मंगलवार, 2 जून 2020

💐जागे हैं कुछ जवान💐(ललाम लेख -6)

#मिसिर भारतेंदु 


सोसल मीडिया के जमाने मा कुछ नए नौजवान अपनी मातृभासा बदि चौकस हुईगे हैं। हमहुक ई जवान अवधियन का देखके बहुत नीक लागत हवै।कौनो अपने जेब खर्च ते बचत कैके साईट बनाए है,कौनो अपन अवधिया चैनल बनाए है।कोई कबिता लिखि रहा है तो कोऊ किहानी लिखत आय। एक जने तो रोज खीसा लिखि के  सुनावत हवैं।ई सबका देखि के जिउ जुडाय जात है| लरिका जागे हैं बिटेवा जागी हैं,अधेड़ मनई मेहेरुआ जागी हैं| रामलला के भगत जागैं तो अवधी मा बालपोथी बने| रामलला कि पढाई तो अपनी मातृभासा अवधिये  मा होई| बाकी कि हिन्दी , संसकीरत औ इंगरेजी तो बादि मा सिखिहै| न होय तो तब तक परोसी देस नेपाल ते उनके नीतिन बालपोथी मंगवाय लीन  जाय| 
अबै सब अपने हिसाब ते संविधान कि अभिब्यक्ति कि आजादी ते अवधी म लिख रहे हैं| या आभासी आकासी लिखत पढ़त अजूबी है| लिखौ चहै जौने कोने म बैठिके पढ़ैया चाहै जहां होय पढिके समझिये लेत है|अबै अवधी के गद्य कि ब्याकरण नहीं बनी, मुला कुछ नौजवान अवधिया लोकजीवन ते अपने समाज कि बोली बानी के साथ अपन बात ई सोसल मीडिया के मार्फत रखै लाग हवैं।तमाम नए पुरान शब्द नए अर्थ के साथै हमरे करेजे पर नाचै लागत हैं। जिउ जुडाय जात हवै| हमहू दस साल ते येहि आकासी भासा ते जुड़े हन| अब तौ  बहुत आसान लागत हवै|
जब लखनऊ ते सुशील भाई "बिरवा"निकारब सुरू किहिन रहै तबै,अवधी मा लिखइया बसि दुइ चारि देखात रहैं। तबै अवधी के साहित्य कि छपाई बहुत कठिन काम रहा।अब ई नए जमाने मा बहुत सुबिधा हुइगै।तमाम तना के मंच  बनिगे हैं यहिमा हिंया ज्यादा कोई खर्चा नहीं है। दूसर बात कौनो केहूक बपौती या माने कंट्रोल नहीं है कि केतना लिखा जाय, कब लिखा जाय कस लिखा जाय। मनई अपन आजादी केर दायरा खुद बनाय लेत हवैं |अब  मनई खुद मुख्तार हुइगा हवै।यह जो तकनीकी विकास के नाते आजादी मिली है वहिका कुछ अवधिया जवान बढ़िया इस्तेमाल कै रहे हैं। का नई बिटवा का अधेड़ मेहेरुआ ,बूढ़ औ नौजवान सब सोसल मीडिया पर आवत जात दीख परत हैं।लालगंज बैसवारा के पाड़े दादा अब अस्सी कि उमिर के हुइहैं, मुला उनका अवधी खातिर उत्साह देखते बनि परति है।

हालांकि अवधी लेख किहानी छापे वाले अखबार अवधियन के पास नहीं हैं| सरकारी कौनिव पत्रिका तक नहीं है| एक "अवध ज्योति" निजी खर्चे ते कब तक चलिहै,रामुइ जानै  | येहिके  अलावा कौनिव दूसर पत्रिका तके नहीं हैं। अरे गरीब किसान मंजूरन कि भासा आय अवधी तो पैसा कहां ते आवै।अखबार औ पत्रिका अपन खून पियाय के कैसे निकलै,यहौ कब तक निकल पाई पता नहीं । रामबहादुर मिसिर भैया तहूं जुटे हैं, पत्रिका  लगातार निकाल रहे हैं।लेकिन ई नौजवान सब अपनी बोली भासा मा कुछ कहै ,लिखै ,बतियाय लाग हैं नीकी नीकी बिटेवा अवधी गीत गावै लगी हैं,मेहेरुआ कबिता लिखे लागी हैं| दलित सबरन सब हियाँ आभासी दुनिया के मंच पर चिरैया ताना कुछु लिखि जाति हैं| कुछ सुनाय  जाति हैं|यह बहुत चमत्कार कि बात आय| जब त्रिलोचन शास्त्री जी ते 1990 के आसपास मुलाकात भइ तो अवधी कबिता और उनके बरवै संग्रह " अमोला" के बारे मा चर्चा भई। वुइ पहिली मुलाकातै मा कहिन रहै -
"अवधी मा गद्य लिखा जाएक चही।.. आप भी लिखिए।" तबते उनके आदेस ते हम अवधी मा कुछ टूट फूट लिखब सुरू कीन रहै।
# भारतेंदु मिश्र


😢“घर वापसी” ☺️
💐#कोरौना काल के मंजूर(ललाम लेख - 5)💐
#मिसिर भारतेंदु
दद्दू कबौ कौनौ सोचिस न होई कि कोरौना काल मा मंजूरन कि असि दुर्गति हुइहै। चीन ते अबहीं तके तमाम समान पैसा दैके मंगावा जात रहै मुला अबतिक मुफ्त मा यू कौनौ जनलेवा किरवा आवा है।सुनित हवै कि पूरी दुनिया तबाह हुइगै है। सबते जादा तो अमरीका औ इटली के मनई मरि गए हैं।अपने देसवा मा हजारन तो मरि चुके हैं। दिल्ली ते लौटे गनीमियाँ बतावति रहैं कि या बेमारी अमीरन कि आय।गरीब किसान मंजूर तो दुखिया भूखै ते मरि रहे हैं।आपदा होय चहै महामारी हमरे देस मा मौत गरीबनै कि होत है| हम कहा- ‘गनी भाई जब महामारी आयी है तो सब अमीर गरीब सबका खतरा है ,येहिमा अमीर गरीब का करी,का कोरोना अमीर गरीब का चीन्हत है|’
‘ तुम बौड़म हौ ,तुम न समझ पैहौ|‘
‘अरे कायदे से समझाओ तो काहे न समझ पैबा |’
सुनौ –‘मकान मालिक सब कमरा खाली करवाय लीन्हेंनि।काम बंद हुइगा तो का जिंदगी थोरे बन्द हुइहै।खाना पीना तो बन्द न होई। जउन कुछ हजार दुइ हजार बचा रहै, वहु सबियों ई दिनन मा चुकि गवा।दुइ लरिका याक बिट्यूनी और हम मेहरुआ मनई मिलाय के पाँच जने तो पांच मुँह खाय पियै वाले हुइगे। हमरे तीर राशन कार्ड न रहा,तो सरकारी रासन वाले एक दफा मदति कीन्हेनि।मकान मालिक एक महीना का केरवा न लीन्हेसि, औ ऊ और का मदति करत।अब ई दिल्ली मा 500/ रोज कि कमाई न होय तो भूखन मरे कि नौबति आय जात है। अपने गाँव अपने घर वापिस जाने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा रहै । हम यू जानि लीन कि गरीब कि सबते बड़ी बेमारी भूख आय कोरौना सार हमार का बिगारी।याक दाँय सरकारी खिचरी खातिर मेहरेऊ के साथै हमहू लाइन लगावा। सबेरे छह बजे ते लाइन लगाए रहे तो दुइ जने के खाय भरेक वा बेसवाद खिचरी दुपहर का दुइ बजे मिल पाई।अब जब रिक्सा हाँथ गाड़ी सब बन्द हुइगै तो आखिर का करी।
अम्मी जब ते यू सब हिंया क्यार हाल जानेनि तो बहुत दिक्क भईं । एक दिन तो फोन पर रोवै लागीं कहेनि "भैया हिंया घर आय जाव अल्ला के फजल ते याक रोटी जुरी तो वहेते गुजारा हुइ जाई।" हम कहा कि अम्मी का करी ट्रेन बस सब बन्द हवैं।
हमारी बीबी बड़ी हिम्मत वाली हैं| हमते कहेनि अइसन कब तक जिंदगी चली , न होय तो या अंगूठी बेंच के कुछ पैसा लै लेव फिर पैदरै गांव का पयान कीन जाय।जो होई सो द्याखा जाई,मौत आई तो चलत फिरत रास्ता मा आई,भूख से तो लरिकन का मरत कैसे देखा जाई।‘
उनकी अंगूठी करामाती रहै| पुराने टाइम कि अंगूठी भैया साढ़े पांच हजार कि बिकी| भैया बीबी कि अंगूठी बेंच के चार हजार का पुरान रिक्सा खरीदा | मुंह पर बांधे खातिर चार वुइ मुसिक्का खरीदा, बस फिर सबका लैके हसन पुर के लिए तान दिया| हियाँ तक आराम से सुस्ताके रिक्सा से धीरे धीरे पांच दिन लगे| खाना पानी रस्ते मा जो मिल पावा खा लिया| रस्ते वाले खेतिहर किसान पानी पत्ता से बहुत मदत कीन्हेनि| दुइ दफा रस्ते मा पुलिस वाले रोकिन फिर हमार किहानी समझ के बिस्कुट औ खाना दीन्हेनि| हमार किस्मत बहुत अच्छी रही ,हम सब जने ठीक से अपने गाँव आय गए| बहुत अभागे मंजूर रस्ते मा भूख पियास और अक्सीडेंट से मरि गे| एक मंजूरनी औरत तो बच्चा जनेसि, वा पेट से रही | बस भैया अल्लाह से यही दुआ है कि ऐसा टेम परवरदिगार जल्दी कट जाए|
ठीक कहेव गनी भाई हम लोग भी भगवान श्री राम से प्रार्थना करबे|
#भारतेंदु मिश्र
प्रबंधक अवधी समाज

💐अवधरानी ते मुलाकात💐
(ललाम लेख-4)
#मिसिर भारतेंदु

💐दिढ़ करि रखिबा अपना चीत (ललाम लेख- 3) 💐
#मिसिर भारतेंदु
अजोध्या मा राम मंदिर बन रहा है। सदियन क्यार बिबाद खतम भवा, सुपरिम कोर्ट का फैसला आय गवा। अवधियन कि खुसी साचौ बढिगै। का जनी कतने करोड़ यहिमा खर्चा होई,ठीक आय अब रामलला क्यार मंदिर अजोध्या म न बनी तो और कहां बनी? दुनिया भरे के मनई अजोध्या उनके दरसन खातिर आवत है।अब मोदी औ जोगी कि सरकार है उत्तरप्रदेश मा तो अजोध्या तीरथ क्यार बढ़िया उद्धार हुइ जाई।
राम लला अब आजाद हुईगे,लेकिन अभई उनकी परजा कि भासा अवधी आजाद नहीं भई। अजोध्या मा राम सीता हनुमान सहित उनकी परजा कि मातृभासा खातिर कौनिव योजना सरकार कि तरफ ते नहीं सुनाई दीन्हेसि। सोचित है कि अवधी के बिना कैस होई कैसे बनी अवधेस क्यार तीरथ धाम।साकेत विश्वविद्यालय तो है लेकिन हुवौ अवधी भासा केरि पढ़ाई नहीं होति है।अवधी भासा क्यार बिभाग तक हुआ नहीं बना।या अजोध्या ग़ज़ब कि चुप्पी साधे हवै,औ हियाँ के मास्टर औ पढ़ाकू नौजवान सब चुपान बैठ हैं,सिया राम जी की भासा अवधी कि पढ़ाई, लिखाई औ वहिमा सोध वगैरह करैकि सुबिधा नहीं है।इनका कौनो चिंता नहीं है | आधुनिक अवधी के पढ़इया आगे कहाँ ते मिलिहैं। गोरखनाथ,कबीर,जायसी,तुलसी का ज्ञान औ साहित्य ई महाकबिन की भासा, भासा केरि परम्परा के साथै आधुनिक अवधी भासा क्यार साहित्य का नौजवान अवधियन का न पढ़ाई जाई।
अब एतने योग्य मुख्यमंत्री के होने से अगर गोरखनाथ,जायसी औ तुलसीदास जी की भासा खातिर कोई संस्था बनि जाय तो मानो रामलला कि आजादी के साथै अवध प्रदेश के रहवैया औ उनकी अवधी भासा हरियाय जाई।तनी देखा जाय --
हसिबा बेलिबा रहिबा रंग। काम क्रोध न करिबा संग।।
हसिबा खेलिबा गाइबा गीत। दिढ़ करि राखिबा अपना चीत।।
हसिबा खेलिबा धरिबा ध्यान। अहनिसि कथिबा ब्रह्म गियान।।
हसै खेलै न करै मत भंग। ते निहचल सदा नाथ के संग।।
हबकि न बोलिबा ढबकि न चलिबा धीरे धरिबा पांव।
गरब न करिबा सहजै रहिबा भणत गोरख रांव।।(गोरखबानी )
का एहि कबिताई कि भासा अवधी न आय? तो अवधी भासा खातिर मनई खड़ा काहे नहीं होत है। सब जो जोगी के भगत हैं तो का गोरखा बाबा कि भासा केर परवाह न कीन जाई ? भोजपुरी वाले भैया बहुत नीक हैं वुइ दिल्ली, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश सब जगह भोजपुरी अकादमी बनवाय लीन्हेंनि।लेकिन हमार अवधिया अवधी की नगरी अजोध्या मा कौनौ सोध संस्थान तके न बनवाय पाएन।जय जोगी मोदी भक्तन की | अरे अवधी भासा कि अकादमी ,कौनो संस्थान,अवध मा न बनी तो का लन्दन मा बनी |मांग तो उठाओ अपना चित्त दिढ़ कै रहेव ,फिर जो होई देखा जाई |
# भारतेंदु मिश्र
प्रबंधक ,अवधी समाज

अवधरानी ते मुलाक़ात (ललाम लेख -2 )
#मिसिर भारतेंदु 
मातृभासा अवधरानी ते सबते पहिले मुलाकात तो गाँवे मा भय।अम्मा बुआ ,दादा सबके बतखाव ते कब अवधी ते नाता जुड़ि गा, पता नहीं चला।जस जस तनी सायन होति गएन तो तुलसीदास घरहिम बैठ रहैं, वुइ रामचरितमानस के अपने ढब ढंग ते पकरि लीन्हेंनि।तब तक जनिही न पाएन कि यू कीबिध सब मातृभासा ते नाता जुड़त चला गा।तनी और बड़े भएन तो जब स्कूल गएन हुवौ यहै मातृभासा अवधी मिली उंच नीच हिन्दू मुसलमान सबै अवधिया रहें| बस लिखाई पढ़ाई खड़ीबोली मा होय लागि रहै,लेकिन बतकही सब अवधिय मा होत रही।मास्टर समझाए रहे कि अवधी दिहती भासा आय हिंदी सहरुआ आय। जब गांव ते लखनऊ आय गएन तो हियाँ अवधी के साथै सहरुआ भासा माने हिंदी दुनहू ते साबिका परा। तहूं घर परिवार मा साथिन के बीच या अवधी भासा सदा चलतै रही।
बचपने कि यादि आवत है कि गर्मिन के दिनन मा दुआरे तरवाहे तरे गांव के दस पांच मनई सदा बैठ रहति रहैं। किस्सा किहानी कबिताई होत रहै। पिताजी कबहूँ रामचरितमानस कबहूँ हल्दीघाटी कबौ आल्हा तो कबहूँ रमई काका कि कबिताई गांव के मनइन का सुनावति रहैं।वुइ कबिता सुनावैं वहिका अर्थ बतावैं फिर कुछ संका होय तो वहिका समाधान होत रहै।
एहि तना की चौपाल सेमिनार दुआरे रोजुइ होत रही। खेती किसानी केर सब अपन संका समाधन एहिम तय करत रहैं।जब नवीं किलास मा आएन तो हमहुक हुआँ बैठक मा बैठावा जाय लाग। तबै बड़ेन के तीर बइठे मा जिउ न लागत रहै लेकिन उनके सामने कुछ कहैकि हिम्मत न रही।फिर भवा यू कि जब पिता जी घर पर न होंय तो तरवाहे तरे के मनई हमका रामायन सुनावै खातिर घेर लेत रहैं।बहुतेन का रामायन कि चौपाई यादी रहै ,लेकिन पोथी देखिके पढ़ न पावति रहै | तब हम और हमार चाचा कम दोस्त सीताराम दुनहू जने मिलिकै कबिता पाठ कारित रहै।
वुइ टेम हमरे गाँव के मनई रमई काका कि कुछ कबिता बार बार सुनत रहैं।जैसे - बुढ़ऊ क्यार बियाहु,अवस्थी कै बारात,लछमिनिया कजरीतीज रही,ध्वाखा हुइगा, मद्यनिषेध पर हीराललवा जैसी कबिता बहुत सुनी जाती रहीं।कथा भागवति तो चलतै रहै।हमार ननिहाल उन्नाव क्यार आय तो हियां नाना के घर मा पहिलेहे ते रमई काका कि फुहार,बौछार जैसी किताबें नाना तीर मिल जाती रहैं।हमार दादा उर्दू मीडियम ते मिडिल तक पढ़े रहैं। जवार के माने बैद रहैं,तो दवा ले मनई आवै करत रहै।बैदकी अस कि अपने तीर ते मुफ़्त दवा देत रहैं।कोई अपने आप दवाई के पैसा दै जाय तो अलग बात है|जब अस्पताल के डॉक्टर पैसा औ खून चूस के जवाब दै देत रहैं तब ग़रीब किसान मंजूर उनके तीर आवत रहैं। कइयो मेडिकल कालेज के जवाब दीन भये मनई वुइ ठीक कीन्हें रहें।वुइ हिंदी कि पढ़ाई कम जानत रहैं। लेकिन ई दुपहरिया कि गंवई सेमिनार मा वहू बैठत रहैं।किसानी औ बीमारी के बारे मा बतावति रहै|रामचरितमानस क्यार अखण्ड पाठ तो गांवन मा चलतै रहा। एहिते अवधी क्यार संस्कार बना रहै।
अवधी के ई तना के संस्कार अब गांवन मा बिलाय गे।अब तो सब फ़िल्मी हइगा है|अब तो देखावै खातिर मनई हनुमान चालीसा पढ़त है।सबका हनुमान जी की फोटू व्हाट्सएप पर भेज देत है।बस भगति पूर हुइगै।हनुमान जी के फोटू ते बहुत पियार है तो उनकी भासा अवधी ते काहे नहीं | एक जने ते हम पूछें तो वुइ नाराज हुइगे -
बिद्यावान गुनी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर।।
हनुमान तो राम के सब काज पूर कीन्हेनि लेकिन आजकल के कुदिनहे भगत हनुमानजी का खुस कीन चाहति हैं मुला अवधी बोलेउ मा संकोच करत हैं।यू दोहरा चरित्तर अब हनुमान जी जान गए हैं। यही झूठ मूठ कि भगति अब रामौ समझि गए हैं।यहि चरित्तर ते तरक्की कस होई |
जय अवधी,जय अवधिया
#भारतेंदु मिश्र
प्रबन्धक, अवधी समाज

💐"हमको लिख्यो है कहाँ"💐(ललाम लेख-1)
प्रसंग: समीक्षा चर्चा
# मिसिर भारतेंदु
आजकल झूठ मूठ कि तारीफ औ लफ्फाजी केर जमाना हवै। हम सब जने चौतरफा महा महाकबियन औ बड़े ऊँचे दर्जे वाले लेखकन ते घिर गे हन।कुछ बड़के हिंदी के महा किसिम के बिदुवान अवधी क बोली बतावै म जुटे हैं, दोसर कुछ अवधिया अवधी के नाम पर मसट्ट खैंचि लेत हवैं।जब मौका मिलत है तो पहिलिही कूद मा अवधी लिखाई पढ़ाई के सम्मान पुरस्कार गपचै खातिर कच्छा बनियाइन बदलै लागत हवैं।अवध म अवधी म कउनो काम करैया बड़ी मुस्किल ते दिखाई देत है। पूरे अवध मा माटी के ढूह अस कुछ प्रोफेसरान हैं जिनकी जिंदगी अवधी हिंदी कि कमाई खात खात उनका अपच औ सुगर हुइ गै। कुछ हेड बने के लालच मा दूबर हुईगे,कुछ बिरादरी के झगड़न म फँसे हैं।सुशील सिद्धार्थ भाई अवधी क्यार "बिरवा" लगाइन रहै , जगदीश पीयूष दादा ग्रंथावली निकराय दिहिन , रामबहादुर भैया "अवध ज्योति" लगातार 25 साल ते अपने खर्च ते निकास रहे हैं।कुछ और अकाशवाणी दूरदर्शन औ अखबारन मा एड़ी घिस कै आपन कद घटाय लिहिन मुला पढ़ीस, वंसीधर,रमई काका,विश्वनाथ पाठक का नामो नहीं चीन्हति हैं।
लखनऊवा हिंदी वाले तो अवधी म बतलाय म सरमाय जाति हैं।कुछ प्रगतिशील औ जनवादी लोटिया डोर लिहे दूर कि कौड़ी खैचे खातिर अपन जिउ हलकान किहे देत हवैं, बस लोकभासा और जन ते दुइ दुइ मीटर दूर सोशल डिस्टेंस बनाये रहत हैं। जौन समाज म रहत हवैं वाहिकी लोकचेतना वार पीठि कीन्हे रहत हैं।का जनी साइत दादा मार्क्स कहूँ यहि तना क्यार संदेस लिखि गे हुइहैं कि लोकभासा बुर्जुआ चिंतन कि प्रतीक आय।
कुछ पढ़ीस वगैरह के गोतिया जौ कुछ अवधी म लिख पढिके सामने लावा चाहें तो वाहिका ई बड़के प्रोफेसर, पत्तरकार आगे नहीं आवै देत।
बात यहौ है कि अवधी के नाम पर तमाम खर पतवार एकट्ठा हुइगा है। अब जब अवधी गद्य कि बात कीन जाय या सार्थक सहित्य कि चर्चा होय तो कुछ भकुआ अपनी तारीफ के बिना जिउ देय पर आमादा हवैं।अरे भाई अवधी के नाम ते सरकार ते इनाम मिल गवा,तो वहिका खाव पियो साखा पर जाओ दंड प्यालो। अब तुम सार्थकता क्यार सर्टिफिकेट आलोचक ते माँगत हौ,या बात कुछ हजम नहीं होत।लखनौवा अवधियन के किस्सा ग़ज़ब हैं।
आलोचना गोपी के नाम कि चिट्ठी तो आय ना , कि सबै ऊधौ पर टूटि परौ--"हमको लिखेव है कहाँ"...जय अवधी जय अवधिया।
@#भारतेंदु मिश्र
प्रबन्धक ,अवधी समाज

कोई टिप्पणी नहीं: