्पणी नहीं: