समीक्षा (सार)
अवधी कथा साहित्य की परंपरा और समकाल :
कथा-किहानी
# शैलेन्द्र कुमार
शुक्ल -मो.न. 9695300251
ईमेल- shailendrashuklahcu@gamil.com
अवधी काव्य से
लगभग सम्पूर्ण साहित्य जगत अवगत है। दुनिया के श्रेष्ठतम साहित्य ‘क्लासिक’ में अवधी के काव्य-ग्रंथ पद्मावत और रामचरितमानस अपना महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। लेकिन जब हम अवधी गद्य की बात करते हैं तो अवधी के तमाम विद्वान लेखक
हमें निराश करते हैं और यह कह कर अपना बचाव करते
दिखाई देते हैं कि
अवधी भाषा सिर्फ
काव्य के लिए ही अनुकूलित है, इसमें गद्य नहीं लिखा जा सकता। यह
बात सिर्फ अपनी गलती को छिपने के लिए कही जा सकती, जबकि सच इससे इतर
है। यदि हम सिर्फ गद्य में कहानी की ही बात करें तो देखते हैं कि अवधी में कथा की
परंपरा बहुत पुरानी है लगभग काव्य के साथ-साथ ही उसका विकास हुआ है। ‘कथा किहानी’ किताब के
प्राक्थन में हिंदी के वरिष्ठ विद्वान विश्वनाथ त्रिपाठी लिखते हैं कि—“अवधी का गद्य
प्रसिद्ध नहीं हैं किन्तु है वह भी प्राचीन, 12वीं शताब्दी की कृति ‘उक्तिव्यतिप्रकरण’ में प्राचीन अवधी की बोलचाल की भाषा के रूप मिलते हैं। बोली
के रूप में अवधी गद्य का दो टूकपन और भावभिव्यक्ति जग जाहिर है। लोक जीवन में अवधी
का वार्ता साहित्य, कथा-कहानी के रूप
में भरपूर है।” लोक भाषाओं की
प्राचीन परंपरा सदैव वाचिक रूप में ही रही
है। हम देखते हैं कि अवधी का कथा साहित्य जितना पुराना है, उतना ही विपुल
भी। अवधी की काव्य परंपरा में यदि देखें तो एक खास बात भी दिखाई देती है वह है
काव्य का कथा रूप। महाकाव्यों में तो कथा का होना एक अनिवार्यता है लेकिन अवधी की
आधुनिक कविताओं में भी कथा का एक बहुत सुंदर
ढांचा दिखाई देता
है। अवध की लोक संस्कृति में भी कथा का अनुष्ठानिक परिदृश्य भी बहुत पुराना और
व्यापक दिखाई देता है।करवाचौथ, सकट,
भैयादूज, हरछठ, दिया-चिरइया और
गौरहरी आदि अनुष्ठानों के मौके पर स्त्रियों द्वारा पाँच-सात कथा कहने की परंपरा आज
भी बनी हुई है। इन कथाओं में स्त्री जीवन की त्रासदी और उससे मुक्ति के लिए कामना
की अरदास सुनाई पड़ती है।
दूसरे अवधी गद्य
में भरपूर रचनात्मकता के लिए जगह इसलिए भी है और अवधी की प्रकृति गद्य के लिए खूब
अनुकूलित थी और आज तो और भी है क्योंकि जब सम्पूर्ण अवधी समाज आपस में रोज़मर्रा की
बातें गद्य में ही करता है,
तब उसका लिखित
रूप भी काव्य की तरह खूब संभव है। अवधी का गद्य अपनी ध्वनि और वक्रोक्ति में बहुत
ही शानदार और मार्मिक है,
इसमें को दोराय
नहीं। इसका प्रमाण आप कहीं अवध समाज में चार-जनो की बतकही सुन कर पा सकते हैं।
आधुनिक अवधी साहित्य का यदि हम अध्ययन करें तो अवधी के कथा साहित्य की परंपरा देख सकते हैं। यह लिखित सहित के रूप में भी रही
है, जिसका इधर के कुछ
दशकों में बहुत निखरा हुआ रूप हम देख सकते हैं। लेकिन इस तरफ हमें और सक्रिय होने
की आवश्यकता है।
अभी हाल में अवधी
के महत्त्वपूर्ण कवि और कथाकार भारतेन्दु मिश्र ने अवधी कथा साहित्य की एक किताब
संपादित कर बहुत जरूरी काम किया है। उनका यह काम बहुत से लोगों को चौंका देता है।
इस किताब का नाम है ‘कथा किहानी’ (समकालीन अवधी
कहानियाँ)। यह किताब दो हिस्सो में है जिसमें पहला हिस्सा परंपरा का है और दूसरा समकाल का। परंपरा
में छः कहानियाँ हैं—श्रीमती मोहिनी
चमारिन की ‘छोट के चोर’, बलभद्र दीक्षित ‘पढ़ीस’ की ‘चमार भाई’, वंशीधर शुक्ल की
कहानी ‘गाँव की जिंदगी’, रमई काका का
रेडियो रूपक ‘जगरना बुआ’, लक्ष्मण प्रसाद ‘मित्र’ का रेडियो रूपक ‘सुनीता’ और त्रिलोचन शास्त्री
की कहानी ‘देश-काल’।
इस संकलन के
समकालीन खंड में प्रसिद्ध कथाकार शिवमूर्ति की मशहूर कहानी ‘तिरिया चरित्तर’, अवधी की
महत्त्वपूर्ण विदुषी विद्याबिंदु सिंह की कहानी ‘लड्डू गोपाल’ तथा इन कहानियों के अतिरिक्त ‘बहू होय तो अस’ मुहम्मद अखलाक, ‘बाबा जी’ रामबहादुर मिश्र, ‘असली मंसा’ सुरेश प्रकाश
शुक्ल, ‘श्रवन कै जुबानी’ विनय दास, ‘डिप्टी साहेब’ ओमप्रकाश जयंत, ‘त्रिवेनी केरि
बहुरिया’ सूर्य प्रसाद निशिहर, ‘मुंदरी बिटिया’ चंद्रप्रकाश
पाण्डेय, ‘मुआवजा’ ज्ञानवती दीक्षित, ‘दाखिल खारिज’ भारतेन्दु मिश्र, ‘जमीन क्यार टुकड़ा’ रश्मिशील, ‘मरजादा’ सुनील कुमार
बाजपेई, ‘बिटिया’ कृष्णमणि चतुर्वेदी, ‘पियास’ गंगा प्रसाद
शर्मा गुणशेखर, ‘दाँव’ अजय प्रधान, ‘ओझा काका’ सचिन पाण्डेय
नीरज, ‘लल्ला न आवा’ अंजू त्रिपाठी,मतारी भासा
अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी और बाल कहानियों में ‘खंडहर के वहि पार’ अद्याप्रसाद सिंह प्रदीप, ‘घुमंतू’ अशोक अज्ञानी की कहानियां संकलित हैं।
इन समकालीन
कहानियों को समग्रता में यदि ध्यान से पढ़ें, तो कहना पड़ेगा कि अवधी की कविता आज जहां प्रतिष्ठित है वहाँ
तक पहुँचने में अभी कहानी को वक्त लगेगा। हालांकि कुछ कथाकारों में वैसी ऊंचाई
दिखाई देती है। अवधी की एक खासियत यह भी है कि रचनाकार अपनी कुंठा और जड़ता को छुपा
नहीं पाता। अपनी मूलभाषा में लिखते हुए अपनी वैचारिक और सामाजिक समझ को बहुत खुले
तौर पर लिख जाता है। भाषा में मुहावरे और कहावतें रचनाकार की संवेदनात्मक जमीन को
सपष्ट कर देते हैं।
इस संकलन में ‘खंडहर के वहिपार’ आद्या प्रसाद ‘प्रदीप’ और ‘घुमंतू’ अशोक ‘अज्ञानी’ की बाल कहानियाँ
भी संकलित हैं। अपने पूरे सौष्ठव में यह अवधी कहानी का नायाब संकलन है। हालांकि इस
संकलन में कुछ कहानियाँ निहायत खराब और कमजोर हैं, लेकिन उन्हें इस संकलन में जगह देना, मैं गलत नहीं
मानता। क्योंकि जब प्रतिनिधि
साहित्य की बात
हो रही हो तो उन्हें जगह देनी ही चाहिए जिनके नामों का बहुत ढिंढोरा अवधी में बजता
रहा है। समय अपनी आवश्यकतानुसार सबका आकलन कर ही लेगा, यह भी लगभग
सच्चाई ही है। अभी इस पर भरोसा मुझे भी है। अवधी गद्य के लगनशील लेखक और संपादक
भारतेन्दु जी का इस महत्त्वपूर्ण कार्य के लिए मैं अपनी
ओर से आभार प्रकट
करता हूँ।
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कथा किहानी : भारतेन्दु मिश्र :: परिकल्पना
प्रकाशन : 2019 :: मूल्य : 475
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