शनिवार, 24 जुलाई 2021

 महाकवि विश्वनाथ पाठक

जयंती💐💐💐💐💐💐💐

सुधिलेखा

महाकवि विश्वनाथ पाठक

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मिसिर भारतेन्दु

अयोध्या म जन्मे अवधी के बड़े कबि बिस्वनाथ पाठक जी संस्कीरत के मास्टर रहैं।इनका जनम24 जुलाई सन 1931मा फैजाबाद के पठखौली  गाँव मा  भवा रहै। इनके  पिता  रामप्रताप पाठक रहै। वुइ  फैजाबाद सहर के मोदहा नाव कै मोहल्ला मा रहत रहैं। सन 2010 म उनका अवधी भासा केर सबते बड़ा साहित्य अकादमी सम्मान मिला रहै।'सर्वमङ्गला' औ 'घर कै कथा'  उनकी अवधी कबिताई केरी बहुत जरूरी किताबें छपी रहैं। पाठक जी अपभ्रंश, पाली औ संस्कीरत के बड़े विदुआन रहैं।उनकी कबिताई केर महातम पूरे अजोध्या इलाके म ब्यापा हवै।हर दफा नेवरतन के मौके पर उनकी लिखी  सर्वमङ्गला केर पाठ उनके गांव जवार के मनई करत अहैं।अवधी समाज के सच्चे गायक पाठक जी केर नाव पढ़ीस,बंसीधर सुकुल,रमई काका के साथै बहुत आदर ते लीन जात अहै। उनकी ‘सर्वमंगला’ के दुइ सर्ग अवध विस्वविद्यालय के बी.ए.पाठ्यक्रम के -तिसरे साल मा विद्यारथिन बरे पढै खातिर तय कीन  गये हैं । सर्वमंगला महाकाव्य केरि कथावस्तु दुर्गासप्तशती ते लीन गइ है।लेकिन  ‘घर कै कथा’ मा कवि के अपनेहे सामाजिक जीवन केरि सच्चाई दर्ज किहिस हवै। पाठक दादा संस्कृत भाखा क्यार सिच्छक रहे ,वुइ गाथासप्तशती औ वज्जालग्ग क्यार खुबसूरत अनुवादौ कीन्हेनि रहै। सबके सुख कि औ भले कि चिंता कवि के मन मा सदा ब्यापी रही-

फूले फरे सभ्यता सब कै पनपे सब कै भासा 

संचित ह्वैहैं लोक सुखी सब जाए भागि  निरासा |(सर्वमंगला)

पाठक जी अवधी समाज औ अपने आसपास कि जिनगी के सुख दुःख बहुत नीके देखिन समझिन  औ लिखिन रहै| ‘घर कै कथा’ म गाँव जवार कि जिनगी के मनोरम चित्र भरे परे हवैं |किसान कि गिरिस्ती केर सामान देखा जाय -बिन चुल्ला कै घिसी कराही चिमचा मुरचा खावा|एक ठूँ फूट कठौता घर मा यक चलनी यक तावा। (- आजा)

हमरे गाँव क किसान आजौ अपनी जिनगी के अभाव से संघर्ष करत अहै |वू अबहिनो अभाव औ गरीबी  म हँसी खुसी रहत अहै | वहिकी गिरिस्ती बड़ी न भय है, मुला वाहिका आतमबल औ जुझारू पना कम नही भवा | गाँव कि ब्याहता के सादे  सौन्दर्य केर चित्रण देखे वाला है -‘दुलहिन गोड़े दिहीं महावर माथे बिंदु सलोना | ऊ छबि ताके सर्ग लोक से परी लगावे टोना |(घर कै कथा )’

देसी लोक सौन्दर्य केर तो खजाना उनकी कबिता म भरा परा है | असली सुन्दरता तो सादगी म होत हवै|गाँव कि दुलहिन जब पाँव म महावर और माथे पर बिंदिया लगावत अहै तो स्वर्ग  कि अपसरा ते जादा सुन्दर देखात अहै |कवि कहत अहै कि वहि गाँव कि दुलहिन कि सुन्दरता ते होड़ करै बदि स्वर्ग  कि अपसरा टोना टोटका करै लगती हैं | पाठक जी हमरे अवधिया समाज कि नस नस ते वाकिफ रहें |येहिकी तरक्की खातिर उनकी चिंता उनकी  कबिताई मा साफ़ देखात अहै | भैया सुशील सिद्धार्थ सन 1990  ‘बिरवा’ पत्रिका केर  अंक उनपर  निकारिन  रहै| बादि म औरी  कैयो पत्रिका के अंक पाठक जी की कबिताई  पर निकरे | अवधी भासा केर गौरव तब अउर बढ़िगा जब उनका पहला साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला |अब तो फैजाबाद म उनके नाम ते कौनिव संस्था बनी हवै| महाकवि विश्वनाथ पाठक की सुधि का नमन |

 अवधी डायरी

भैया धुतू धुतू 

मिसिर भारतेन्दु

बाबू अद्याप्रसाद उन्मत्त अवधी के बड़े  परसिद्ध कबि रहैं ।पहिले अवधी कि कबिता कबिसम्मेलन के बहाने सुनी सराही जात रहै ।निम्बिया तरे छपरा  तरे कितौ बाग़ खरिहान मा  किसानन के बीच मा गाई जात रहै । चौमास होय चाहै चैत  बैसाख जब किसान का फुरसत होत रहै यही तना कबिताई,नौटंकी,भागवत,आल्हा वगैरह के गायन मा टेम कटत रहै ।गाँव के अंगूठाटेक मनई अवधी कि  सब कबिताई  समुझत रहैं बीच बीच मा अपने  मन माफिक  सुझावौ देत  रहैं। हिन्दी अखबारन या पत्रिका मा अवधी कि कबिता न छापी जात रहै, अवधी केर तो कौनो अखबार निकरै नहीं । उन्मत्त जी केर जन्म 13 जुलाई सन 1935 मा  प्रतापगढ़  मा भवा रहै । उनका निधन सन 2006 म भवा रहै ।वुइ अवधी कि बड़ी सेवा कीन्हेनि रहै ।'माटी और महतारी'उनकी कबिताई केर संग्रह बहुत पाहिले छपा रहै। अवधी भासा ते उनका प्रेम बचपने ते रहै ।वुइ जब धुतू धुतू सुनावत रहैं तो मालुम होत रहै कि सांचौ परिवर्तन कि तुरही बाजि रही है कहूँ पुरान भीत गिर रही है औ नई भीत उठत अहै।बिचारन  ते कांगरेसी और प्रगतिशील चेतना के कबि रहैं, लेकिन अपनी माटी औ भासा का महतारी मानत रहैं ।अब तौ तमाम हिन्दी वाले  अवधिया अवधी के नाम ते सनकहा बैल तना बिचुकत अहैं ।

सन 1988 से 1993 के बीच  मा जब वुइ दिल्ली के यमुनाबिहार मा रहत रहैं  तब उनते दुइ दफा मुलाक़ात भय रहै । वहि दिनन मा  त्रिलोचन शास्त्री ,उन्मत्त जी, आकाशवाणी के हमार  दोस्त भाई सोमदत्त शर्मा सब यमुनाबिहार म रहत रहैं । हम भजनपुरा म रहित रहन , यही के पास सादतपुर मा बाबा नागार्जुन,विष्णुचंद शर्मा,चित्रकार कबि  हरिपाल त्यागी , कहानीकार महेश दर्पण  अलाव के संपादक रामकुमार कृषक सहित और कैयो साहित्यकारन के निवास हवैं ।याक दिन त्रिलोचन जी ते अवधी कबिताई पर बात होत रही तो वुइ कहेनि- 'आप उनमत्त जी से मिलिए ,वो अवधी के अच्छे कवि हैं ।' तब अक्सर सबते घरेलू गोष्ठिन म कितौ सरकारी साहित्यिक समरोहन मा मुलाक़ात हुइ जात रहै । वही दिनन मा उन्मत्त जी ते निकटता बनी रहै। “धुतू धुतू” जस उनकी  बहुत ख़ास प्रसिद्द कबिता उनके मुंह ते तबहीं सुना रहै ।बहुत नीके सुर मा वुइ गावति रहैं सब अर्थ खुलति जात रहै ।तब वुइ यमुनाबिहार मा अकेले रहत रहैं कांग्रेस पार्टी के कौनेव अखबार केर संपादन देखत रहैं । “धुतू धुतू” उनकी  सिग्नेचर कबिता कही जाय सकत हवै।एक अंश देखा जाय-

नकली समाजबाद खोखली आजादी पपवा प परदा महतिमा कि खादी 

केकरे रकतवा से बेदिया गै लीपी 

ओकरे असनवा पे बैठिगे  फसादी 

मारि के धकेल द्या न सोझे उतरै

नई भीत उठथ  पुरान भीत गिरै

हो भैया धुतू धुतू ।

उन्मत्त जी अवधी लोकधुन औ लोकछंद के साथे  आधुनिक अवधी कि  प्रगतिशील चेतना के कबि रहैं ।बड़प्पन यू कि हमारी तुकबन्दी वाली कबिता सुनिके वहिकी बहुत सराहना किहन ,बोले भैया लिखत रहेव । उनते  बतकही करत बेरिया  मालुम होत रहै कि कौनेव मिठुआ  आंबे के बिरवा तरे जुड़ाय रहे  हन । गावन म अभाव, सामाजिक दुःख तकलीफ अउर गैरबराबरी  कि तमाम तस्बीरै तो उनकी कबिताई म झलकती हवैं  गाँव कि बिरहिन बरखा कि राति मा अपने पति का यादि कै रही है, अउर बदरा ते बतलाय रही है । बिरहिनी कहत अहै- रे कजरारे बदरा तू अतनी जोर ते बरस कि हमरे पिया का घर की यादि आय जाय ।आगे वा कहत बा कि हिंया हूम के बरस ,हूम क मतलब करेजे म हूक  पैदा करे वाली आवाज के साथ बरस । तनी देखा जाय उन्मत्त जी की कबिताई- 

‘राह निहारत सगरी रतिया तिल तिल के सरकी , ऐसन बरस बिदेसी कंता का सुधि आवै घर की ।

हिंया हूम के बरस कजरारे बदरा 

तनी झूम के बरस कजरारे बदरा।’ उन्मत्त जी की कबिताई केर भावपच्छ बहुतै सबल अउर मार्मिक हवै।दुनिया कि कौनो महतारी अपने बचवा कि भूख नहीं देख सकत । महतारी पर लिखी उनकी कबिताई केर भाव देखि के जिउ जुड़ाय जात अहै -

‘भूख देखेव तो बावन करमवा किहेव ,माई पूरा तु आपन धरमवा किहेव 

मोरे डेकरे गयिउ तू अघाय मैया ,अहै को मोरे तोहरे सिवाय मैया ।’ पेट भरे पर जब लरिका डकरत हवै, तो उन्मत्त जी कहति हैं कि वहिकी डकार सुनिके महतारी केर पेट आपुइ  भरि जात हवै।सांचौ महतारी के अलावा लरिका के लिए पूरी  दुनिया मा अउर दूसर को अपन होत है ? महतारी क अपनी औलाद ते ज्यादा कुछू पियार नाई होत।वुइ सांचौ अपनी माटी अवधरानी केर करजु चुकाय गये ।अब हम अवधियन का अवधी मैया कि सेवा करेक होई ।

यहौ खुसी कि बात आय कि अयोध्या के आसपास  पढीस,बंसीधर सुकुल,मृगेश,विश्वनाथ पाठक  अउर उनमत्त जी की कैयो कबिता बीए. के बिद्यार्थिन क पढाई जाती हवैं ।सुना हवै अपने जनपद प्रतापगढ़ मा वुइ कविकुल नाम कि संस्था बानाएन रहै ।जो कबि पढाये जात हैं उनकी कबिताई पर बतकही होय लागत हवै, जो पाठ्यक्रम मा नहीं लागि पावत हैं वुइ हाली ते बिलाय जात अहैं । कबि तो कीरति के बिरवा होत हैं इनकी सुधि का ज़िंदा राखेते बहुत सीख मिलत अहै ।रीतिकाल के कबि साइत मतिराम कहिन रहै- 'कीरति के बिरवा कबि हैं इनको कबहूँ कुम्हिलान न दीजै ।' उन्मत्त जी की यादि आवत है तो उनकी धुतू धुतू वाली कबिता दिमाग म गनगनाय के नाचै लागत हवै, काने म तुरही कि धुनि बाजै लागत अहै।उनकी सुधि का नमन ।