पगलौनू
आल्हा गावति हैं
पहिले लछमिनिया पैदा भइ
तउ हुइगा उनका मुख मलीन
दउआ
के लरिका भये तीन
सकटू
–गिरिजा औ गयादीन|
सब बड़ी जतन ते पाले गे
अच्छे वाले बिद्यालय गे
हुसियार
रही लछमिनिया मुलु
वा
चौका चूल्हे मा खपि गै|
लरिका
बिद्यालय मा पढिकै
अंगरेजी
बिद्या सीखि लिहिन
दउआ
की कौनौ सुनेसि नहीं
सब
अपने आप बिहाव किहिन|
सब
खेती पाती बेंचि खोंचि
वुइ
राई रत्ती बांटि लिहिन
आपसै
मा लडिकै दीमक जस
अपनी
देहरी का चाटि लिहिन |
जब
ते भौजी परलोक गयीं
दउआ
पीपर जस हरहरांय
जिउ
कहूं न लागै ट्वाला मा
मन
मा झरसै तन मा बुतांय |
सब
लरिका आपन हिस्सा लै
दिल्ली
कलकत्ता भाजि गये
लछमिनिया
बिटिया याक रही
बसि वहै सहारा बनि गइ है|
रहिगे
अकेल वुइ खडहर मा
घरु
पुरखिन बिना रहै सूना
खटिया
पकरे पगलान बैठ
अब
हुइगा उनका दुःख दूना |
सस्ते
मा लछमी का बिहाव
दउआ
निपटायेनि रहै मुला
पौरुखु
घटिगा थकि रही सांस
अब
तौ रहिगा बसि चली चला |
बिटिया
के मन मा टीस नहीं
वा
सेवा भाव जनावति है
खांसी
बोखार का पता चलै
तौ
दौरि धूपि घर आवति है|
लरिका
कौनौ सुधि लेत नहीं
पगलौनू
आल्हा गावति हैं
लछमी
की सेवा ते दउआ की
आंखि
रोज भरि आवति है|
10/9/2016 @भारतेंदु मिश्र
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