शुक्रवार, 16 जुलाई 2010

ghagh (घाघ)

अवधी कवि घाघ का जन्म उत्तर प्रदेश के कन्नौज जनपद मे अठारहवीं शताब्दी मे हुआ।उनका कोई ग्रंथ तो नही मिलता किंतु वे लोक व्यवहार ,नीति और किसानो के जीवन की कहावतों के कवि के रूप मे जाने जाते हैं। प्रस्तुत है उनकी एक कहावत---

पौला पहिरे हरु जोतै
औ सुथना पहिरि निरावै।
घाघ कहैं ये तीनो भकुआ
सिर बोझा लै गावैं।
कुचकट खटिया,बतकट जोय।
जो पहिलौठी बिटिया होय।
पातरि कृषी बौरहा भाय।
घाघ कहैं दुखु कहाँ समाय॥
(जन कवि घाघ)
नोट:--- मित्रो से निवेदन है कि इस कविता पर टिप्पणी मेल करें।

2 टिप्‍पणियां:

Amrendra Nath Tripathi ने कहा…

नीक लाग कि आप घाघ की पंक्तियन से गुजरुवाय दिहिन .. आभार ..

nitin tripathi ने कहा…

aaj en ghyan kavitaon ko yuvao me bhi charchit ho to bahut achha hoga